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डॉ० हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा

11 जनवरी 2016

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हरिवंश राय जी हिंदी साहित्य जगत का एक उज्जवल सितारा थे | जिन्हें आज भी स्नेह और गर्व से याद किया जाता है | इस लेख में आप (harivansh rai bachchan biography in hindi) हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा पढ़ेंगे -

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हरिवंश राय जी की कविताओं में जीवन की वास्तविकता झलकती है , जिन्हें हम आसानी से खुद से जोड़ सकते हैं, और उन कविताओं से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकते हैं | 1976 में, उन्हें उनके हिंदी लेखन ने प्रेरणादायक कार्य के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था | हरिवंश राय बच्चन मुख्य रूप से अपनी कविता मधुशाला के लिए जाने जाते हैं | वर्त्तमान समय में अमिताभ बच्चन ने अपने पिता की कई कविताओं को आवाज़ दी है |


नाम हरिवंशराय बच्चन

जन्म मृत्यु 27 नवंबर 1907- 18 जनवरी 2003

पत्नी श्यामा एवम तेजी बच्चन ( shyama harivansh rai bachchan) (teji bachhan)

संतान अजिताभ एवम अमिताभ

कार्य कवी

शैली हिंदी, छायावाद

कविताये मधुशाला ,लो दिन बीता, लो रात गई

किस कर में यह वीणा धर दूँ?

कवि की वासना

जीवन की आपाधापी में

है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

अँधेरे का दीपक

शैक्षणिक-योग्यता पीएचडी


कवि हरिवंश राय श्रीवास्तव यानि बच्चन जी (harivansh rai ) का जन्म 27 नवंबर ,1907 उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के एक छोटे से गांव बापपट्टी के कायस्थ परिवार में हुआ था | यह अपने माता सरस्वती देवी और पिता प्रताप नारायण श्री वास्तव के बड़े बेटे के रुप में जन्में थे। बचपन से सब उन्हें बच्चन कहकर बुलाते थे | बाद में इसी नाम से दुनिया हरिवंश जी को पहचानने लगी |


हरिवंश जी की शिक्षा -

हरिवंशराय जी शुरुआती शिक्षा कायस्थ स्कूल से हुई। बाद में उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई प्रयाग में रहकर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की। इस यूनवर्सिटी में कुछ समय तक उन्होंने प्रोफेसर के तौर पर भी काम किया। इस दौरान वे देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी से भी जुड़े. लेकिन थोड़े ही समय में उनको ये अहसास हुआ कि वे ज़िन्दगी में कुछ और करना चाहते है और वे फिर बनारस यूनिवर्सिटी चले गए.1952 में इंग्लिश लिटरेचर में PHD करने के लिए इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए | इसके बाद हरिवंश जी अपने नाम के आगे श्रीवास्तव की जगह बच्चन लगाने लगे |


हरिवंश राय बच्चन जी के बारे में कुछ ख़ास बातें -

1. हरिवंश राय बच्चन का असली नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था |

2. वे दूसरे भारतीय थे, जिन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई थी |

3. हरिवंश जी को सभी बचपन से "बच्चन" कहकर बुलाते थे |

4. वह हिंदी में बच्चन नाम से ही अपनी रचनाएं लिखते थे, बच्चन का अर्थ होता है - बच्चा या संतान |

5. उन्होंने भारत सरकार में भी हिंदी विशेषज्ञ के तौर पर काम किया था |


हरिवंश बच्चन का वैवाहिक जीवन -

1926 में हरिवंश राय ने श्यामा ( 14year ) से शादी की , जो महज 24 साल की उम्र में TB की बीमारी के चलते दुनिया को अलविदा कह गयीं | फिर 1942 में हरिवंश राय जी ने तेजी सूरी से शादी की, जिनसे उन्हें 2 बेटे अमिताभ और अजिताभ हुए. | अमिताभ बच्चन जो कि आज मशहूर सुपरस्टार के रुप में बॉलीवुड में राज कर रहे हैं, तो वहीं अजिताभ एक सफल बिजनेस मैन हैं।


हरिवंश राय को मिले सम्मान एवं पुरुस्कार-

1. हरिवंश जी को 1976 में हिंदी साहित्य में इनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया |

2. हरिवंश राय जी को सरस्वती सम्मान, नेहरू अवार्ड, और लोटस अवार्ड से भी सम्मन्ति किया गया है |

