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विचार

4 अगस्त 2022

12 बार देखा गया 12

हे मेरे सुन्दर,

चलते-चलते

रास्ते की मस्ती से मतवाले होकर,

वे लोग(जाने कौन हैं वे)जब तुम्हारे शरीर पर

धूल फेंक जाते हैं

तब मेरा अनन्त हाय-हाय कर उठता है,

रोकर कहता हूँ,हे मेरे सुन्दर,

आज तुम दण्डधर बनो,

(विचारक बनकर)न्याय करो.


फिर आश्चर्य से देखता हूँ,

यह क्या!

तुम्हारे न्यायालय का द्वार तो खुल ही हुआ है,

नित्य ही चल रहा है तुम्हारा न्याय विचार .


चुपचाप प्रभात का आलोक झड़ा करता है

उनके कलुष-रक्त नयनों पर;

शुभ्र वनमल्लिका की सुवास

स्पर्श करता है लालसा से उद्दीप्त निःश्वास को;

संध्या-तापसी के हाथों जलाई हुई

सप्तर्षियों की पूजा--दीपमाला

तकती रहती है उनकी उन्मत्तता की ओर--

हे सुन्दर,तुम्हारा न्यायालय (है)

पुष्प-वन में

पवित्र वायु में

तृण समूह पर(चलते रहने वाले)भ्रमर गुंजन में

तरंग चुम्बित नदी- तट पर

मर्मरित पल्लवों के जीवन में.


प्रेमिक मेरे,

घोर निर्दय हैं वे, दुर्बह है उनका बोझ,

लुक-छिप कर चक्कर काटते रहते हैं वे

चुरा लेने के लिये

तुम्हार आभरण,

सजाने के लिये अपनी नंगी वासनाओं को.

उनका आघात जब प्रेम के सर्वांग में लगता है,

(तो)मैं सह नहीं पाता,

आँसू भरी आँखों से

तुम्हें रो कर पुकारा करता हूँ

खड्ग धारण करो प्रेमिक मेरे,

न्याय करो !

फिर अचरज से देखता हूँ,

यह क्या !

कहाँ है तुम्हारा न्यायालय ?

जननी का स्नेह-अश्रु झरा करता है

उनकी उग्रता पार,

प्रणयी का असीम विश्वास

ग्रास कर लेता है उनके विद्रोह शेल को अपने क्षत वक्षस्थल में.

प्रेमिक मेरे,

तुम्हार वह विचारालय(है)

विनिद्र स्नेह से स्तब्ध, निःशब्द वेदना में,

सती की पवित्र लज्जा में,

सखा के ह्रदय के रक्त-पात में,

बाट जोहते हुए प्रणय के विच्छेद की रात में,

आंसुओं-भरी करुणा से परिपूर्ण क्षमा के प्रभात में.



हे मेरे रुद्र,

लुब्ध हैं वे, मुग्ध हैं वे(जो)लांघ कर

तुम्हारा सिंह-द्वार,

चोरी-चोरी,

बिना निमंत्रण के,

सेंध मार कर चुरा लिया करते हैं तुम्हारा भण्डार.

चोरी का वाह माल-दुर्बह है वह बोझ

प्रतिक्षण

गलन करता है उनके मर्म को

(और उनमे उस भार को)

शक्ति नहीं रहती है उतारने की.



(तब मैं)रो-रो कर तुमसे बार-बार कहता हूँ

उने क्षमा करो, रूद्र मेरे.

आँखे खोल कर दहकता हूँ(उम्हारी)वाह क्षमा उतर आती है

प्रचंड झांझा के रूप में;

उस आंधी में धूल में लोट जाते हैं वे,

चोरी का प्रचंड बोझ टुकड़े-टुकड़े होकर

उस आंधी में ना जाने कहाँ जाता है वो.

रूद्र मेरे,

क्षमा तुम्हारी विराजती रही है.

विराजती रहती है.

गरजती हुई वज्राग्नी की शिखा में

सूर्यास्त के प्रलय लेख में,

(लाल-लाल)रक्त की वर्षा में,

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रचनाएँ
रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध रचनाएँ
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बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। विंद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज़्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृति 'गीतांजलि' नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है।
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विश्व है जब नींद में मगन

4 अगस्त 2022
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विश्व है जब नींद में मगन गगन में अंधकार, कौन देता मेरी वीणा के तारों में ऐसी झनकार। नयनों से नींद छीन ली उठ बैठी छोड़कर शयन ऑंख मलकर देखूँ खोजूँ पाऊँ न उनके दर्शन। गुंजन से गुंजरित होकर प

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ओरे मेरे भिखारी !

4 अगस्त 2022
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ओरे, ओरे भिखारी, मुझे किया है भिखारी, और चाहो भला क्या तुम ! ओरे ओरे भिखारी, ओरे मेरे भिखारी, गान कातर सुनाते हो क्यों ।। रोज़ दूँगी तुम्हें धन नया ही अरे, साध पाली थी मन में यही, सौंप सब कुछ दि

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ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी

4 अगस्त 2022
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ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी क्या हुआ उदास हृदय क्यों झरी ।। गंध में तुम्हारी धुला मेरा गान दिशि-दिशि में गूँज उसी की तिरी ।। डाल-डाल उतरी है पूर्णिमा, गंध में तुम्हारी, मिली आज चन्द्रिमा ।

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मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से

4 अगस्त 2022
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मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से उनसे वंचित कर मुझे बचा लिया तुमने। संचित कर रखूंगा तुम्हारी यह निष्ठुर कृपा जीवन भर अपने। बिना चाहे तुमने दिया है जो दान दीप्त उससे गगन, तन-मन-प्राण, द

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अंतर मम विकसित करो

4 अगस्त 2022
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अंतर मम विकसित करो हे अंतरयामी! निर्मल करो, उज्ज्वल करो, सुंदर करो हे! जाग्रत करो, उद्यत करो, निर्भय करो हे! मंगल करो, निरलस नि:संशय करो हे! अंतर मम विकसित करो, हे अंतरयामी। सबके संग युक्

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तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ

4 अगस्त 2022
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तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ, स्वीकार लो। इस बार नहीं तुम लौटो नाथ हृदय चुराकर ही मानो। गुजरे जो दिन बिना तुम्हारे वे दिन वापस नहीं चाहिए खाक में मिल जाएँ वे अब तुम्हारी ज्योति से जीवन ज्योतित

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जन गण मन

4 अगस्त 2022
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न गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा द्राविड़, उत्कल, बंग विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा उच्छल जलधि तरंग तव शुभ नामे जागे तव शुभ आशिष मागे गाहे तव जय गाथा जन गण म

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हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत

