कब सोया था,
जागते ही देखी मैंने
नारंगी की टोकनी
पैरों के पास पड़ी
छोड़ गया है कोई।
कल्पना के पसार पंख
अनुमान उड़ उड़कर जाता है
एक-एक करके नाना स्निग्ध नामों पर।
स्पष्ट जानूं या न जानूं,
किसी अनजान को साथ ले
नाना नाम मिले आकर
नाना दिशाओं से।
सब नाम हो उठे सत्य एक ही नाम में,
दान को हुई प्राप्त
सम्पूर्ण सार्थकता।