दृष्टान्त अलंकार तथा दृष्टांत ,उदाहरण और अर्थान्तरन्यास में अन्तर
दृष्टान्त अलंकार examplification
सादृश्य मूलक अर्थालंकार
परिभाषा:-
।।चेद्विम्बप्रतिविम्बत्वं दृष्टांतस्तदलंकृतिः।।आचार्य कुवलयानंदजी
वर्ण्य अवर्ण्य दुहन को भिन्न धर्म दरसाइ।
जहाँ बिम्ब प्रतिबिम्ब सो सो दृष्टान्त कहाइ।।
आचार्य खर्रा साहब
व्याख्या:-
दृष्टान्त उस अलंकार को कहते हैं जिसमें उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य दोनों में, उपमान, उपमेय और साधारण धर्म का बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाई देता है।
पहले एक बात कही जाती है, फिर उससे मिलती-जुलती दूसरी बात कही जाती है। इस प्रकार उपमेय वाक्य की उपमान वाक्य से बिम्बात्मक समानता प्रकट की जाती है।दृष्टांत का अर्थ होता है-उदाहरण।विशेष जब काव्य में किसी बात अर्थात अज्ञात तथ्य को बिना किसी वाचक शब्द का प्रयोग किये उदाहरण देकर समझाया जाए तो वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है औऱ इनमें बिम्ब (असली रूप)और प्रतिबिम्ब (छाया रूप) भाव होना आवश्यक होता है। यह बिम्ब-प्रतिबिंब भाव उपमेय, उपमान और साधारण धर्म तीनों में होता है ।अन्यथा उदाहरण या अर्थान्तरन्यास अलंकार हो जाता है।उपमेय, उपमान में बिम्ब प्रतिबिम्ब का उल्लेख होना अर्थात किसी वस्तु या घटना कि यथार्त सत्यता को प्रमाणित किया जाना दृष्टान्त कहलाता हैं।
उदाहरण :-
(1)करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरि आवत जात ही, सिलपर परत निशान।।
(2) सठ सुधरहिं सत संगति पाई।
पारस परिस कुधातु सुहाई।
(3) एक म्यान में दो तलवारें कभी नही रह सकती है। किसी और पर प्रेम नारियां,पति का क्या सह सकती है।
(4)पापी मनुज भी आज मुख से राम नाम निकालते
।देखो भयंकर भेड़िये भी, आज आँसू डालते॥
प्रथम पंक्ति में पापीजनों की दुष्टं प्रवृत्ति को भेड़िये के दृष्टान्त द्वारा व्यक्त किया गया है।
(5)फूलहिं फरहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम॥
इस सोरठा के पूर्वाह्न में कहा गया है कि बेंत अमृत की वर्षा होने पर भी फूलते-फलते नहीं हैं। इसकी पुष्टि उत्तरार्ध में यह कहकर की गई है कि मूर्ख के हृदय में ब्रह्मा जी जैसा गुरु मिलने पर भी चेतना नहीं आती। यह बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है।
(6)करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात से, सिल पर परत निसान॥
(7)रहिमन अँसुवा नयन ढरि जिय दुःख प्रगट करेइ ।
जाहि निकारो गेह ते कसन भेद कहि देइ॥
(8)जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग॥
(9)काज परे कुछ और है काज सरे कछु और।
‘हिमन भंवरी के परे, नदी सिरावत मौर।।
(10)बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय।।
रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होय ॥
(11)रहिमन ओछे नर न सों बैर भलौ ना प्रीलि।
काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति विपरीत ॥
(12)कहा बड़ाई जलधि मिलि,गंग नाम भौ धीम।
किहि की प्रभुता नहिं घटी,पर घर गए रहीम।
इस अलंकार से संबंधित बिशेष
जिस स्थान पर दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब- प्रतिबिम्ब भाव होता है, उस स्थान पर दृष्टान्त अलंकार होता है।इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है।
दूसरे शब्दों में इन दोनों (उपमेय -उपमान) के धर्म पृथक होते हैं, परंतु फिर भी दोनों में साम्य दिखाई देता है अर्थात दोनों का साधारण अर्थ भिन्न होते हुए भी उनमें समता सी दिखाई देती है।
उदाहरण
भरतहिं होय न राजमद, विधि हरि हर पद पाइ ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि, छीर सिंधु बिनसाइ।।