4 अगस्त 2022
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हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो घर की दीवारें बने न कोई कारा हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का हो लगन ठीक से ही सब कुछ करने की हों नहीं रूढ़ियाँ रचती

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अगर प्‍यार में

4 अगस्त 2022
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अगर प्‍यार में और कुछ नहीं केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ? कैसी मूर्खता है यह कि चूँकि हमने उसे अपना दिल दे दिया इसलिए उसके दिल पर दावा बनता है,हमारा भी रक्‍त में जलती इच्‍छाओं और आँखों म

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वे तुम्‍हें

4 अगस्त 2022
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वे तुम्‍हें संपदा का समुद्र कहते हैं कि तुम्‍हारी अंधेरी गहराईयों में मोतियों और रत्‍नों का खजाना है, अंतहीन। बहुत से समुद्री गोताखोर वह खजाना ढूंढ रहे हैं पर उनकी खोजबीन में मेरी रूचि नहीं है

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गर्मी की रातों में

4 अगस्त 2022
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गर्मी की रातों में जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी आश्‍चर्य में डूबे मुझ पर तुम्‍हारी उदास आंखें निगाह रखेंगी तुम्‍हारे घूंघट की छाया मेरे हृदय पर टिकी रहेग

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मेरे प्‍यार की ख़ुशबू

4 अगस्त 2022
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मेरे प्‍यार की ख़ुशबू वसंत के फूलों-सी चारों ओर उठ रही है। यह पुरानी धुनों की याद दिला रही है अचानक मेरे हृदय में इच्‍छाओं की हरी पत्तियाँ उगने लगी हैं मेरा प्‍यार पास नहीं है पर उसके स्‍पर

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रोना बेकार है

4 अगस्त 2022
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रोना बेकार है व्‍यर्थ है यह जलती अग्नि इच्‍छाओं की। सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है। जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है। उदास आँखों से देखते आहिस्‍ता क़दमों से दिन की विदाई के साथ तारे उगे

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रास्‍ते में जब हमारी आँखें मिलती हैं

4 अगस्त 2022
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रास्‍ते में जब हमारी आँखें मिलती हैं मैं सोचता हूँ मुझे उसे कुछ कहना था पर वह गुज़र जाती है और हर लहर पर बारंबार टकराती एक नौका की तरह मुझे कंपाती रहती है वह बात जो मुझे उससे कहनी थी यह पतझड़

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पिंजरे की चिड़िया थी

4 अगस्त 2022
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पिंजरे की चिड़िया थी पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में                  वन कि चिड़िया थी वन में एक दिन हुआ दोनों का सामना              क्या था विधाता के मन में वन की चिड़िया कहे सुन पिं

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आरम्भ

4 अगस्त 2022
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कहाँ मिली मैं ? कहाँ से आई ? यह पूछा जब शिशु ने माँ से कुछ रोती कुछ हँसती बोली, चिपका कर अपनी छाती से छिपी हुई थी उर में मेरे, मन की सोती इच्छा बनकर बचपन के खेलों में भी तुम, थी प्यारी-सी गुड़िया ब

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करता जो प्रीत

4 अगस्त 2022
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दिन पर दिन चले गए,पथ के किनारे गीतों पर गीत,अरे, रहता पसारे ।। बीतती नहीं बेला, सुर मैं उठाता । जोड़-जोड़ सपनों से उनको मैं गाता ।। दिन पर दिन जाते मैं बैठा एकाकी । जोह रहा बाट, अभी मिलना तो बाकी

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आए फिर,लौट गए, आए

4 अगस्त 2022
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उड़ती है धूल, कहती : "थे आए, चैतरात,लौट गए, बिना कुछ बताए ।" आए फिर, लगा यही, बैठा एकाकी । वन-वन में तैर रही तेरी ही झाँकी ।। नए-नए किसलय ये, लिए लय पुरानी, इसमें तेरी सुगंध, पैठी, समानी ।। उभरे

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आए फिर,लौट गए, आए

4 अगस्त 2022
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उड़ती है धूल, कहती : "थे आए, चैतरात,लौट गए, बिना कुछ बताए ।" आए फिर, लगा यही, बैठा एकाकी । वन-वन में तैर रही तेरी ही झाँकी ।। नए-नए किसलय ये, लिए लय पुरानी, इसमें तेरी सुगंध, पैठी, समानी ।। उभरे

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धीरे चलो, धीरे बंधु

4 अगस्त 2022
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धीरे चलो, धीरे बंधु,लिए चलो धीरे । मंदिर में, अपने विजन में । पास में प्रकाश नहीं, पथ मुझको ज्ञात नहीं । छाई है कालिमा घनेरी ।। चरणों की उठती ध्वनि आती बस तेरी रात है अँधेरी ।। हवा सौंप जाती है

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झर झर झर जल झरता है

4 अगस्त 2022
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झर झर झर जल झरता है, आज बादरों से । आकुल धारा फूट पड़ी है नभ के द्वारों से ।। आज रही झकझोर शाल-वन आँधी की चमकार । आँका-बाँका दौड़ रहा जल, घेर रहा विस्तार ।। आज मेघ की जटा उड़ाकर नाच रहा है कौन ।

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आज दखिन पवन

4 अगस्त 2022
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आज दखिन पवन । झूम उठा पूरा वन ।। बजे नूपुर मधुर दिक‍ ललना के सुर । हुआ अंतर भी तो आज रुनझुन ।। लता माधवी की हाय आज भाषा भुलाए रहे पत्ते हिलाए करे वंदन ।। पंख अपने उड़ाए, चली तितली ये जाए, देने

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चीन्हूँ मैं चीन्हूँ तुम्हें ओ,विदेशिनी

4 अगस्त 2022
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चीन्हूँ मैं चीन्हूँ तुम्हें ओ, विदेशिनी ! ओ, निवासिनी सिंधु पार की देखा है मैंने तुम्हें देखा, शरत प्रात में, माधवी रात में, खींची है हृदय में मैंने रेखा, विदेशिनी !! सुने हैं,सुने हैं तेरे गान, न

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वन-वन में फागुन लगा, भाई रे !

