नियति को सकारात्मक लो
या नकारात्मक -
मर्ज़ी तुम्हारी !
पर कुछ वक़्त दो खुद को
तो कारण, उद्देश्य स्पष्ट होंगे …
राम वनगमन नहीं होता
तो भरत के मन में भी मंथरा ज़हर घोलती
सारे रिश्ते दरार में जीते
सम्मान की
सत्य की
कोई गुंजाइश नहीं होती …
सीता अपहरण न होता
- तो हनुमान नहीं मिलते
समुद्र में रास्ता नहीं बनता
विभीषण के मन की थाह नहीं मिलती
....
निःसंदेह रावण की विद्व्ता अविस्मरणीय है
पर उस दंभ का
उसके अन्याय का
उसकी राक्षसी प्रवृतियों का विनाश नहीं होता
अग्नि - परीक्षा
सामूहिक आंतरिक शंका का निवारण था
उसके बाद भी
सीता की नाज़ुक स्थिति में उन्हें बेघर करना
कई रिश्तों की सोच को बेनक़ाब कर गया !
सोचिये,
सास,देवर,देवरानियों ने
प्रजा ने बाद में भी विरोध नहीं किया
सीता को रात-दिन आँखों में भरे प्रश्नों का सामना करना होता
जीवन के प्रति मोहभंग नहीं होता
वाल्मीकि की कलम रामायण लिखने से वंचित होती
!
सूक्ष्मता से देखा जाये
तो मनुष्य और राक्षस के बीच
जो कुछ घटित होता है
उनके आगे सामाजिक,पारिवारिक
अंतहीन कारण होते हैं
भ्रुण हत्या
आत्महत्या
विकृत दुर्घटनाएँ
....
कदम बताते हैं -
कौन मनुष्य है
और कौन राक्षस ....
सहनशीलता
विरोध का जन्म भी
कारणों से ही उत्पन्न होता है
अति सर्वत्र वर्जयेत' की भावना
तभी आकार लेती है
खुद से साक्षात्कार तभी होता है
अपने भीतर कैसी आग है
उसकी आँच तभी लगती है
तो,
कुछ वक़्त दो खुद को
कारण, उद्देश्य स्पष्ट होंगे …