।।सहोक्ति अलंकार।।
जहाँ कई बातों का एक साथ होना सरल रीति से कहा जाता है वहाँ सहोक्ति अलंकार होता है ।
सह+उक्ति=सहोक्ति अर्थात साथ-साथ उक्ति। इसमें प्रायः सह, समेत, साथ, संग आदि शब्दों के द्वारा एक शब्द दो पक्षों में लगता है, एक में प्रधान रूप से और दूसरे में अप्रधान रूप से ।
जैसे -
1. कीरति अरि कुल संग ही
जलनिधि पहुंची जाय .
2. त्रिभुवन जय समेत बैदेही।
बिनहि बिचारि बरै हठि तेही।।
3.बलु प्रताप बीरता बड़ाई।
नाक पिनाकहि संग सिधाई |
4. प्रथम टंकोर झुकि झारि संसार मद,
चण्ड कोदण्ड रह्यो मण्डि नव खण्ड को ।
चालि अचला अचल, घालि दिगपाल बल,
पालि रिसिराज के बचन परचण्ड को।। सोधु दै ईस को बोधु जगदीश को,
क्रोध उपजाय भृगुनंद बरिबंड को ।
बाँधि वर स्वर्ग को साधि अपवर्ग,
धनुभंग को सबद गयो भेदि ब्रह्माण्ड को ।।
यहाँ पर धनुष तोड़ने के साथ ही साथ अनेक कार्यों का होना दिखाया गया है ।
।।धन्यवाद।।