3. हरिवंशराय जी ने शेक्सपियर की Macbeth and Othello को हिंदी में रूपांतरित किया जिसके लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता है |

4. इसी तरह नवम्बर 1984 में उन्होंने अपनी आखिरी कविता लिखी “एक नवम्बर 1984” जो इंदिरा गांधी हत्या पर आधारित थी।


हरिवंश राय बच्चन की रचनायें -

1. हरिवंश राय बच्चन हिंदी भाषा के एक मशहूर कवि और लेखक थे, उनकी बहुत सी रचनायें हिंदी सिनेमा जगत में भी इस्तमाल की गयी हैं |

2. बच्चन जी की सबसे प्रसिद्ध रचना "मधुशाला" रही है | जो उन्होंने उमर खैय्याम की रूबाइयों से प्रेरित होकर लिखी थी |

3. मुख्य कृतियां निशा निमंत्रण, मधुकलश, मधुशाला, सतरंगिनी, एकांत संगीत, खादी के फूल, दो चट्टान, मिलन, सूत की माला एवं आरती व अंगारे है |


बच्चन जी की कुछ प्रसिद्ध कवितायेँ (harivansh rai bachchan poems) -


1. हरिवंश जी की प्रसिद्ध कविता "मधुशाला" (madhusala poem )का कुछ भाग यहाँ पढ़ें -


1. मैं मधुबाला मधुशाला की,

मैं मधुशाला की मधुबाला!


मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,

मधु के धट मुझ पर बलिहारी,

प्यालों की मैं सुषमा सारी,

मेरा रुख देखा करती है

मधु-प्यासे नयनों की माला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


2. इस नीले अंचल की छाया

में जग-ज्वाला का झुलसाया

आ कर शीतल करता काया,

मधु-मरहम का मैं लेपन कर

अच्छा करती उर का छाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


3. मधुघट ले जब करती नर्तन,

मेरे नूपुर के छम-छनन

में लय होता जग का क्रंदन,

झूमा करता मानव जीवन

का क्षण-क्षण बनकर मतवाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


4. मैं इस आँगन की आकर्षण,

मधु से सिंचित मेरी चितवन,

मेरी वाणी में मधु के कण,

मदमत्त बनाया मैं करती,

यश लूटा करती मधुशाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


2. हरिवंश राय बच्चन की कविता - अग्निपथ (agneepath poem) -


वृक्ष हो भले खड़े, हो घने हो बड़े, एक पत छाव की |

मांग मत, मांग मत, मांग मत ||

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||


तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी |

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ ||

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||


ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से |

लथपथ, लथपथ, लथपथ ||

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ ||


हरिवंश राय बच्चन की क़िताबें (harivansh rai bachchan books) -

1. सतरंगिनी

2. दो चट्टानें

3. मधु कलश

4. मिलान यामिनी

5. नीली चिड़िया


हरिवंश राय बच्चन का निधन -

बच्चन जी 18 जनवरी 2003 को 95 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए | हरिवंश जी ने अपना अंतिम समय बम्बई में बिताया | वे दुनिया से चले गए लेकिन अपनी रचनाओं और कृतियों के जरिये वो आज भी हम सब के बीच ज़िंदा हैं | हिंदी साहित्य का वो उज्जवल सितारा जिसने हम सबको अपनी रचनाओं का अनमोल तोहफा दिया है|

हमें गर्व है कि हमारे देश की भूमि पर "हरिवंश राय" जैसे महान कवि ने जन्म लिया ,और हम सबको इसका सम्मान करना चाहिए |


“क्या भूलूँ क्या याद करूँ”


अगणित उन्मादों के क्षण हैं,

अगणित अवसादों के क्षण हैं,

रजनी की सूनी की घडियों को किन-किन से आबाद करूं मैं!

“क्या भूलूँ क्या याद करूँ” मै

याद सुखों की आसूं लाती,

दुख की, दिल भारी कर जाती,

दोष किसे दूं जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूं मैं!

“क्या भूलूँ क्या याद करूँ” मै

दोनो करके पछताता हूं,

सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,

सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आबाद करूं मैं!

“क्या भूलूँ क्या याद करूँ” मै


डॉ० हरिवंशराय बच्चन

रवीन्द्र  सिंह  यादव

रवीन्द्र सिंह यादव

डॉक्टर हरिवंशराय ' बच्चन' का कृतित्व और व्यक्तित्व सदैव प्रेरणा का सागर बना रहेगा.

