चौदह फरवरी को हम कैसे पर्व मनाएंगे!!!
जो बीत गयी उन बातो को हम कैसे यहाँ भुलायेगें
अपनी ही मिट्टी में फिर क्या सेना का लहू बहयेंगे
या घुसकर दुश्मन के घर से लाहौर कराची लायेंगे
फिर गिलगित से ग्वदार तक अपने तीन रंग लहराएंगे
तब मिलकर माता का अखंड ये राज तिलक करवायेंगे
हैं कोटि कोटि सब सुत उनके कुछ सुत का धर्म निभायेंगे
या इसी तरह जननी का मस्तक फिर से यहीं झुकाएंगे
तलवार उठेगी युद्ध हेतु या तलवारें पिघलायेंगे
संहार मचाएंगे कुछ या बस संहारित हो आएगें
राणा के वंशज होने का कुछ तो फिर मान बढ़ायेंगे
या उनकी दिव्य प्रकाशमयी आभा को भी ले जायेंगे
थोडा विध्वंश मचा कर क्या चुटपुटिया बन रह जायेंगे
शोड़ित की प्यासी रणचंडी को प्यासे ही लौटायेंगे
या फिर विराटता से भरकर हुंकार कराल लगायेंगे
अमरीका तो क्या चीन रुस सब थर थर थर थर्रायेंगे
हो गया बहुत ही शान्तिपाठ अब कोई सबक सिखायेंगे
चालिस जवान के कातिल को अब युद्ध धर्म दिखलायेंगे
जो बीत गयी उन बातो को हम कैसे यहाँ भुलाएँगे
चुल्लू भर पानी लेकर के सब डूब डूब मर जायेंगे
या शोड़ित की नदियों मे जाकर डूबकी कभी लगायेंगे
क्या लाज शर्म की बातो को सब घोल घोल पी जायेंगे
इस शोक दिवस के दिन भी क्या हम वलेंटाइन मनाएंगे ??