4 अगस्त 2022
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वन-वन में फागुन लगा, भाई रे ! पात पात फूल फूल डाल डाल देता दिखाई रे !! अंग रंग से रंग गया आकाश गान गान निखिल उदास । चल चंचल पल्लव दल मन मर्मर संग । हेरी ये अवनी के रंग । करते (हैं) नभ का तप भंग

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आया था चुनने को फूल यहाँ वन में

4 अगस्त 2022
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आया मैं चुनने को फूल यहाँ वन में जाने था क्या मेरे मन में यह तो, पर नहीं, फूल चुनना जानूँ ना मन ने क्या शुरू किया बुनना जल मेरी आँखों से छलका, उमड़ उठा कुछ तो इस मन में ।

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चुप-चुप रहना सखी

4 अगस्त 2022
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चुप-चुप रहना सखी, चुप-चुप हीरहना, काँटा वो प्रेम का- छाती में बींध उसे रखना तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं अब तक उसकी क्षुधा, भर दोगी उसमें क्या विष ! जलन अरे जिसकी सब बेधेगी मर्म, उसे खींच बाहर

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जन्मकथा

4 अगस्त 2022
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” बच्चे ने पूछा माँ से , मैं कहाँ से आया माँ ? “ माँ ने कहा, ” तुम मेरे जीवन के हर पल के संगी साथी हो !” जब मैं स्वयं शिशु थी, खेलती थी गुडिया के संग , तब भी, और जब शिवजी की पूजा किया करती थी

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अयि! भुवन मन मोहनी

4 अगस्त 2022
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अयि! भुवन मन मोहनी निर्मल सूर्य करोज्ज्वल धरणी जनक-जननी-जननी।। अयि... अयि! नली सिंधु जल धौत चरण तल अनिल विकंपित श्यामल अंचल अंबर चुंबित भाल हिमाचल अयि! शुभ्र तुषार किरीटिनी।। अयि... प्रथम प

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ओ करबी, ओ चंपा

4 अगस्त 2022
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ओ करबी, ओ चंपा, चंचल हौठीं तेरी डालें । किसको है देख लिया तुमने आकाश में जानूँ ना जानूँ ना ।। किस सुर का नशा हवा घूम रही पागल, ओ चंपा, ओ करबी । बजता है नुपुर ये किसका जानूँ ना ।। क्षण क्षण में चमक

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तुम आओ

4 अगस्त 2022
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तुम नव-नव रूपे एसो प्राणे ! नव रूप लिए प्राणों में तुम आओ । गन्धों रंगों गानों में तुम आओ ।। पुलकित स्पर्शों अंगों तुम आओ । हो चित्त सुधामय हर्षित तुम आओ ।। इन मुग्ध चकित नयनों में तुम आओ

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मेरे बादल में मादल बजे

4 अगस्त 2022
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बादल मेघे मादल बाजे, गुरु गुरु गगन माझे । मेघ बादल में मादल बजे, गगन मेंसघन सघन वो बजे ।। उठ रही कैसी ध्वनि गंभीर, हृदय को हिला-झुला वो बजे । डूब अपने में रह-रह बजे ।। गान में कहीं प्राण में कही

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पथ का वह बंधु

4 अगस्त 2022
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पथ का वह बंधु गंध लिए कुसुमों की पथ का वह बंधु उसका आलोक अरे बंधु वही तेरा है बंधु वही तो । कहे मधु खोजो मधु वही तो ।। बंधु वही तो । उसका अंधियार अभी-अभी यहीं और अभी नहीं वो ।। बंधु वही तो

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विपुल तरंग रे, विपुल तरंग रे

4 अगस्त 2022
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उद्वेलित हुआ गगन, मगन हुए गत आगत उज्ज्वल आलोक में झूमा जीवन चंचल । कैसी तरंग रे ! दोलित दिनकर — तारे — चंद्र रे ! काँपी फिर चमक उठी चेतना, नाचे आकुल चंचल नाचे कुल ये जगत, कूजे हृदय विहंग । विपु

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चुप-चुप रहना सखि

4 अगस्त 2022
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चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना, काँटा वो प्रेम का छाती में बींध उसे रखना । तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं अब तक उसकी क्षुधा, भर दोगी उसमें क्या विष ! जलन अरे, जिसकी सब बींधेगी मर्म, उसे खींच ब

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बजो, रे बंशी, बजो

4 अगस्त 2022
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बजो, रे बंशी, बजो । सुंदरी, चंदनमाला में, अरे मंगल संध्या में सजो । लगे यह मधु-फागुन के मास, पांथ वह आता है चंचल अरे वह मधुकर कंपित फूल नहीं आया आँगन में खिल । लिए रक्तिम अंशुक माथे, हाथ में कंकण

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बह रही आनन्दधारा भुवन में

4 अगस्त 2022
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बह रही आनन्दधारा भुवन में, रात-दिन अमृत छलकता गगन में ।। दान करते रवि-शशि भर अंजुरी, ज्योति जलती नित्य जीवन-किरण में ।। क्यों भला फिर सिमट अपने आप में बंद यों बैठे किसी परिताप में ।। क्षुद्र द

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सोने के पिंजरे में नहीं रहे दिन

4 अगस्त 2022
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सोने के पिंजरे में नहीं रहे दिन । रंग-रंग के मेरे वे दिन ।। सह न सके हँसी-रुदन ना कोई बँधन । थी मुझको आशा— सीखेंगे वो प्राणों की भाषा ।। उड़ वे तो गए कही नही सकल कथा । कितने ही रंगों के मेरे वे द

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परवासी, आ जाओ घर

4 अगस्त 2022
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परवासी, आ जाओ घर नैय्या को मोड़ लो इधर ।। देखो तो कितनी ही बार नौका है नाविक की हुई आर-पार ।। मांझी के गीत उठे अंबर पुकार । गगन गगन आयोजन पवन पवन आमंत्रण ।। मिला नहीं उत्तर पर, मन ने हैं खोले

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आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि !

4 अगस्त 2022
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आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि ! पल्लव पल्लव में मेरे हिल्लोल, हुआ घर-घर अरे कंपन ।। कौन आया ये द्वारे भिखारी, माँग उसने लिए मन-धन ।। जाने उसको मेरा यह हृदय, उसके गानों से फूटें कुसुम । आज अंतर में

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किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार

4 अगस्त 2022
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किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार । कौन, कौन इस निशीथ खोज रहा है किसको आज बार-बार ।। बीत गए कितने दिन, आया था वह अतिथि नवीन, दिन था वह वासन्ती जीवन कर गया मगन पुलक भरी तन-मन में फिर हुआ विलीन ।।

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आज बादल-गगन, गोधूली-लगन

4 अगस्त 2022
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आज बादल-गगन, गोधूली-लगन आई उसके ही चरणों की ध्वनि । कह रहा मन यही आज 'आएगा वह', यही कहता है मन हर पल ।। आँखों छाई ख़ुशी, हैं उठीं वे पुलक, उनमें भर आया देखो ये जल ।। लाया लाया पवन, उसका कैसा परस

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मैंने पाया उसे बार-बार

4 अगस्त 2022
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मैंने पाया उसे बार-बार । उस अचीन्हे को चीन्हे में चीन्हा ।। जिसे देखा उसी में कहीं वंशी बजती अदेखे की ही ।। जो है मन के बहुत पास में, चल पड़ा उसके अभिसार में ।। कैसे चुप-चुप रहा है वो खेल, रूप

