मै सृजन हेतु तब तत्पर था
पतन लिये जब स्वर्णिम युग था
देता है इतिहास गवाही
साक्षी है हर पथ का राही
स्वयं स्वर्ग की सुषमायें
धरती पर विचरण करती थी
मेरी आभा के सन्मुख वो
धूमिल धूमिल सी पडती थी
अब आया क्षणिक पतन मेरा
उद्देश्य लिये सन्देश लिये
नव युग की गाथा लिखने को
स्वर्णिम भविष्य का घोष लिये
देखा है मैने जगती पर
जब सिंह दो कदम हटता है
तो दुगनी ताकत लेकर के
वह अपना लक्ष्य पकड़ता है
बस यही लिये आशा मन में
मै अविरत बढता जाता हूँ
नित सृजन हेतु स्वर्णिम युग के
अपना कर्तव्य निभाता हूँ
अपना कर्तव्य निभाता हूँ