वह सुन लो नया स्वर कोकिल का
है गूँज रहा अमराई में,
वह सुन लो नक़ल होती उसकी
उपवन, बीथी, अँगनाई में ;
हर जीवन के स्वर की प्रतिध्वनि
आती है अगणित कंठों से ;
पतझर के सूनेपन से डरे
जिसके अंतर में नाद न हो I
पतझर से डरे जिसके उर में
नव यौवन का उन्माद न हो I
(मिलन यामिनी)
-डॉ. हरिवंशराय बच्चन