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रखो मत अँधेरे में दो मुझे निरखने

4 अगस्त 2022
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रखो मत अँधेरे में दो मुझे निरखने । तुममें समाई लगती हूँ कैसी, दो यह निरखने । चाहो तो मुझको रुलाओ इस बार, सहा नहीं जाता अब दुःख मिला सुख का यह भार ।। धुलें नयन अँसुवन की धार, मुझे दो निरखने ।। कैस

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यदि नहीं चीन्ह मैं पाऊँ, क्या चीन्ह मुझे वह लेगा

4 अगस्त 2022
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यदि नहीं चीन्ह मैं पाऊँ, क्या चीन्ह मुझे वह लेगा । इस नव फागुन की बेला, यह नहीं जानती हूँ मैं ।। निज गान कली में मेरी, वह आकर क्या भर देगा, यह कहाँ जानती हूँ मैं ।। इन प्राणों को हर लेगा । क्या

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हे नवीना

4 अगस्त 2022
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हे नवीना, प्रतिदिन के पथ की ये धूल उसमें ही छिप जाती ना ! उठूँ अरे, जागूँ जब देखूँ ये बस, स्वर्णिम-से मेघ वहीं तुम भी हो ना ।। स्वप्नों में आती हो, कौतुक जगाती । किन अलका[1]-फूलों को केशों सजाती

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मन के मंदिर में लिखना सखि

4 अगस्त 2022
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मन के मंदिर में लिखना सखी नाम लिखना मेरा प्रेम से । मेरे प्राणों के ही गीत से, सुर वो नूपुर का लेना मिला ।। मेरा पाखी मुखर है बहुत घेर रखना महल में उसे धागा ले के मेरे हाथ का एक बंधन बनाना सखी,

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खोलो यह तिमिर-द्वार

4 अगस्त 2022
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खोलो यह तिमिर द्वार रखतीं नीरव चरण आओ । ओ ! जननी सनमुख हो, अरुण अरुण किरणों में आओ ।। पुण्य परस से पुलकित आलस सब भागे । बजे गगन में वीणा जगती यह जागे ।। जीवन हो तृप्त मिले सुधा-रस तुम्हारा । जननी

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जो गए उन्हें जाने दो

4 अगस्त 2022
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जो गए उन्हें जाने दो तुम जाना ना, मत जाना. बाकी है तुमको अब भी वर्षा का गान सुनाना. हैं बंद द्वार घर-घर के, अँधियारा रात का छाया वन के अंचल में चंचल, है पवन चला अकुलाया. बुझ गए दीप, बुझने दो, तु

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किसलय ने पाया क्या उसका संदेश

4 अगस्त 2022
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किसलय ने पाया क्या उसका संदेश । दूर-दूर सुर गूँजा किसका ये आज ।। कैसी ये लय । गगन गगन होती है किसकी ये जय ।। चम्पा की कलियों की शिखा जहाँ जलती, झिल्ली-झंकार जहाँ उठती सुरमय ।। आओ कवि, बंशी लो, प

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जिस पथ पर तुमने थी लिखी चरण-रेखा

4 अगस्त 2022
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जिस पथ पर तुमने थी लिखी चरण रेखा उसको ख़ुद मिटा दिया आज ।। जिस पथ पर बिछे कहीं फूल थे अशोक के, उनको भी घास तले दबे आज देखा ।। खिलना भी फूलों का होता है शेष पाखी भी और नहीं फिर से गाता । दखिन पवन

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यह कौन विरहणी आती

4 अगस्त 2022
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यह कौन विरहणी आती ! केशों को कुछ छितराती । वह म्लान नयन दर्शाती ।। लो आती वह निशि-भोर । देती है मुझे झिंझोर ।। वह चौंका मुझको जाती । प्रातः सपनों में आती। वह मदिर मधुर शयनों में, कैसी मिठास भर

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आलोकित अमल कमल किसने यह खिला दिए

4 अगस्त 2022
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आलोकित अमल कमल किसने ये खिला दिया इस नीले अम्बर को धीरे से जगा दिया । पंख खोल बाहर को आईं चिन्ताएँ उसी कमल-पथ पे ये किसने जुटाईं। वीणा बज उठी शरत् वाणी की आज उसका वह मधुर राग शेपाली लाई ।। म

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बजते नूपुर रुनझुन-रुनझुन

4 अगस्त 2022
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बजते नूपुर रुनझुन रुनझुन कहता मेरा मन उनको सुन 'पहचानूँ उसको पहचानूँ'। बहती मधुऋतु की वायु । लेती कुँजों को छाय । वे कलश और वे कंगन । उसके चरणों से धरणी रह-रह उठती सिहराय ।। पूछे पारुल, वो

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व्याकुल यह बादल की साँझ

4 अगस्त 2022
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व्याकुल यह बादल की साँझ दिन बीता मेरा, बीता ये दिन मेघों के बीच सघन मेघों के बीच । बहता जल छलछल बन की है छाया हृदय के किनारे से आकर टकराया । गगन गगन क्षण क्षण में बजता मृदंग कितना गम्भीर । अनज

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फागुन में आई है माधवी

4 अगस्त 2022
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आई है फागुन में माधवी । आई कहाँ से अचानक । 'जाना मुझे अब जाना ।' कहे वह, पत्ते कहें घेर कानों में उसके, 'ना ना ना ना' नाचें वो ता ता थैय्या ।। तारे कहें ये उससे गगन के, 'आओ गगन के पार, हम तुमको

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आओ आओ फसल काटें

4 अगस्त 2022
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आओ आओ फसल काटें । खेत ही मीत हैं, उनकी सौगात है घर और आँगन रहेंगे भरे, वर्ष भर वे रहेंगे भरे । उनका ही दान यह, धान हम काटते, गान गाते हैं हम, ख़ूब खटते हैं हम । आए बादल उड़े, एक माया रची एक छाय

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आकाशी पाखी मैं, बंदी अब तेरा

4 अगस्त 2022
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आकाशी पाखि मैं बंदी अब तेरा, नयनों में तेरे नभ नया एक देखा, पलकों में ढककर क्या रखा अरे, बोलो हँसती जब दिखती है वहाँ उषा-रेखा ।। उड़ उड़ एकाकी मन वहीं चला जाए चाहे वह आँखों के तारों के देश बस जा

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युग-युग को पार कर आया आषाढ़ आज मन में

4 अगस्त 2022
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युग-युग को पार कर आया आषाढ़ आज मन में, बजता है किस कवि का छंद आज घन में ।। धूल हुई मालाएँ जो थीं मिलन की, गंध बही आती है उनकी पवन में ।। रेवा के तीर छटा ऐसी थी उस दिन शिखरों पर श्यामल थी वर्षा ही

