कलरव से गूंजे विश्व गगन
नीड़ों से निकाले ध्वनि मधुरम
जगती में हो बस सृजन सृजन
मिट घोर घटायें पतन पतन
जगती का सूना सूनापन
मिट जाये फिर हो चहल पहल
सर सर की ध्वनि फिर करे पवन
कल कल गाये जल का उदगम
प्राची मे दस्तक दे दिनकर
फिर हँसे कुमुदनी खिले कमल दल
प्रकृति में अल्हड़ता अविरत
आएँ तितलियाँ गायें भ्रमर गण
पावस मे भी कोयल बोले
सावन की तन्हाई सँजो ले
दशो दिशायें स्वर से गूंजे
सृजन सृजित हो गीत सँजो ले