1.माता सरस्वती (विद्या की देवी ब्रह्मा की पत्नी)।2.माता सरस्वती (ब्रह्मा-सावित्री की पुत्री)।3.सावित्री (ब्रह्मा की पत्नी)।4.गायत्री (ब्रह्मा की पत्नी)।5.श्रद्धा (ब्रह्मा की पत्नी)।6.मेधा (ब्रह्मा की
जीवन तो ईश्वर प्रदत्त है, परन्तु हम जगत के प्राणी इसको अपना समझ बैठे है। हम इस शरीर को अपना समझ बैठे है, जो नाशवान है। पता नहीं कि कब यह शून्य हो जाये, कब शिथिल हो जाए। जैसे ही इसमें से आत्मा निकल जात
शिव, शिव शिव शिव नमो शिवाय।शिव शिव शिव शिव नमः शिवाय।[(2)]भोलेनाथ है डमरू बजाए,डम डम डम डम डमरू बजाए। (2)।शिव शिव शिव शिव नमो शिवाय, शिव शिव शिव शिव नमो
जय श्रीकृष्ण। मित्रगण। आप और हम पर कृष्ण कृपा बरसती रहे।दोस्तो पुनर्जन्म की धारणा पर विभिन्न लोग विभिन्न मत रखते आए है।हमारी सनातन परंपरा व धर्म के अनुसार पुन
तप क्या है यह एक सामान्य सा प्रश्न है और जब हम इसके अर्थ को जानने का प्रयास करते है तो मन मे धारणा बनती है कि,कोई साधू या सन्यासी कोई स्थान विशेष पर बैठ
जय श्रीकृष्ण। साथियो ,मुझे खुशी के साथ साथ अपार हर्ष व प्यार का एहसास हो रहा है कि आप को मेरे विवेचनात्मक विचार। कृष्ण कृपा से भा रहे है।आदरणीय गण, यह सब कृष्ण कृपा है व उनका आशीर्वाद है,वो
हमारी सनातन परंपरा उत्कृष्ट परम्परा रही है।उसमे अथाह ज्ञान व जानकरी का समावेश रहा है ।पर वो नीरस न लगे सो इसे संकेत या कहानियो से समझाया गया।अब बौध्दिक विकास
राम नाम के साबुन से जो, मन का मैल छुडाएगा, (2) निर्मल मन के दर्पण मे वो, राम का दर्शन पाएगा। राम नाम के साबुन 2) राम, राम जी,जै,राम राम, राम राम जै जै राम राम (6) हर प्रा
जय श्रीकृष्ण मित्रगण। जय श्रीकृष्ण। आप सबको यह जान कर हैरत होगी कि आप जो स्वय को लेकर भ्रमित है कि आप की जाति फलानी या फलानी है तो यह भ्रम शायद आपका "ब्राह्मण कौन" प
अहम ब्रह्मा अस्मि।क्या इस उक्ति का कुछ लेना देना है ब्राह्मण से ?मेरे मतानुसार हाॅ।बिल्कुल, शतप्रतिशत। क्योकि जो शुद्र से ब्राह्मण हो जाए वो ब्रह्मा।&nbs
जय श्रीकृष्ण गीता को जानने से पूर्व चलिए कुछ terms या शब्द जान ले जो सामान्यतः हम इस ग्रंथ मे पढेगे।व उनके अर्थ को सही से समझ सके यह आवश्यक है हम उन्हे वैसे ही जाने जैसे म
जयश्रीकृष्ण पाठकगण सुधिजन व मित्रगण। आप सब को ह्रदय से नमन।आज मै आपके बीच अपनी एक और पुस्तक लेकर उपस्थित हू श्री गणेश जी व माता श्री सरस्वती देवी से अनुकम्पा पाते हुए श्रीकृ
हरि कौ मुख माइ, मोहि अनुदिन अति भावै । चितवत चित नैननि की मति-गति बिसरावै ॥ ललना लै-लै उछंग अधिक लोभ लागैं। निरखति निंदति निमेष करत ओट आगैं ॥ सोभित सुकपोल-अधर, अलप-अलप दसना । किलकि-किलकि बैन कहत,
नंद-घरनि आनँद भरी, सुत स्याम खिलावै । कबहिं घुटुरुवनि चलहिंगे, कहि बिधिहिं मनावै ॥ कबहिं दँतुलि द्वै दूध की, देखौं इन नैननि । कबहिं कमल-मुख बोलिहैं, सुनिहौं उन बैननि ॥ चूमति कर-पग-अधर-भ्रू, लटकति
दियौ अभय पद ठाऊँ तुम तजि और कौन पै जाउँ। काकैं द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाउँ॥ ऐसौ को दाता है समरथ, जाके दियें अघाउँ। अन्त काल तुम्हरैं सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं दाउँ॥ रंक सुदामा कियौ अजाच
काहे कौं कहि गए आइहैं, काहैं झूठी सौ हैं खाए । ऐसे मैं नहिं जाने तुमकौं, जे गुन करि तुम प्रगट दिखाए । भली करी यह दरसन दीन्हे, जनम जनम के ताप नसाए । तब चितए हरि नैंकु तिया-तन, इतनैहि सब अपराध समाए ॥
मौहिं छुवौ जनि दूर रहौ जू । जाकौं हृदय लगाइ लयौ है, ताकी वाहँ गहौ जू ॥ तुम सर्वज्ञ और सब मूरख, सो रानी अरु दासी । मैं देखत हिरदय वह बैठी, हम तुमकौ भइँ हाँसी ॥ बाँह गहत कछु सरम न आवति, सुख पावति मन
नंद-नंदन तिय-छबि तनु काछे । मनु गोरी साँवरी नारि दोउ, जाति सहज मै आछे ॥ स्याम अंग कुसुमी नई सारी, फल-गुँजा की भाँति । इत नागरि नीलांबर पहिरे, जनु दामिनि घन काँति ॥ आतुर चले जात बन धामहिं, मन अति ह
धन्य धन्य बृषभानु-कुमारी । धनि माता, धनि पिता तिहारे , तोसी जाई बारी ॥ धन्य दिवस, धनि निसा तबहिं, धन्य घरी, धनि जाम । धन्य कान्ह तेरैं बस जे हैं, धनि कीन्हे बस स्याम ॥ धनि मति, धनि रति, धनि तेरौ ह
अचंभो इन लोगनि कौ आवै । छाँड़े स्याम-नाम-अम्रित फल, माया-विष-फल भावै । निंदत मूढ़ मलय चंदन कौं राख अंग लपटावै । मानसरोवर छाँड़ि हंस तट काग-सरोवर न्हावै । पगतर जरत न जानै मूरख, घर तजि घूर बुझावै ।