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फागुन की संध्या में आज,

4 अगस्त 2022
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डाल डाल पात पात आए पकड़ में फैलाए हास ।। लाता जो गान ज्वार तारों के बीच आँगन में आज वही मेरे उतरा प्राणों के पास ।। कली कली खिली आज तेरी हँसी से मत्त हुआ फूलों से दखिन वातास ।। शुभ्र, अरे, कैसी

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बीते यह रात उससे ही पहले

4 अगस्त 2022
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बीते ये रात उससे ही पहले दो तुम जला जीवन-प्रदीप, ओ ! मेरी प्रिया अगिन छुआ । लिए हुए दीप शिखा आओगी तुम, सोच यही देख रहा मैं तेरी राह, दोगी जला तुम मेरा ये दीप, कर दोगी दूर अँधेरा । मेरी प्रिया मे

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पुकारा हमको माँ ने आज

4 अगस्त 2022
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पुकारा हमको माँ ने आज, मिले हम जैसे भाई मिलें, एक ही घर में रहकर अरे, पराए होकर कैसे रहें ।। प्राण में आती यही पुकार, सुनाई पड़ता स्वर बस 'आ', वही स्वर उठता है गम्भीर, पकड़ अब किसको कौन रखे ।। जहा

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हेर श्यामल घन नील गगन

4 अगस्त 2022
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हेर श्यामल घन नील गगन याद आए हैं काजल नयन । अधर वे कातर करुणा भरे, देखते थे जो रह-रह अरे, विदा के क्षण ।। झर रहा जल चमके बिजुरी हवा मतवाली वन में तिरी, व्यथा प्राणों में आई फूट, कथा यह किसकी म

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मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन

4 अगस्त 2022
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मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन करते मिलकर अँधियार। दिया बस मुझे यहाँ का ठौर, यहां एकाकी बैठा द्वार ।। रोज़ कितने लोगों के बीच किया करता हूँ कितने काम । यहाँ बस आज तुम्हारी आस, छोड़कर बैठा सारे काम ।। न

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पहने हूँ हार विदा बेला का

4 अगस्त 2022
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पहने हूँ हार विदा बेला का । पल-पल वह वक्ष से मेरे टकराए ।। कुंज कुंज बहे हवा फागुन की, मीठी सुगन्ध वह उसकी जगाए ।। हर क्षण जगाए । शेष हुआ दिन और शेष हुआ पथ भी । मिली मिली छाया वन प्रान्तर में

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द्वार उसके मैं आया

4 अगस्त 2022
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द्वार उसके मैं आया, मैंने द्वार खटखटाया । मैंने साँकल बजाई, मैंने उसको पुकारा, अन्धकार में । बीते-बीते प्रहर, वो आया नहीं पर, अरे, द्वार में ।। भेंट हुई न हुई । भले जाऊँ मैं चला । लौट जाऊँ

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द्वार थपथपाया क्यों तुमने ओ मालिनी

4 अगस्त 2022
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द्वार थपथपाया क्यों तुमने ओ मालिनी पाने को उत्तर, ओ किसने क्‍या मालिनी फूल लिए चुन तुमने, गूँथी है माला मेरे घर अन्धकार, जड़ा हुआ ताला खोज नहीं पाया पथ, दीप नहीं बाला आई गोधूलि और पुँछती सी रोश

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चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना,

4 अगस्त 2022
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चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना, काँटा वो प्रेम का छाती में बींध उसे रखना । तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं अब तक उसकी क्षुधा, भर दोगी उसमें क्या विष ! जलन अरे, जिसकी सब बींधेगी मर्म, उसे खी

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हे नवीना

4 अगस्त 2022
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हे नवीना, प्रतिदिन के पथ की ये धूल उसमें ही छिप जाती ना ! उठूँ अरे, जागूँ जब देखूँ ये बस, स्वर्णिम-से मेघ वहीं तुम भी हो ना ।। स्वप्नों में आती हो, कौतुक जगाती । किन अलका फूलों को केशों सजाती

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किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार

4 अगस्त 2022
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किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार... किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार । कौन, कौन इस निशीथ खोज रहा है किसको  आज बार-बार ।। बीत गए कितने दिन, आया था वह अतिथि नवीन, दिन था वह वासन्ती  जीवन कर गया मगन

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फहरा दो पाल

4 अगस्त 2022
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फहरा दो, फहरा दो, पाल बन्धन सब खोल दो, खोल दो, खोल दो फहरा दो, फहरा दो, पाल उमड़ा है प्रेम-ज्वार उस पर होकर सवार जाएँगे कहीं अरे, पार मुड़ना क्या, हटना क्या फहरा दो, फहरा दो पाल प्रबल पवन,

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सखी आए वो कौन

4 अगस्त 2022
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सखी आए वो कौन, लौट जाए हर दिन, दे दे उसको कुसुम, मेरे माथे से बिन पूछे वो अगर फूल किसने दिया नाम लेना नहीं तुमको मेरी क़सम रोज़ आए वो बैठे यहाँ धूल में एक आसान बना दे बकुल फूल में कितनी करुणा

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दिन पर दिन रहे बीत

4 अगस्त 2022
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देखूँ मैं राह दिन जाते बीत पवन बहे वासन्ती गाऊँ मैं गीत करता सुर-खेल, आया ना मीत बेला यह कठिन बड़ी करती बस छल स्वप्न सा दिखती है मुझको हर पल दिन पर दिन जा रहे रहे अरे बीत आते ना पास दे जा

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क्यों आँखों में छलका जल

4 अगस्त 2022
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क्यों आँखों में छलका जल   क्यों हो आया मन उन्मन सहसा मन में कुछ आया ना आकर भी कुछ आया चहुँओर मधुर नीरवता फिर भी ये प्राण कलपते फिर भी मेरा मन उन्मन यह व्यथा समाई कैसी कैसी यह एक कसक-सी किस

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खोलो तो द्वार

4 अगस्त 2022
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खोलो तो द्वार, फैलाओ बाँहें बाँहों में लो मुझको घेर आओ तो बाहर, बाहर तो आओ अब कैसी देर निबटे हैं कामकाज, चमका ये संध्या का तारा डूबा आलोक वहाँ सागर के पार अरे, डूबा है सारा-का-सारा भर भर के क

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निष्फल कामना

4 अगस्त 2022
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सूरज डूब रहा है वन में अंधकार है, आकाश में प्रकाश. संध्या आँखें झुकाये हुए धीरे धीरे दिन के पीछे चल रही है. बिछुड़ने के विषाद से श्रांत सांध्य बातास कौन जाने बह भी रहा है की नहीं . मैं अपने दोनो

