।।अन्योक्ति अलंकार।।
।।अन्योक्ति अलंकार।।
परिभाषा:- जहाँ उपमान(अप्रस्तुत,अप्रत्यक्ष) के वर्णन द्वारा उपमेय (प्रस्तुत,प्रत्यक्ष) की प्रतीति कराई जाती है, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।दूसरे शब्दों में जब काव्य में अप्रस्तुत का वर्णन करके प्रस्तुत का बोध कगया जय तब वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। अन्योक्ति में बात किसी दूसरे पर अर्थात अप्रस्तुत पर रखकर कही जाती है लेकिन कथन का लक्ष्य कोई दूसरा अर्थात प्रस्तुत होता है।
अन्योक्ति' का अर्थ ही है "अन्य(अप्रस्तुत)को माध्यम बनाकर प्रस्तुत के प्रति उक्ति"। अर्थात इस अलंकार में कोई बात सीधे-सादे रूप में न कहकर किसी के माध्यम से कही जाती है। अतः जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।अन्योक्ति अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार की"सारूप्य निबंधना" का पर्यायवाची शब्द भी कहा जा सकता है।उदाहरण
1.नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सौ बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
यहाँ पर अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है। यहाँ उपमान ‘कली’ और ‘भौरे’ के वर्णन के बहाने उपमेय (राजा जय सिंह और उनकी नवोढ़ा नायिका) की ओर संकेत किया गया है।द
2.दस दिन आदर पाइकै, करिले आपु बखान।
जौ लगि काग सराध पखु, तौ लगि तव सनमान ।
यहाँ थोड़े समय के लिए महत्व या सम्मान पाने वाला मनुष्य प्रस्तुत है तथा कौआ अप्रस्तुत है। कौए के माध्यम से आत्मप्रशंसा करने वाले व्यक्ति को घमण्ड से बचने तथा लोगों के साथ असम्मानजनक व्यवहार करने से रोका गया है।
3-स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा देखि विहंग विचारि।
बाज पराये पानि परि , तू पच्छीनु न मारि॥
प्रस्तुत पद में बाज पक्षी के माध्यम से अन्य हिंदू राजाओं को जागृत करने का प्रयत्न किया गया है तथा अन्योक्ति के माध्यम से राजा जयसिंह और औरंगजेब की ओर संकेत किया गया है।
4-काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी
तेरे ही नालि सरोवर पानी।
जल में उत्पति जल में वास ।
जल में नलिनी तोर निवास॥
इस पद में कबीर ने कमलिनी तथा उसके आसपास सरोवर के जल के वर्णन के द्वारा आत्मा तथा परमात्मा की एकता का बोध कराया है। कमलिनी की नाल सरोवर के जल में डूबी है अत: उसके मुरझाने का कोई कारण नहीं है। आत्मा परमात्मा का ही अंश है, यह जल और कमलिनी के सम्बन्ध द्वारा बताया गया है।
5- इहै आस अटकै रहत,अलि गुलाब के मूल।
अइहैं बहुरि बसंत रितु इन डारन के फूल।
6-माली आवत देखकर कलियन करें पुकार ।
फूले-फूले चुन लिये, काल हमारी बार।।
7-कर लै सँघि सराहि कै सबैं रहे गहि मौन।।
रे गंधी मति मंद तू गंवई गाहक कौन ॥
।।। धन्यवाद।।।