विधान - प्रति चरण में 27 मात्राएँ, 14,13 मात्रा पर यति, आदि में 21 तथा 3,10,17,24,27वीं मात्राएँ लघु, 4चरण, 2-2चरण समतुकांत। (2122 2122 2122 2121)
शुद्ध गीता छंद"
आज देखे हैं किनारे, एक दूजे आर पार
नाव जोरो पे लहारे, छाँव छायी है बहार।
भोर भौंरा गुन गुनाए, रंग फूलों से करार
चाह चाहत चित चुराए, कमलिनी से लाड़ प्यार।।
बंद खोलेगी किवाड़ी, पंखुड़ी है कदरदान
लो यही पर आ गए वो, जो हुए थे महरबान।
छोड़कर ही जो गए थे, घाट को नौका बिहार
अब किनारे आ मिले हैं, देखकर दुनिया बहार।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी