जिससे मिलकर के तन मन ये पावन बना
ऐसी पहली वो अपनी मुलाकात थी
प्रीत के ग्रंथ की सृष्टि के पंथ की
कुछ नई सी ऋचाओं की शुरुआत थी
आँख से जो हृदय को प्रताड़ित करे
मेरे जीवन में वो ही विधा साथ थी
प्रीत के पृष्ठ को हम समेटे हुए
भाव मन में लिये हम जिये जा रहे
आँख थी खुश मगर था हृदय रो रहा
घूँट जीवन का घुट घुट पिये जा रहे