समय चूकते
तुमने सुनी है समय की हँसी
चूकने का दर्द भी भोगा है
फिर समय की सलीब पर हर बार
क्यूँ रख देते हो खुद को ?
तुम अनुभव की खाइयों से गुजर चुके हो
जानते हो
खाई किसी और ने बनाई
वो जो खड़ा था
खाई और समतल के बीच
डगमगाता हुआ
तुम्हें स्पर्श देता हुआ
वह गलत नहीं था
उसके एक तरफ खाई थी
एक तरफ कुआँ
फिर भी वह जूझ रहा था
ताकि मिल जाए कुछ और समतल हिस्सा
!!!
उम्र के साथ
सन्नाटे में चीखकर
रोकर
तुम जान चुके हो
वह स्पर्श तुम्हारी जिंदगी था
और खाई खोदनेवाले
खाई खोदने से
कभी बाज नहीं आएँगे
वे तुम्हें भी परेशान करेंगे
और उसे भी
जिसने तुम्हारे लिए समतल रास्ते बनाये हैं
फिर ? …… समय को व्यंग्यात्मक हँसी क्यूँ देना !
…।
हमने तो हर बार रथ बनाया है
नए सपने संजोये हैं
तो रुकना क्यूँ ?
वक़्त की सलीब पर ठहरना क्यूँ ?
खाई बनानेवाले
न कभी रथ बना सकते हैं
न खिलखिला सकते हैं
उन्हें बस मारना आता है
और मृत शरीर के पास उपस्थिति दर्ज करना
उनके पास किसी स्पर्श की कोई कीमत नहीं होती
ऐसे लोग परेशान कर सकते हैं
हमारे सपनों के आगे
हमारी खुशियों के आगे ……… जीत नहीं सकते !
....
उतरो सलीब से
सुनहरे रथ पर बैठो
लक्ष्य की ओर बढ़ो