।। विनोक्ति अलंकार।।
जहाँ पर उपमेय या प्रस्तुत को किसी वस्तु के बिना हीन अर्थात अशोभन या रम्य अर्थात शोभन कहा जाता है वहाँ विनोक्ति अलंकार होता है.
शोभनीय या अशोभनीय बताने के लिए बिना,विना, ऋते, रीते ,रहित अर्थात बिना के कोई न कोई पर्याय आ ही जाते हैं।
कई विद्वान इसी आधार पर शोभन विनोक्ति औऱ अशोभन विनोक्ति नाम से दो भेद भी बता दिये हैं।जो शब्दों से आसानी से पहचाने जाते हैं।
उदाहरण:-
1.जिमि भानु बिनु दिनु प्रान बिनु तनु चंद बिनु जिमि जामिनी।
तिमि अवध तुलसीदास प्रभु बिन समुझि धौं जियँ भामनी।।
2.राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा।
हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ।
श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥
||. Thanks. ||
विशेष:-
कई बार बिना या बिना के पर्याय शब्द विनोक्ति अलंकार के साथ ही साथ प्रतिवस्तूपमा अलंकार में भी आ जाते हैं लेकिन प्रतिवस्तूपमा अलंकार में साधारण धर्म भिन्न-भिन्न शब्दों से कहे जाते हैं जिन्हें स्पष्ट करने के लिए वे आते हैं औऱ विनोक्ति अलंकार में बिना के अर्थ में ही आते हैं
दोनों अलंकारों के पूर्ण लक्षण होने के कारण कई जगह दोनों अलंकार एक साथ होते हैं जैसे:-
भनीति बिचित्र कुकवि कृत जोऊ।
राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधु बदनी सब भांति सवारी।
सोह न बसन बिना बर नारी।।
यहाँ आपको दोनों अलंकार एक साथ मिल रहे हैं।
धन्यवाद