।।परिणाम अलंकार।।
जहाँ असमर्थ उपमान उपमेय से अभिन्न रहकर किसी कार्य के साधन में समर्थ होता है, वहाँ परिणाम अलंकार होता है।
जब कवि उपमेय के लिए उपमान लाये औऱ वर्णन करते समय केवल और केवल उपमेय का ही उसके गुण क्रिया आदि को लेकर वर्णन करें तो वहाँ परिणाम अलंकार होता है।अर्थ के अन्वव से उपमान -उपमेेेय को एक कर दिया जाता है।उदाहरण:-
1.मेरा शिशु संसार वह दूध पिये परिपुष्ट हो.
पानी के ही पात्र तुम, प्रभो! रुष्ट व तुष्ट हो..
यहाँ पर संसार उपमान शिशु उपमेय का रूप धारण कर ही दूध पीने में समर्थ होता है, इसलिए परिणाम अलंकार है.
2.कर कमलनि धनु शायक फेरत.
जिय की जरनि हरषि हँसि हेरत..
यहाँ पर कमल का बाण फेरना तभी संभव है, जब उसे कर उपमेय से अभिन्नता प्राप्त हो.
3.दुहु कर कमल सुधारत बाना।
कह लंकेश मंत्र लगि काना।।
4.पानि सरोज सोह जयमाला।
अवचट चितए सकल भुवाला।।
।।धन्यवाद।।