20 नवम्बर 2016

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शब्दों के शिल्पकार डॉ० हरिवंशराय 'बच्चन' के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग एवं उत्कृष्ट रचनाएँ...
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नीड़ का निर्माण फिर-फिर

12 जनवरी 2016
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नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्वान फिर-फिर!वह उठी आँधी कि नभ मेंछा गया सहसा अँधेरा,धूलि धूसर बादलों नेभूमि को इस भाँति घेरा,रात-सा दिन हो गया, फिररात आ‌ई और काली,लग रहा था अब न होगाइस निशा का फिर सवेरा,रात के उत्पात-भय सेभीत जन-जन, भीत कण-कणकिंतु प्राची से उषा कीमोहिनी मुस्कान फिर-फिर!नीड़ का निर

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कोई पार नदी के गाता!

13 जनवरी 2016
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भंग निशा कीनीरवता कर,इस देहाती गानेका स्वर,ककड़ी के खेतोंसे उठकर, आता जमुना परलहराता!कोई पार नदी केगाता! होंगे भाई-बंधुनिकट ही,कभी सोचते होंगेयह भी,इस तट पर भी बैठाकोई उसकी तानों सेसुख पाता!कोई पार नदी केगाता! आज न जाने क्योंहोता मनसुनकर यह एकाकीगायन,सदा इसे मैंसुनता रहता, सदा इसे यह गाताजाता!कोई पा

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अग्निपथ

14 जनवरी 2016
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वृक्ष हों भलेखड़े,हों घने हों बड़े,एक पत्र छाँह भी,माँग मत, माँग मत, माँग मत,अग्निपथ अग्निपथअग्निपथ। तू न थकेगा कभी,तू न रुकेगा कभी,तू न मुड़ेगा कभी,कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,अग्निपथ अग्निपथअग्निपथ। यह महान दृश्य है,चल रहा मनुष्य है,अश्रु श्वेत रक्तसे,लथपथ लथपथ लथपथ,अग्निपथ अग्निपथअग्निपथ।डॉ० हरिवंशराय

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नव वर्ष

15 जनवरी 2016
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नव वर्ष हर्ष नव  जीवन उत्कर्ष नव I नव उमंग, नवतरंग, जीवन का नव प्रसंग I नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह I गीत नवल, प्रीत नवल, जीवन की रीति नवल, जीवन की नीति नवल, जीवन की जीत नवल I-डॉ. हरिवंशराय बच्चन

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तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!

16 जनवरी 2016
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तीर पर कैसेरुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण!रात का अंतिमप्रहर है, झिलमिलाते हैं सितारे,वक्ष पर युग बाहुबाँधे, मैं खड़ा सागर किनारेवेग से बहताप्रभंजन, केश-पट मेरे उड़ाता,शून्य में भरताउदधि-उर की रहस्यमयी पुकारें,इन पुकारों कीप्रतिध्वनि, हो रही मेरे हृदयमें,है प्रतिच्छायितजहाँ पर, सिंधु का हिल्लोल - क

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मुझसे मिलने को कौन विकल

17 जनवरी 2016
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मुझसे मिलने को कौन विकल,मैं होऊँ किसके हित चंचल ?यह प्रश्न शिथिल करता पद को,भरता उर में विह्वलता है !दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। -डॉ. हरिवंशराय 'बच्चन'

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है अँधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है?

18 जनवरी 2016
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कल्पना के हाथ सेकमनीय जो मंदिर बना थाभावना के हाथ नेजिसमें वितानों को तना था। स्वप्न ने अपनेकरों से था जिसे रुचि से सँवारास्वर्ग केदुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सनाथाढह गया वह तोजुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों कोएक अपनी शांति कीकुटिया बनाना कब मना हैहै अँधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है। बादलों के अश्

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उस पार न जाने क्या होगा

19 जनवरी 2016
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इस पार, प्रिये मधु है तुम होउस पार न जाने क्या होगायह चांद उदित होकर नभ में, कुछ ताप मिटाता जीवन कालहरा-लहरा ये शाखाएँ कुछ शोक भुला देतीं मन काकल मुरझाने वाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मग्न रहोबुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन कातुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती होउस पार मुझे बहलाने क

