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वीरता

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कहा तुम चले गए कहा तुम चले गए,जाने कहा तुम चले गएजिंदगी का ये बोझ देकर हमें,अपने सरे गम देकर हमेंजाने कहा तुम चले गए,हम तो खुद ही मर चुके थेतुमने न जाने ये कैसा बोझ दिया,न जाने मै उठा पाउँगान जान

कोशिश    कोशिशे इंसान को बढ़ना सिखाती हैस्वप्ना के परदे निगाहों से हटाती हैहौसला मत हर गिर ओ मुसाफिरठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैसाधना में दिन तपे है रात दिनकोशिशे ही लक्ष्य को नजदीक ला

बन्दे मातरमकरना था जिन्हे बन्दे मातरमवही अब पिए जा रहे हैनेताओं के घर बात रही है मिठाइयांजनता जनार्दन पिस्ते जा रहे है ॥करना था जिन्हे बन्दे मातरमयुवा भी अब तो पिए जा रहे हैबड़े ऊपर जा रहे हैछोटे पिस्त

विश्वास अगर मन में आ जाऐ, हर बाधा मंजिल बन जाएं, विश्वास जिसे मिल जाता है, वह आगे बढ़ जाता है, जिसने खुद पर विश्वास किया, उसने इतिहास रचाया है, चाणक्य ने लेकर, विश्वास पताका, अखण्ड भारत बनवाया था, राण

भरी दोपहर मे भद्र ने अग्नि जलाया। आग की लप्टे जिस दिशा मे अपनी लाल जिभा दिखा रही थी वहां भद्र चल पड़ा। ये कठिन काम सिर्फ भद्र ही कर सकता था इसलिए कबीले वालों ने उसका चुनाव किया सारा कबीला गैर आर्

वंदे मातरम। वंदे मातरम ।जय हिंद।भारत माता की जय ।इन जयघोष से सारा आकाश गूंज रहा था। सोनपुरा कै लिए बड़े गर्व की बात थी आज उनकी माटी का लाल अपने देश पर न्यौछावर होकर अपनी बेजान शरीर को तिरंगे मे लपेटे

पिछले अध्यायों में हमने पढ़ा कि झारखंड के एमएलए की बेटी की शिखा की शादी की तैयारियाँ हो रही है और उसके कॉलेज के जमाने की सहेली मौलि शादी में आने वाली है। मौलि के आने की खबर से शिखा की खुशी का ठिकाना न

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गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: 22 दिसम्बर 1666, मृत्यु: 7 अक्टूबर 1708 ) सिखों के दसवें गुरु थे । उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने । वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त ए

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