।।परिसंख्या अलंकार।। ।। Special mention।।
परिसंख्या अलंकार-Special mention:-
एक वस्तु की अनेकत्र संभावना होने पर भी, उसका अन्यत्र निषेध कर, एक स्थान में नियमन 'परिसंख्या' अलंकार कहलाता है ।
एकस्यानेकत्रप्राप्तावेकत्रनियमनं परिसंख्या- आचार्य रुय्यक :-अलंकारसर्वस्व।
परिसंख्या (परि + संख्या) में 'परि' वर्जनार्थ अव्यय है तथा 'संख्या' का अर्थ है 'बुद्धि' । इस प्रकार 'परिसंख्या' का अर्थ हुआ- वर्जन-बुद्धि, अर्थात किसी वस्तु का निषेध। कोई वस्तु दूसरी जगहों में भी पायी जा सकती है, उसी का निषेध कर एक स्थान में नियमन परिसंख्या है।
परिभाषा:-
जहाँ किसी वस्तु का दूसरे स्थानों में निषेध कर किसी एक विशेष स्थान पर होना कहा जाय , वहाँ परिसंख्या अलंकार होता है।
उदाहरण-
दंड जतिन कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज।
ज़ीतौ मनसिज सुनिय अस रामचंद्र के राज।।
'दंड', 'भेद', 'जीत' का अन्य जगहों से निषेध कर 'जतिनकर', 'नर्तक नृत्य समाज' 'मनसिज' में नियमन करना परिसंख्या है।
भागेउ बिबेकु सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे।
सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे॥
यहाँ विवेक, ज्ञान,वैराग्य का अन्य स्थानों पर निषेध करके केवल सद्ग्रन्थों में नियमन किया गया है अतः यहाँ भी परिसंख्या अलंकार है।
अति चंचल जहँ चलदलै , विधवा बनी न नारि ।
मन मोह्यो रिसिराज को, अद्धभुत नगर निहारि ।।
यहां पर अवधपुरी में चंचलता केवल पीपल के पत्तों में पाई जाती है, अन्यत्र नहीं
इसी प्रकार ____
मूलन ही की जहाँ अधोगति केसव गाइय ।
होम हुतासन धूम नगर एकै मलिनाइय ।।
दुर्गति दुर्गन ही जो, कुटिल गति सरितन ही में ।
श्रीफल को अभिलाष प्रकट कविकुल के जी में ।।
यहाँ पर भी अधोगति केवल जड़ो की ही है, होम धूम की ही मलिनता है, दुर्गति दुर्गन ही की है, कुटिल गति नदियों की ही है आदि आदि ।
राम के राज्य में वक्रता केवल सुन्दरियों के कटाक्ष में ही थी ।
।।धन्यवाद।।