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चिड़िया का घर

20 जनवरी 2016
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चिड़िया, ओ चिड़िया,कहाँ है तेरा घर?उड़-उड़ आती हैजहाँ से फर-फर!चिड़िया, ओ चिड़िया,कहाँ है तेरा घर?उड़-उड़ जाती है-जहाँ को फर-फर! वन में खड़ा हैजोबड़ा-सा तरुवर,उसी पर बना हैखर-पातों वालाघर!उड़-उड़ आती हूँवहीं से फर-फर!उड़-उड़ जाती हूँवहीं को फर-फर!डॉ० हरिवंशराय ‘बच्चन’

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एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो

21 जनवरी 2016
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इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो। जय बोलो उस धीर व्रती

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वह सुन लो नया स्वर कोकिल का

22 जनवरी 2016
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वह  सुन लो  नया स्वर कोकिल का है     गूँज     रहा      अमराई      में,वह  सुन  लो  नक़ल होती   उसकी उपवन,    बीथी,     अँगनाई      में ;हर  जीवन  के  स्वर की प्रतिध्वनिआती    है    अगणित    कंठों  से ;पतझर    के    सूनेपन    से    डरे जिसके   अंतर   में   नाद   न हो I पतझर  से  डरे   जिसके   उर  में 

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तब रोक ना पाया मैं आंसू

23 जनवरी 2016
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जिसके पीछे पागल होकरमैं दौडा अपने जीवन-भर,जब मृगजल में परिवर्तित हो मुझ पर मेरा अरमान हंसा!तब रोक न पाया मैं आंसू! जिसमें अपने प्राणों को भरकर देना चाहा अजर-अमर,जब विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर वह मेरा गान हंसा!तब रोक न पाया मैं आंसू! मेरे पूजन-आराधन कोमेरे सम्पूर्ण समर्पण को,जब मेरी कमज़ोरी कहकर मे

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यात्रा और यात्री

24 जनवरी 2016
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साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों कादल गगन में गीत गाता,चल रहा आकाश भी हैशून्य में भ्रमता-भ्रमाता,पाँव के नीचे पड़ीअचला नहीं, यह चंचला है,एक कण भी, एक क्षण भीएक थल पर टिक न पाता,शक्तियाँ गति की तुझेसब ओर से घेरे हु‌ए है;स्थान से अपने तुझेटलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!साँस चलती है त

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प्रिय, शेष बहुत है रात अभी मत जाओ।

25 जनवरी 2016
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प्रिय, शेष बहुत है रात अभी मत जाओ। अरमानों की एक निशा में होती हैं कै घड़ियाँ,आग दबा रक्खी है मैंने जो छूटी फुलझड़ियाँ,मेरी सीमित भाग्य परिधि को और करो मत छोटी,प्रिय, शेष बहुत है रात अभी मत जाओ। अधर पुटों  में बंद अभी तक थी अधरों की वाणी,'हाँ-ना' से मुखरित हो पाई किसकी प्रणय कहानी,सिर्फ भूमिका थी जो क

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आ रही रवि की सवारी

26 जनवरी 2016
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आ रही रवि की सवारी। नव-किरण का रथ सजा है,कलि-कुसुम से पथ सजा है,बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी।आ रही रवि की सवारी। विहग, बंदी और चारण,गा रही है कीर्ति-गायन,छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।आ रही रवि की सवारी। चाहता, उछलूँ विजय कह,पर ठिठकता देखकर यह-रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर

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मधुशाला की कुछ पंक्तियाँ

27 जनवरी 2016
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आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हालाआज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला। आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,और लगा मेरे होठों से भ

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जो बीत गई सो बात गयी

28 जनवरी 2016
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जीवन में एक सितारा थामाना वह बेहद प्यारा थावह डूब गया तो डूब गयाअम्बर के आनन को देखोकितने इसके तारे टूटेकितने इसके प्यारे छूटेजो छूट गए फिर कहाँ मिलेपर बोलो टूटे तारों परकब अम्बर शोक मनाता हैजो बीत गई सो बात गई जीवन में वह था एक कुसुमथे उसपर नित्य निछावर तुमवह सूख गया तो सूख गयामधुवन की छाती को देखो

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प्राण, मेरा गीत दीपक सा जला है

