मैने पश्चिम को पूरब से
आ आकर मिलते देखा है
घिरे भयानक अन्धकार में
दीपक को जलते देखा है
चीटी को दाना ले लेकर
पर्वत पर चढ़ते देखा है
तूफानी मंजर मे तिनका
तूफा से लड़ते देखा है
तम की काली निशा बीच भी
अँधियारा छटते देखा है
जंगल मे सीधे पेड़ो की
लकडी को कटते देखा है
हाँथो में कुछ खिची लकीरों को
मिथ्या होते देखा है
धर्म राज को खुद
अधर्म के साथ खडे होते देखा है
गोमुख से निकली गंगा को भी
मैल होते देखा है
मैने पश्चिम को पूरब से
आ आकर मिलते देखा है