।। दीपक अलंकार - Illuminater।।
जब किसी पद में उपमेय (वर्ण्य, प्रकृत,प्रस्तुत पदार्थ)तथा उपमान (अवर्ण्य, अप्रकृत,अप्रस्तुत पदार्थ) दोनों के लिए एक ही साधारण धर्म होता है तो वहाँ दीपक अलंकार होता है।
प्रस्तुताप्रस्तुतयोदींपकंतु निगद्यते -
आचार्य विश्वनाथ : साहित्यदर्पण।
यह एक सादृश्य गम गम्यौपम्याश्रय मूलक अलंकार है।
तुल्ययोगिता और दीपक में अंतर यह है कि तुल्ययोगिता में प्रस्तुत और प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत और अप्रस्तुत का धर्म समान होता है जबकि दीपक में प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों का समान धर्म बताया जाता है.
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई।
हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
तुलसीदास यहाँ महिसुर एक प्रस्तुत तथा सुर, हरिजन तथा गाय अनेकअप्रस्तुतों का 'सुराई' रूप एकधर्म-संबंध वर्णित हुआ है, इसलिए 'दीपक' अलंकार है।
एक उदाहरण और देखें---
कामिनी कन्त सों, जामिनी चन्द सों,
दामिनी पावस मेघ घटा सों
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै,
हिन्दवान खुमान शिवा सों।
यहाँ प्रस्तुत पदार्थ या उपमेय (हिन्दू सम्राट शिवाजी से शोभित संसार) तथा अप्रस्तुत पदार्थ या उपमानों (कामिनी, यामिनी, दामिनी, मेघ आदि) के लिए एक ही साधारण धर्म (लसै-सुशोभित होना) का प्रयोग हुआ है, अतः यहाँ दीपक अलंकार है।
इसे भी देखें--
देखें ते मन ना भरै, तन की मिटै न भूख ।
बिन चाखै रस ना मिलै, आम, कामिनी, ऊख ।।
यहाँ पर कामिनी उपमेय तथा आम और ऊख उपमान का एक धर्म 'बिन चाखै रस ना मिले 'कहा गया है !
एक उदाहरण जिसमें दस प्रस्तुत और चार अप्रस्तुत का धर्म एक है:-
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा।
अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा
सदा रोगबस संतत क्रोधी।
बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी।
जीवत सव सम चौदह प्रानी॥
(1)कंजूस(2)अति दरिद्र (3)बहुत बूढ़ा,(4)नित्य का रोगी, वाममार्गी, कामी, (1)कंजूस, अत्यंत मूढ़, (2)अति दरिद्र, बदनाम, (3)बहुत बूढ़ा,(4)नित्य का रोगी, निरंतर क्रोधयुक्त रहने वाला, भगवान् विष्णु से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपना ही शरीर पोषण करने वाला, पराई निंदा करने वाला और पाप की खान (महान् पापी रावन )- ये चौदह प्राणी जीते ही शव के समान हैं ।( 10 +04=14)10 प्रस्तुत +04 अप्रस्तुत में एक धर्म संबंध से दीपक अलंकार है।
दीपक अलंकार के प्रमुख भेद-प्रभेद
1.कारक दीपक:
जहाँ अनेक क्रियाओं में एक ही कारक का योग होता है वहाँ कारक दीपक अलंकार होता है.
(A)लेत चढ़ावत खैचत गाढ़े।
काहू न लखा देख सब ठाढ़े।।
(B)कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भवन में करत हैं नैनन ही सो बात।।
2.माला दीपक:
जहाँ पर पूर्वोक्त वस्तुओं से उत्तरोक्त वस्तुओं का एकधर्मत्व स्थापित होता है वहाँ पर माला दीपक अलंकार होता है।
भरत सरिस को राम सनेही।
जगु जप राम रामु जप जेही।।
3.आवृत्ति दीपक:
जहाँ पर अर्थ तथा पदार्थ की आवृत्ति हो वहाँ पर आवृत्ति दीपक अलंकार होता है.
इसके तीन प्रकार पदावृत्ति दीपक, अर्थावृत्ति दीपक तथा पदार्थावृत्ति दीपक हैं....
3.(a)पदावृत्ति दीपक:-
जहाँ भिन्न अर्थोंवाले क्रिया-पदों की आवृत्ति होती है वहाँ पदावृत्ति दीपक अलंकार होता है.
1.तब इस घर में था तम छाया,
था मातम छाया, गम छाया,-भ्रम छाया.
2.सर्व सर्व गत सर्व उरालय
3.(b) अर्थावृत्ति दीपक:-
जहाँ एक ही अर्थवाले भिन्न क्रियापदों की आवृत्ति होती है, वहाँ अर्थावृत्ति दीपक अलंकार होता है.
कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा।
कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा।।
3.(c)पदार्थावृत्ति दीपक:-
जहाँ पद और अर्थ दोनों की आवृत्ति हो वहाँ,पदार्थावृत्ति दीपक अलंकार होता है.
1.भलो भलाइहि पै लहै लहै निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिय अमरता गरल सराहिय मीचु।।
2.राम साधु तुम्ह साधु सयाने।
राम मातु भलि सब पहिचाने।।
विशेष:-
हिन्दी में एक "दीपक देहली" नामक भेद भी विद्वानों को मान्य है----क्योंकि
जिस प्रकार देहली पर दीपक जलकर घर-बाहर सर्वत्र प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार दीपक अलंकार निकटस्थ पदार्थों एवं दूरस्थ पदार्थों का एकधर्म-संबंध वर्णित करता है।
बंदौ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जह।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनि।।
।। धन्यवाद।।