हे प्राचीन तमस्विनी,
आज मैं रोग की विमिश्र तमिस्रा में
मन ही मन देख रहा-
काल के प्रथम कल्प में निरन्तर निविड़ अन्धकार में
बैठी हो सृष्टि के ध्यान में
कैसी भीषण अकेली हो,
गूंगी तुम, अन्धी तुम।
अस्वस्थ शरीर में क्लिष्ट रचना का जो प्रयास
उसी को देखा मैंने
अनादि आकाश में।
पंगु रो-रो उठता है निद्रा के अतल-तल में
आत्म-प्रकाश की क्षुधा विगलित लौह गर्भ से
छिपे-छिपे जल उठती है गोपन शिखाओं में।
अचेतन ये मेरी उंगलियाँ
अस्पष्ट शिल्प की माया बुनती ही जाती है;
आदिमहार्णव गर्भ से
अकस्मात् फूल-फूल उठते हैं
स्वप्न प्रकाण्ड पिण्ड,
विकलांग असम्पूर्ण सब-
कर रहे प्रतीक्षा घोर अन्धकार में
काल के दाहने हाथ से मिलेगी उनहें कब पूर्ण देह,
विरूप् कदर्य सब लेंगे सुसंगत कलेवर
नव सूर्य के आलोक में।
मूर्तिकार पढ़ देगा मन्त्र आकर,
धीरे-धीरे उद्घाटित करेगा वह विधाता की अन्तर्गूढ़ संकल्प की धारा को।
रवींद्रनाथ टैगौर की अन्य किताबें
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से 'रबी' बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। टैगोर के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया में बालक को अधिक-से-अधिक क्रियाशील रखने का प्रयास करना चाहिए। टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक और सहस्रो गाने भी लिखे हैं। वे अधिकतम अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते हैं। गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही हैं। टैगोर ने इतिहास, षाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखी थीं। 1901 में बोलपुर के समीप रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम के नाम से एक विद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में शान्तिनिकेतन के नाम से पुकारा गया। इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुसार दुनियाभर की किताबें पढ़ाई जाती हैं. - भारत की पुरानी आश्रम शिक्षा पद्धति लागू है, जिसके अनुसार पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ाई होती है. रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति का सानिध्य काफी पसंद था शांति निकेतन, शांति और शांति का एक वास्तविक निवास, 1921 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व प्रसिद्ध विश्व भारती विश्वविद्यालय के लिए प्रसिद्ध है । खुले में आयोजित कक्षाओं के साथ, विश्वविद्यालय में शिक्षा प्रदान करने के लिए एक अनूठी पहल है। इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुसार दुनियाभर की किताबें पढ़ाई जाती हैं. - भारत की पुरानी आश्रम शिक्षा पद्धति लागू है, जिसके अनुसार पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ाई होती है. रवींद्रनाथ टैगोर को प्रकृति का सानिध्य काफी पसंद था टैगोर ने शिक्षा के इस प्राचीन आदर्श को भी व्यापक रूप दिया है। उनका कहना है कि शिक्षा न केवल आवागमन से वरन् आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और मानसिक दासता से भी मनुष्य को मुक्ति प्रदान करती है। अत: मनुष्य को शिक्षा द्वारा उस ज्ञान का संग्रहण करना चाहिये जो उसके पूर्वजों द्वारा संचित किया जा चुका है, यही सच्ची शिक्षा है। उनके अनुसार, "शिक्षा का अर्थ मन को उस परम सत्य का पता लगाने में सक्षम बनाना है जो हमें धूल के बंधन से मुक्त करता है और हमें चीजों का नहीं बल्कि आंतरिक प्रकाश का, शक्ति का नहीं बल्कि प्रेम का धन देता है । यह ज्ञानोदय की एक प्रक्रिया है। यह दैवीय धन है। यह सत्य की प्राप्ति में मदद करता है ”। 3 जून, साल 1915 में नोबेल पुरस्कार विजेता, बांग्ला लेखक और कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने नाइटहुड यानि सर की उपाधि से नवाज़ा था। लेकिन, 13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोधस्वरूप उन्होंने नाइटहुड की उपाधि ब्रिटिश सरकार को लौटा दी। कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की और अपने जीवन के अन्तिम समय ७ अगस्त १९४१ में उन्होने शान्तिनिकेतन कोलकाता ले जाया गया जहां उन्होने अंतिम सांस ली और पंचतत्व में विलीन हो गए | D