यह जगत समर्पित हो जाये
नव युग का नव निर्माण करे
नव नभ पर उदित भाष्कर हो
नव चेतनता अविराम रहे
नव सुमन पल्लवित हो जायें
भृमरो का मधुरिम गान रहे
कोयल की ध्वनि हो कूह कूह
कौवो का भी सम्मान रहे
ऋतु राज आगमन हो जाये
पतझड का तो अवसान रहे
सब जीव अहिंसक हो जायें
भगवान राम का राज रहे
सब सुखद दृष्टी से पोषित हों
सौंदर्य अमरता बना रहे
झरनों की कल कल ध्वनि होवे
नाड़ियों मे धवला धार रहे
यह जलधी पूर्णिमा को उमडे
शशी के प्रति इसका प्यार रहे
नभ में पत इन्द्रधनुष निकाले
भारत की जय जय गान रहे