युग-युग को पार कर आया आषाढ़ आज मन में,
बजता है किस कवि का छंद आज घन में ।।
धूल हुई मालाएँ जो थीं मिलन की,
गंध बही आती है उनकी पवन में ।।
रेवा के तीर छटा ऐसी थी उस दिन
शिखरों पर श्यामल थी वर्षा ही पल-छिन ।।
पथ को थी हेर रही मालविका क्षण-क्षण
बह आई मेघों के साथ वही चितवन ।।