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वधू

4 अगस्त 2022
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'बेला हो गई है, चल पानी भर लायें.' मानो कोई दूर पर पहचाने स्वर में पुकार रहा है कहाँ है वह छाया सखी, कहाँ है वह जल, कहाँ है वह पक्का घाट, कहाँ है वह अश्वत्थ-तल! घर के इक कोने में मैं अकेली और

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व्यक्त प्रेम

4 अगस्त 2022
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तब लज्जा का आवरण क्यों छीन लिया? द्वार तोडकर ह्रदय को बाहर खींच लाए; रास्ते के बीच में आकर आखिर उसे छोड़ दोगे क्या? अपने भीतर मैं अपने को ही लेकर बैठी थी; सबके बीच, संसार के शत कर्मों में निरत

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मेघदूत

4 अगस्त 2022
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कविवर ! कब, कौन वह, विस्मृत-वर्ष था, आषाढ़ का कौन-सा प्रथम पवित्र दिन, जब तुमने मेघदूत लिखा था ? विश्व में जितने भी विरही हैं, उन सबके शोक को तुम्हारे मेघमन्द्र श्लोक ने सघन संगीत में पुंजीभूत क

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अहल्या के प्रति

4 अगस्त 2022
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किस सपने में तुमने लम्बी दिवा-रात्रि काट दी ? अहल्ये ! शिला-रूप में मिट्टी में मिली हुई उस तापस-विहीन उस शून्य छाया में कैसे रहीं जिसकी हवन-शिखाएं निर्वाषित हो चुकी थीं ? वृहत पृथ्वी के साथ तुम

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सोने की नाव

4 अगस्त 2022
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आकाश में मेघ गरज रहे हैं. बड़ी वर्षा हो रही है, किनारे पर अकेला बैठा हूँ , मन में धीरज नहीं है. राशि-राशि धान कट चुका है बाढ़ से भरी हुई प्रखर नदी बह रही है. धान काटते-काटते ही पानी आ गया. एक

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दो पंछी

4 अगस्त 2022
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सोने के पिंजरे में था पिंजरे का पंछी, और वन का पंछी था वन में ! जाने कैसे एक बार दोनों का मिलन हो गया, कौन जाने विधाता के मन में क्या था ! वन के पंछी ने कहा,'भाई पिंजरे के पंछी हम दोनों मिलकर वन

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झूलना

4 अगस्त 2022
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आज निशीथ वेला में प्राणों के साथ मरण का खेल खेलूँगा. पानी झड़ी बाँधकर बरस रहा है, आकाश अंधकार से भरा हुआ है, देखो वारि-धारा में चारों दिशाएँ रो रही हैं, इस भयानक भूमिका में संसार तरंग में मैं अ

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चित्र

4 अगस्त 2022
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तुम क्या केवल चित्र हो, केवल पट पर अंकित चित्र ? वह जो सुदूर (दिखने वाली) निहारिकाएँ हैं जो भीड़ किये हैं आकाश के नीड़ में, वे जो दिन रात हाथ में लालटेन लिये चल रहे हैं अंधकार के यात्री ग्रह,तार

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चंचला

4 अगस्त 2022
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हे विराट नदी, अदृश्य अशब्द तेरी वारि(-धारा) बह रही है निरवधि विराम-विहीन अविरल-अविच्छिन्न (अजस्र). स्पंदन से सिहरता शून्य तेरी रूद्र कायाहीन(गति के)वेग से(फिर) वस्तुहीन प्रवाह के कहा-कहा प्रचंडा

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दान

4 अगस्त 2022
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हे प्रिय, आज इस प्रातःकाल अपने हाथ से, तुम्हें कौन सा दान दूँ ? प्रभात का गान ? प्रभात तो क्लांत हो आता है,तृप्त सूर्य की किरणों से अपने वृन्त पर. अवसन्न गान हो आता है समाप्त. हे बन्धु,क्या

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विचार

4 अगस्त 2022
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हे मेरे सुन्दर, चलते-चलते रास्ते की मस्ती से मतवाले होकर, वे लोग(जाने कौन हैं वे)जब तुम्हारे शरीर पर धूल फेंक जाते हैं तब मेरा अनन्त हाय-हाय कर उठता है, रोकर कहता हूँ,हे मेरे सुन्दर, आज तुम दण्

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प्रेम का स्पर्श

4 अगस्त 2022
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हे भुवन, मैंने जब तक तुम्हें प्यार नहीं किया था तब तक तुम्हारा प्रकाश खोज-खोज कर (भी) अपना सारा धन नहीं पा सका था ! उस समय तक समूचा आकाश हाथ में अपना दीप लिये हर सूनेपन में बाट जोह रहा था.

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माधवी

4 अगस्त 2022
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कितने लाख वर्षों की तपस्या के फल से पृथ्वी-तल पर खिली है आज यह माधवी आनंद की यह छवि युग-युग से ढंकी (चली आ रही) थी अलक्ष्य के वक्ष के आंचल से इसी प्रकार सपने से किसी दूर युगान्तर में,वसन्त कण क

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दो नारियाँ

4 अगस्त 2022
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कौन था वह क्षण जब सृजन के समुद्र मंथन से, पटल का शय्यातल छोड़कर, दो नारियाँ ऊपर आई ? एक थी उर्वशी,सौंदर्यमयी, विश्व के कामना राज्य की रानी, स्वर्ग-लोक की अप्सरा . और दूसरी थी लक्ष्मी,कल्याणमयी,

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हिंसक रात चुपके-चुपके आती है

4 अगस्त 2022
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हिंसक रात चुपके-चुपके आती है दुर्बल हुए शरीर की कमजोर कुण्डी को तोड़कर अंतर में प्रवेश करती है . जीवन के गौरव के रूप का हरण करती रहती है. कालिमा के आक्रमण से मन हार मानता है. इस पराजय की ग्लानि,इ

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सुंदर का पाया है मधुर आशीर्वाद

4 अगस्त 2022
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इस जीवन में सुंदर का पाया है मधुर आशीर्वाद मनुष्य के प्रीति-पात्र पता हूँ उन्हीं की सुधा का आस्वाद दुस्सह दुःख के दिनों में अक्षत अपराजित आत्मा को पहचान लिया मैंने. आसन्न मृत्यु की छाया का जिस दिन

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मधुमय धरती की धूल

4 अगस्त 2022
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मधुमय है यह द्युलोक,मधुमय इस धरती की धूल ह्रदय में धारण कर लिया मैंने यह महामंत्र चरितार्थ जीवन की वाणी. दिन-दिन सत्य का जो उपहार पाया था उसके मधुरस का छय नहीं . इसलिए मृत्यु के अंतिम छोर पर गूं

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सूनी चौकी

4 अगस्त 2022
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लू झाँ-झाँ करती है निर्जन दुपहरिया में. सूनी चौकी की ओर देखता हूँ नाम को भी सांत्वना नहीं वहाँ. उसके संपूर्ण ह्रदय में हताश की भाषा हाहाकार करती मानो. करुना-भरी शून्यता की वाणी उठती है मरम उस

