।।विरोधाभास अलंकार -Contradiction।।
विरोधाभास’ शब्द ’विरोध+आभास’ के योग से बना है।इस प्रकार जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास हो वहाँ 'विरोधाभास अलंकार' होता है।
विरोधाभास अलंकार के अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण :-
"मोहब्बत एक मीठा ज़हर है"
इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार है।
सुधि आये सुधि जाय
मीठी लगै अँखियान लुनाई
इस अलंकार के अनेक भेद भी माने गए हैं जिनमें से दो भेद सर्वमान्य हैं।
।।1.शुद्ध रूप विरोधाभास।।
1.नाम प्रसाद सम्भु अबिनासी।
साजु अमंगल मंगल रासी।।
2.गरल सुधा रिपु करइ मिताई।
गोपद सिन्धु अनल सितलाई।।
3.या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहि कोय।
ज्यौं ज्यौं बूङै स्याम रंग, त्यौं त्यौं उजलो होय।।’
4.तंत्री नाद कवित्त रस, सरस राग रति रंग।
अनबूङे बूङे तिरे, जे बूङे सब अंग।।’’
5.मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।।
6- विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
केसव जीवनहार को असेस दुःख हर लेत।।
।।2.श्लेष मूलक विरोधाभास।।
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
।। धन्यवाद ।।