।।आक्षेप अलंकार।।
आक्षेप करने का सामान्य अर्थ है दोषारोपण करना। परन्तु साहित्य में आक्षेप एक अलंकार है जिसका अर्थ है निषेध। इस अर्थालंकार में लेखक या कवि अपने इष्टार्थ को निषेध से वर्णित करता है परन्तु वह भी विधिरूप में परिणत हो जाता है। यह वास्तव में निषेध नहीं परन्तु निषेधाभास होता है।
परिभाषा:-
स्वयं कथित बात का किसी कारण विशेष को सोचकर प्रतिषेध सा किया जाना आक्षेप अलंकार है।
इसके अनेक भेद बताये गये हैं जिनमे से तीन मुख्य हैं--
1.उक्ताक्षेप:-
अपने पूर्व कहीं हुई बात का वक्ता स्वयं निषेध समझे--
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई।
सुखद संतसंमत मोहि भाई॥
एक बात नहिं मोहि सोहानी।
जदपि मोह बस कहेहु भवानी।।
2.निषेधाक्षेप:-
पहले निषेध करके फिर दृष्टार्थ को व्यक्त किया जाय--
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक॥
3.व्यक्ताक्षेप:-
प्रगट रूप में जहाँ स्वीकारात्मक हो वहाँ निषेध किया जाय---
राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु।
तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु।
अन्य उदाहरण भी देखें---
1.चलन चहत बन जीवननाथू।
केहि सुकृती सन होइहि साथू॥
की तनु प्रान कि केवल प्राना।
बिधि करतबु कछु जाइ न जाना॥
2.फिरिहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी।
देखिहउँ नयन मनोहर जोरी।
सुदिन सुघरी तात कब होइहि।
जननी जिअत बदन बिधु जोइहि॥
।। धन्यवाद ।।