ये कैसा अन्याय जगत का
जगती का पर्याय गलत सा
जन्म हुआ त्योहार मनाते
अन्त समय क्यो शोक मनाते
अन्तिम पावन सी यात्रा में
आंखो से असगुन बरसाते
क्यों न मृत्यु को हम जीवन मे
होली सा इक पर्व मनाते
अन्तिम यात्रा की विदाई में
गीतों से उल्लास मनाते
कृन्दन करुण करुण सा मिट कर
मधु परि प्लावित प्रकृति निखर कर
जगती मे उल्लास हो रहा
अखिल भुवन में प्राण खो रहा
अखिल भुवन में प्राण खो रहा