आकाशी पाखि मैं बंदी अब तेरा,
नयनों में तेरे नभ नया एक देखा,
पलकों में ढककर क्या रखा अरे, बोलो
हँसती जब दिखती है वहाँ उषा-रेखा ।।
उड़ उड़ एकाकी मन वहीं चला जाए
चाहे वह आँखों के तारों के देश
बस जाए ।।
गगन वही देख हुआ विह्वल मन आज ।
फूटा उच्छवास वहीं गीत बहा जाए ।।