इन दोनों वाक्यों में मिलती जुलती बात कही गई है ।
'भरत को बड़े से बड़ा पद मिलने पर भी राजमद नहीं हो सकता ।'
यह प्रस्तुत प्रसंग है और उपमेय वाक्य है।
'कांजी सीकरनि से क्षीर सिंधु का विनाश नहीं हो सकता'
यह अप्रस्तुत वाक्य है और उपमान है ।
इन दोनों वाक्यों में अत्यधिक समानता है ।काव्य-शास्त्रियों की भाषा में दोनों वाक्यों में बिंब प्रतिबिंब भाव है अर्थात गहरा मेल है । भरत के स्थान पर दूसरे वाक्य में क्षीर सिंधु है,राजमद के स्थान पर दूसरे वाक्य में 'कांजी सीकरनि 'है । दोनों वाक्यों में यह बात कही गई है कि पहले पर दूसरे का प्रभाव नहीं पड़ता ।इस तरह की स्थिति से ही दृष्टांत अलंकार होता है ।
दृष्टान्त और उदाहरण अलंकार में अंतर
दृष्टांत अलंकार में वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता। उदाहरण अलंकार में आप देखेंगे कि पहली पंक्ति की बात को दूसरी पंक्ति में उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया जाता है। दोनों वाक्यों की स्थिति तो दृष्टांत जैसी ही है केवल 'जैसे' 'जस''जिमि' 'जैसी' ' कैसी' 'यथा' 'जथा''आदि वाचक शब्द का प्रयोग अधिक होता है। 'जैसे' आदि वाचक शब्द ही दृष्टांत और उदाहरण अलंकार के अन्तर को स्पष्ट करते हैं।
उदाहरण अलंकार के उदाहरणों को देखें
1-बूँद अघात सहहि गिरि कैसे।
खल के बचन संत सह जैसे।।
2-छुद्र नदी भरि चलि उतराई।
जस थोरेहुँ धन खल बौराई।।
3- ससि सम्पन्न सोह महि कैसी।
उपकारी कै संपति जैसी ।।
दृष्टान्त और अर्थान्तरन्यास अलंकार में अंतर
दृष्टांत में उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य समान होते हैं अर्थात सामान्य का सामान्य से विशेष का विशेष से समर्थन किया जाता है। जैसे:-
कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।
बिनु जल चलइ की नाव कोटि जतन पचि पचि मरै।।
लेकिन जब सामान्य कहीं बात का विशेष बात कहकर या विशेष कहीं बात का सामान्य बात कहकर समर्थन किया जाय तब अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है !सामान्य - अधिकव्यापी, जो बहुतों पर लागू हो।
विशेष - अल्पव्यापी, जो थोड़े पर ही लागू हो।
( क ) सामान्य का विशेष बात से समर्थन
1-संगति सुमति न पावही, परे कुमति के धन्ध।
राखो मेलि कपूर में , हींग न होई सुगंध ।।
कुमति से ग्रस्त व्यक्ति को संगति से सुमति नहीं मिलती। इस सामान्य बात का समर्थन 'हींग का कपूर के साथ सुगंधित ना होना' विशेष बात कहकर किया गया है।
2-सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय ।
पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय ।।
'सबल के सब सहायक है निर्बल के नहीं 'इस सामान्य बात का समर्थन 'पवन 'के द्वारा सबल आग को प्रदीप्त करने और निर्बल दीपक को बुझा देने के विशिष्ट कथन द्वारा किया गया है।
3-टेढ़ जानि सब बंदौ काहू।बक्र चंद्रमा ग्रसहि न राहू।
4-कारन ते कारजु कठिन,होय दोष नहि मोर।
कुलिस अस्थि ते उफल ते लोह कराल कठोर।।
5-भलो भलाई पै लहहि लहहि निचाहि नीचू।
सुधा सराहहिं अमरता गरल सराहहिं मीचू।।(ख)विशेष का सामान्य बात से समर्थन
1-रहिमन अँसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रकट करेइ
जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कह देइ।।
2-जो रहीम उत्तम प्रकृृति का करि सकत कुसंंग।
चन्दन विष व्यापत नहि लिपटे रहत भुजंग।।
3-पर घर घालक लाज न भीरा।
बाझ की जान प्रसव के पीरा।।
दृष्टान्त के अन्य उदाहरण
1-काटहिं पइ कदरी फरै कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटहि पइ नव नीच।।
2-जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥
3-राम भजनु बिनु मिटहि न कामा।
थल बिहीन तरु कबहु कि जामा।
।।।।। धन्यवाद ।।।।।