।।अनुप्रास अलंकार।।
अनुप्रास अलंकार एक प्रमुख शब्दालंकार है।अनुप्रास शब्द ‘अनु’ तथा ‘प्रास’ शब्दों के योग से बना है। ‘अनु’ का अर्थ है :- बार-बार तथा ‘प्रास’ का अर्थ है- वर्ण। अर्थात वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते है। आवृत्ति का अर्थ है किसी वर्ण का एक से अधिक बार आना है।
अतः अनुप्रास अलंकार की परिभाषा बनती है कि"जब काव्य में एक या अनेक वर्ण बार-बार समीपता से आते हैं तब वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।"
उदाहरण :-
1-चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।
2-चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चाँदी के चम्मच से चटाचट चटनी चटाई।
3- खङ्गसिंह के खङकने से खङकती हैं खिङकियाँ। खिङकियों के खङकने से खङकता है खङ्गसिंह।।
अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद हैं
1-छेकानुप्रास 2-वृत्यानुप्रास 3-श्रुत्यानुप्रास 4-लाटानुप्रास 5-अन्त्यानुप्रास
(1) छेकानुप्रास अलंकार
जब काव्य में एक या अनेक वर्णों की एक ही बार आवृत्ति हो( दो बार ही आयें)तो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।छेक का शाब्दिक अर्थ है चतुर। अतः इसे छेकानुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण :-
1-कानन कठिन भयंकर भारी। घोर घाम हिम बार-बयारी।।
प्रस्तुत पद में ’क’, ’भ’, ’घ’ एवं ’ब’ वर्णों का दो-दो बार प्रयोग (एक बार आवृत्ति) हुआ है, इसलिए यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।अन्य उदाहरण भी देखें--
2- मोहनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल।
3- अति आनन्द मगन महतारी।
4- कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि।
मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही।
मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥
5-पास प्रियतम आन बैठो, जीर्ण जीवन नाव में।
6- परम पुनीत भरत-आचरनू।
(2) वृत्यानुप्रास अलंकार
जब काव्य में एक या अनेक वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति (कम से कम तीन या तीन से अधिक बार आयें) होती है तो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :-
1. रघुनंद आनंद कंद कौसल चंद दशरथ नंदनम्।
प्रस्तुत पद में ’अंद (न्द)’ वर्णों का पाँच जगह प्रयोग हुआ है, इसलिए यहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार है।अन्य उदाहरण भी देखें--
2-बिघन बिदारण बिरद बर, बारन बदन बिकास।
बर दे बहु बाढ़े बिसद,बाणी बुद्धि बिलास।।
3-कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में
क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है।
कहे पद्माकर परागन में पौनहू में
पानन में पीक में पलासन पगंत है।।
द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में
देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगरयो बसंत है।।
(3) श्रुत्यानुप्रास अलंकार
जब काव्य में एक ही उच्चारण स्थान वाले वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है-- तबश्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है। यह अनुप्रास सहृदय काव्य रसिकों को सुनने में अत्यंत प्रिय लगता है, इसलिए भी इसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं। उदाहरण:-
1-तुलसिदास सीदत निसदिन देखत तुम्हारि निठुराई।
प्रस्तुत पद में दन्त्य वर्णों का पास-पास अनेक बार प्रयोग हुआ है, अतएव यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है।अन्य उदाहरण भी देखें--
2-तेही निसि सीता पहिं जाई।
त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई॥
3-दिनान्त था थे दिननाथ डूबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
(4) लाटानुप्रास अलंकार
जब काव्य में एक शब्द या एक वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती हैऔर उनके अर्थ एक ही रहते हैं परन्तु अन्य पद के साथ अन्वय करते ही अभिप्राय भिन्न रूप में प्रकट होते है तब वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।लाट देश(आधुनिक दक्षिण गुजरात) के लोगों को अधिक प्रिय होने के कारण इसे लाटानुप्रास अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण:-
1-वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।
अन्य उदाहरण भी देखें--
2-पूत सपूत तो क्यों धन संचै।
पूत कपूत तो क्यों धन संचै।।
3- राम हृदय जाके नहि, बिपति सुमंगल ताहि।
राम हृदय जाके, नहि बिपति सुमंगल ताहि।।
4-तीरथ व्रत साधन कहा, जो निसिदिन हरिगान।
तीरथ व्रत साधन कहा, बिन निसिदिन हरिगान।।
5-मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी।
(5) अन्त्यानुप्रास अलंकार
जब किसी छंद के चरणों के अंत में एक जैसे स्वर या व्यंजन वर्णों का प्रयोग होता है तो वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है। प्रायः प्रत्येक तुकान्त काव्य में अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।उदाहरण:-
1-बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लङी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अन्य उदाहरण भी देखें--
2- गुरु गोविंद दोउ खङे, काकै लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
3-धीरज धरम मित्र अरु नारी।
आपदकाल परखिए चारी।।
4-गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिय दृग दोष बिभंजन।।
कई बार कई अनुप्रास एक साथ होते हैं।जैसे:-
1-मुदित महिपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।।
2-बंदौ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरसअनुरागा ।।
।।धन्यवाद।।