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खो गया हूँ आज अपने जन्मदिन में

4 अगस्त 2022
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मैं अपने इस जन्मदिन में खो गया हूँ. चाहता हूँ, जो लोग मेरे बन्धु हैं, उनके कर-स्पर्श के भीतर से, मर्त्यलोक के अंतिम प्रीतिरस के रूप में, जीवन का चरम प्रसाद ले जाऊँ, मनुष्य का अंतिम आशीर्वाद ले जा

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रूप-नारान के तट पर

4 अगस्त 2022
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रूप नारान के तट पर जाग उठा मैं . जाना,यह जगत् सपना नहीं है. लहू के अक्षरों में लिखा अपना रूप देखा; प्रत्येक आघात प्रत्येक वेदना में अपने को पहचाना . सत्य कठिन है कठिन को मैंने प्यार किया वह

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प्रथम दिन का सूर्य

4 अगस्त 2022
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प्रथम दिन के सूर्य ने अस्तित्व के नूतन आविर्भाव से पूछा, "तुम कौन हो?" उत्तर नहीं मिला. वर्ष पर वर्ष चले गये. दिन के अन्तिम सूर्य ने, पश्चिमी समुद्र के तट पर निस्तब्ध खड़ी संध्या के अंतिम प्र

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तुम्हारी सृष्टि का पथ

4 अगस्त 2022
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हे छलनामयी ! विचित्र माया-जाल से तुमने अपनी सृष्टि के पथ को आकीर्ण कर रखा है. सरल जीवन पर तुमने,निपुण हाथों से, मिथ्या विश्वासों का जाल बिछा रखा है. इसी प्रवंचना में तुमने अपने महत्त्व की मुहर ल

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जीवन देवता

4 अगस्त 2022
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हे अंतरतम, क्या मेरे अंतर में आकर तुम्हारी सारी प्यास मिट गई है ? अपने वक्ष को दलित द्राक्षा के समान निठुरता से निचोर कर सुख-दुःख को लक्ष-लक्ष धाराओं से तुम्हें पात्र भरकर दिया है मैंने. कितने वर

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दीदी

4 अगस्त 2022
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आवा लगाने के लिये नदी के तीर पर मजदूर मिट्टी खोद रहे हैं. उन्हीं में से किसी की छोटी-सी इक बिटिया बार-बार घाट पर आवा-जाई कर रही है, कभी कटोरी उठाती है,कभी थाली, कितना घिसना और मांजना चला है! दिन

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सुरलोक के नृत्य-उत्सव में

4 अगस्त 2022
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सुरलोक के नृत्य-उत्सव में यदि क्षण-भर के लिए क्लान्त-श्रान्त ऊर्वशी से होता कहीं ताल-भंग देवराज करते नहीं मार्जना। पूर्वार्जित कीर्ति उसकी अभिशाप तले होती निर्वासित। आकस्मिक त्रुटि को भी न करता

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अनिःशेष प्राण

4 अगस्त 2022
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अनिःशेष प्राण अनिःशेष मारण के स्रोत में बह रहे, पद पद पर संकट पर हैं संकट नाम-हीन समुद्र के जाने किस तट पर पहुंचने को अविश्राम खे रहा नाव वह, कैसा है न जाने अलक्ष्य उसका पार होना मर्म में बैठा व

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अकेला बैठा हूं यहा

4 अगस्त 2022
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अकेला बैठा हूं यहाँ यातायात पथ के तट पर। बिहान-वेला में गीत की नाव जो लाये हैं खेकर प्राण के घाट पर आलोक-छाया के दैनन्दिन नाट पर, संध्या-वेला की छाया में धीरे से विलीन हो जाते थे। आज वे आये हैं

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अजस्र है दिन का प्रकाश

4 अगस्त 2022
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अजस्र है दिन का प्रकाश, जानता हूं एक दिन आँखों को दिया था ऋण। लौटा लेने का दावा जताया आज तुमने, महाराज! चुका देना होगा ऋण, जानता हूं, फिर भी क्यों संध्या दीप पर डालते हो छाया तुम ? रचा है तुमन

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इस महा विश्व में

4 अगस्त 2022
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इस महा विश्व में चलता है यंत्रणा का चक्र-घूर्ण, होते रहते है ग्रह-तारा चूर्ण। उत्क्षिप्त स्फुलिंग सब दिशा विदिशाओं में अस्तित्व की वेदना को प्रलय दुःख के रेणु जाल में व्याप्त करने को दौड़ते फिरत

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अरी ओरी, मेरी भोर की चिरैया गौरैया

4 अगस्त 2022
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अरी ओरी, मेरी भोर की चिरैया गौरैया, कुछ कुछ रहते अँधेरे में फटते ही पौ नींद का नशा जब रहता कुछ बाकी तब खिड़की के काँच पर मारती तुम चोंच आकर, देखना चाहती हो ‘कुछ खबर है क्या’। फिर तो व्यर्थ झूठमूठ

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गहन इस रजनी में

4 अगस्त 2022
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गहन इस रजनी में रोगी की धुँधली दृष्टि ने देखा जब सहसा तुम्हारा जाग्रत आविर्भाव, ऐसा लगा, मानो आकाश में अगणित ग्रह-तारे सब अन्तहीन काल में मेरे ही प्राणों कर रहे स्वीकार भार। और फिर, मैं जानता

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लगता है मुझे ऐसा हेमन्त

4 अगस्त 2022
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लगता है मुझे ऐसा हेमन्त की दुर्भाषा- कुज्झटिकाकी ओर आलोक की कैसी तो एक भर्त्सना दिगन्तकी मूढ़ता को दिखा रही तर्जनी। पाण्डुवर्ण हुआ आता सूर्योदय आकाश के भाल पर, धनीभूत हो रही लज्जा, हिम-सिक्त अरण

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हे प्राचीन तमस्विनी

4 अगस्त 2022
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हे प्राचीन तमस्विनी, आज मैं रोग की विमिश्र तमिस्रा में मन ही मन देख रहा- काल के प्रथम कल्प में निरन्तर निविड़ अन्धकार में बैठी हो सृष्टि के ध्यान में कैसी भीषण अकेली हो, गूंगी तुम, अन्धी तुम। अ

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मेरे दिन की शेष छाया

4 अगस्त 2022
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मेरे दिन की शेष छाया बिलाने मूल-तान में गुंजन उसका रहेगा चिरकाल तक, भूल जायेंगे उसके मानी सब। कर्मक्लान्त पथिक जब बैठेगा पथ के किनारे कहीं मेरी इस रागिणी का करुण अभास स्पर्श करेगा उसे, नीरव हो

