परिकर अलंकार
जब विशेष्य के साथ किसी विशेषण का साभिप्राय प्रयोग हो, तब परिकर अलंकार होता है।
उदाहरण:-
1.सोच हिमालय के अधिवासी, यह लज्जा की बात हाय।
अपने ताप तपे तापों से, तू न तनिक भी शान्ति पाय॥
यहाँ शान्ति न पाना क्रिया के प्रसंग में, 'हिमालय के अधिवासी' यह विशेषण साभिप्राय है। जो शीतल हिमालय का अधिवासी है, वही अपने ही तापों से सन्तप्त रहे तो वस्तुत: लज्जा की बात है।
2-देहु उतरु अनु करहु कि नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं॥
इस विशेषण द्वारा कैकेयी राजा को अपने वाग्जाल में घेर लेती है।
3.गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।
सुरमाया बस बैरिनिहि सुहृद जानि पतिआनि॥
इस विशेषण के द्वारा कैकेयी का मंथरा के मायाजाल में उलझ जाने का वातावरण निर्मित किया गया है।
4. प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें॥जौं कछु कहौं कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही॥
इस विशेषण द्वारा कैकेयी के कोपन स्वभाव की ओर इंगित किया गया है।
इस तरह साभिप्राय विशेषण का प्रयोग परिकर अलंकार की विशेषता और पहचान है।
।।धन्यवाद।।