29 जनवरी 2016
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पाँव  के नीचे पड़ी जो धूलि बिखरीमूर्ति बनकर ज्योति की किस भांति निखरी,आंसुओं में रात-दिन अंतर गला है; प्राण, मेरा गीत दीपक सा जल है। यह जगत की ठोकरें खाकर न टूटा,यह समय की आँच से निकला अनूठा,यह ह्रदय के स्नेह साँचे में ढला है;प्राण. मेरा गीत दीपक-सा जल है। आह मेरी थी कि अम्बर कँप  रहा था,अश्रु मेरे थ

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ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब

30 जनवरी 2016
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गुलाबतू बदरंग हो गया हैबदरूप हो गया हैझुक गया हैतेरा मुंह चुचुक गया हैतू चुक गया है । ऐसा तुझे देख करमेरा मन डरता हैफूल इतना डरावना हो कर मरता है! खुशनुमा गुलदस्ते मेंसजे हुए कमरे मेंतू जब ऋतु-राज राजदूत बन आया थाकितना मन भाया था-रंग-रूप, रस-गंध टटकाक्षण भर कोपंखुरी की परतो मेंजैसे हो अमरत्व अटका!कृ

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किस कर में यह वीणा धर दूँ?

1 फरवरी 2016
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देवों ने था जिसे बनाया,देवों ने था जिसे बजाया,मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ?किस कर में यह वीणा धर दूँ? इसने स्वर्ग रिझाना सीखा,स्वर्गिक तान सुनाना सीखा,जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ?किस कर में यह वीणा धर दूँ? क्यों बाकी अभिलाषा मन में,विकृत हो यह फिर जीवन में?क्यों न

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साजन आ‌ए, सावन आया

2 फरवरी 2016
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अब दिन बदले,घड़ियाँ बदलीं,साजन आ‌ए,सावन आया। धरती की जलतीसाँसों नेमेरी साँसों मेंताप भरा,सरसी की छातीदरकी तोकर घाव ग‌ई मुझपरगहरा, है नियति-प्रकृतिकी ऋतु‌ओं मेंसंबंध कहीं कुछअनजाना,अब दिन बदले,घड़ियाँ बदलीं,साजन आ‌ए,सावन आया। तुफान उठा जबअंबर मेंअंतर किसने झकझोरदिया,मन के सौ बंदकपाटों कोक्षण भर के अं

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'गोशमाली' एक रोचक प्रसंग

3 फरवरी 2016
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उमर ख़य्याम की रुबाइयों का हरिवंशराय बच्चन द्वारा किया गया अनुवाद एक भावभूमि, एक दर्शन और एक मानवीय संवेदना का परिचय देता है। बच्चनजी ने इस अनुवाद के साथ एक महत्त्वपूर्ण लम्बी भूमिका भी लिखी थी, उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-"उमर ख़य्याम के नाम से मेरी पहली जान-पहचान की एक बड़ी मज़ेदार कहानी है। उमर ख़

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अपने कालजयी सृजन के साथ सदा हमारे साथ रहेंगे डॉ० हरिवंशराय ‘बच्चन’

4 फरवरी 2016
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हिन्दी भाषा केकालजयी कवि एवं 'हालावाद' के प्रवर्तक डॉ० हरिवंशराय श्रीवास्तव ‘बच्चन’ उत्तर छायावादकाल के सर्वश्रेष्ट कवियों में से एक हैं| डॉ० हरिवंशराय ‘बच्चन’ का जन्म 27 नवम्बर, सन 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी मेंएक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श

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अविस्मरणीय विडियो !

5 फरवरी 2016
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८३वीं अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में मधुशाला की कुछ पंक्तियों का काव्य पाठ करते एवं इससे जुड़े कुछ रोचक प्रसंग सुनाते सदी के महानायक अमिताभ बच्चन 

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अमिताभ बच्चन की असरदार आवाज में मधुशाला की संगीतमय शाम (विडियो)

6 फरवरी 2016
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सहारा परिवार द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में अमिताभ बच्चन द्वारा सुरों के साथ मधुशाला को गाकर अपने पिताजी को दी गई भावभीनी श्रधांजलि का वीडियो |

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क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?

11 फरवरी 2016
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बात, बच्चन जी की मिस तेजी सूरी से पहली मुलाक़ात की है। श्यामा जी के अवसान के बाद, बच्चन जी एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे थे और अपने मित्र प्रकाश के यहाँ बरेली में थे। अपनी आत्मकथा में तेजी जी से पहली मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं :“...उस दिन 31 दिसंबर की रात थी I रात में सबने ये इच्छा ज़ाहिर की कि

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