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जगत युगों से हो रही जमा

4 अगस्त 2022
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जगत युगों से हो रही जमा सुतीव्र अक्षमा। अगोचर में कहीं भी एक रेखा की होते ही भूल दीर्घ काल में अकस्मात् करती वह अपने को निर्मूल। नींव जिसकी चिरस्थायी समझ रखी थी मन में नीचे उसके हो उठता है भूकम्प

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सवेरे उठते ही देखा निहारकर

4 अगस्त 2022
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सवेरे उठते ही देखा निहारकर घर में चीजें बिखरी पड़ी है सब, कागज कलम किताब सब कहाँ तो रखी हैं, ढूंढ़ता फिरता हूं, मिलती नहीं कहीं भी ढ़ूढ़े। मूल्यवान कहाँ क्या जमता है बिखरा सब, न कहीं कोई समता है

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यदि दीर्घ दुःख रात्रि ने

4 अगस्त 2022
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यदि दीर्घ दुःख रात्रि ने अतीत के किसी प्रान्त तट पर जा नाव अपनी खेनी कर दी हो शेष तो नूतन विस्मय में विश्व जगत के शिशु लोक में जाग उठे मुझमें उस नूतन प्रभात में जीवन की नूतन जिज्ञा

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नदी किसी एक कोने में सूखी सड़ी डाली एक

4 अगस्त 2022
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नदी किसी एक कोने में सूखी सड़ी डाली एक स्रोत को पहुंचाये यदि बाधा तो स्वयं सृष्टि शक्ति बहते हुए कूड़े से करती है प्रकट वहाँ रचना की चातुरी - छोटे द्वीप गढ़ती है, लाती खींच शैवाल दल तीरका जो भी क

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अस्वस्थ शरीर यह

4 अगस्त 2022
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अस्वस्थ शरीर यह कौन सी अवरुद्व भाषा कर रहा वहन? वाणी क्षीणता मुह्यमान आलोक में रच रही अस्पष्ट की कारा क्या? निर्झर जब दौड़ता है परिपूर्ण वेग से बहुत दूर दुर्गम को करने जय- गर्जन उसका तब अस्वीका

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अवसन्न आलोक की

4 अगस्त 2022
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अवसन्न आलोक की शरत की सायाह्न प्रतिमा असंख्य नक्षत्रों की शान्त नीरवता स्तब्ध है अपने हृदय गगन में, प्रति क्षण में है निश्वसित निःशब्द शुश्रूषा। अन्धकार गुफा से निकलकर जागरण पथ पर हताश्वास रजनी

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कब सोया था

4 अगस्त 2022
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कब सोया था, जागते ही देखी मैंने नारंगी की टोकनी पैरों के पास पड़ी छोड़ गया है कोई। कल्पना के पसार पंख अनुमान उड़ उड़कर जाता है एक-एक करके नाना स्निग्ध नामों पर। स्पष्ट जानूं या न जानूं, किसी

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संसार के नाना क्षेत्र नाना कर्म में

4 अगस्त 2022
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संसार के नाना क्षेत्र नाना कर्म में विक्षिप्त है चेतना मनुष्य को देखता हूं वहाँ मैं विचित्र मध्य में परिव्याप्त रूप में; कुछ है असमाप्त उसका और कुछ अपूर्ण भी। रोगी के कक्ष में घनिष्ट निविड़ परिचय

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सजीव खिलौने यदि

4 अगस्त 2022
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सजीव खिलौने यदि गढ़े जाते हों विधाता की कर्मशाला में, क्या दशा होगी उनकी - यही कर रहा अनुभव मैं आज आयु-शेष में। यहाँ ख्याति मेरी पराहत है, उपेक्षित है गाम्भीर्य मेरा, निषेघ और अनुशासन में सोना

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रोग-दुःख रजनी के निरन्ध्र अन्धकार में

4 अगस्त 2022
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रोग-दुःख रजनी के निरन्ध्र अन्धकार में जिस आलोक-बिन्दु देखता मैं क्षण-क्षण में। मन ही मन सोचता हूं, क्या है उसका निर्देश। पथ का पथिक जैसे खिड़की रन्ध्र से उत्सव-आलोक का पता कुछ खण्डित आभास है, उसी

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सवेरे ज्यों ही खुली आँख मेरी

4 अगस्त 2022
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सवेरे ज्यों ही खुली आँख मेरी फूलदानी में देखा गुलाब फूल; प्रश्न उठा मन में युग-युगान्तर के आवर्तन में सौन्दर्य के परिणाम में जो शक्ति लाई तुम्हें अपूर्ण और कुत्सित के पीड़न से बचाकर पद पद पर वह

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दिन के मध्याह्न में

4 अगस्त 2022
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आधी-आधी नींद और आधा-आधा जागरण सम्भव है सपने में देखा था - मेरी सत्ता का आवरण केंचुली सा उतरा और जा पड़ा अज्ञात नदी-स्रोत में साथ लिये मेरा नाम, मेरी ख्याति, कृपण का संचय जो कुछ भी था, कलंक्की ल

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आरोग्य की राह में

4 अगस्त 2022
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आरोग्य की राह में अभी-अभी पाया मैंने प्रसन्न प्राणों का निमन्त्रण, दान किया उसने मुझे नव-दृष्टि का विश्व-दर्शन। प्रभात के प्रकाश में मग्न है वह नीलाकाश पुरातन तपस्वी का ध्यानासन, कल्प के आरम्भ

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मोर में ही देखा आज निर्मल प्रकाश में

4 अगस्त 2022
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मोर में ही देखा आज निर्मल प्रकाश में निखिल का शान्ति अभिषेक, नतमस्तक हो वृक्षों ने धरणी को किया नमस्कार। जो शान्ति विश्व के मर्म में है ध्रुव प्रतिष्ठित उसने की है रक्षा उनकी बार-बार युग-युगान्तर

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जीवन के दुःख शोक ताप में

4 अगस्त 2022
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जीवन के दुःख शोक ताप में वाणी एक ऋषि की ही समाई मेरे चित्त में दिन-दिन होती ही रहती वह उज्जवल से उज्जवलतर  ‘विश्व का प्रकाश है आनन्द अमृत के रूप में।’ अनेक क्षुद्र विरुद्ध प्रमाणों से महान को करन

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अपनी इस कीर्ति पर नहीं है विश्वास मेरा

4 अगस्त 2022
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अपनी इस कीर्ति पर नहीं है विश्वास मेरा। मैं जानता हूं काल सिन्धु इसे निरन्तर निज तरंग आघात से दिन पर दिन करता ही रहेगा लुप्त, अपना विश्वास मेरा अपने ही आपको। दोनों साँझ भर-भर उस पात्र को इस विश

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