रखो मत अँधेरे में दो मुझे निरखने ।
तुममें समाई लगती हूँ कैसी, दो यह निरखने ।
चाहो तो मुझको रुलाओ इस बार, सहा नहीं जाता अब
दुःख मिला सुख का यह भार ।।
धुलें नयन अँसुवन की धार, मुझे दो निरखने ।।
कैसी यह काली-सी छाया, कर देती घनीभूत माया ।
जमा हुआ सपनों का भार, खोज खोज जाती मैं हार
मेरा आलोक छिपा कहीं निशा पार,
मुझे दो निरखने ।।