विशेषोक्ति अलंकार-Peculiar Allegation
(विलक्षण आरोप)
परिभाषा:-
सति हेतौफलाभाव:विशेषोक्तिर्निगद्यते-
आचार्य विश्वनाथ : साहित्य-दर्पण।
अर्थात जहाँ कारण के रहने पर भी कार्य नहीं हो वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
कार्य-कारण का विश्वव्यापी प्रसिद्ध नियम है कि बिना कारण के कार्य नहीं होता किन्तु विशेषोक्ति अलंकार में प्रसिद्ध कारण होने पर भी कार्य सम्पन्न नहीं होता।
उदाहरण:-
1:- सखि! दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझासी।।
2:- चतुर सखीं लखि कहा बुझाई।
पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई।
प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥
3-नेताजी की सम्पत्ति कुबेर के समान बढ़ी।
किन्तु वह चुनाव में विनम्र ही बने रहे।
4-लिखन बैठि जाकी सबिहिं गहि-गहि गरब गरूर।
भये ने केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥
5-बरसत रहत अछोह वै, नैन वारि की धार।।
नेकहु मिटति न है तऊ, तव वियोग की झार ॥
6:-नेह न नैननि को कछू उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाय॥
नित्यप्रति जल पूर्ण रहने पर भी प्यास न बुझने में विशेषोक्ति अलंकार है। जल का अभाव नहीं है किन्तु प्यास नहीं बुझ रही।
(6) एक विश्वास की टेक गहें लगि, आस रहे बसि प्रान-बटोही।
हौं घन आनन्द जीवन मूल दई कित प्यासनि मारत मोही॥ ।।धन्यवाद।।