वो यकीनन दो बातें चाहते हैं। पहली तो ये कि अपने मारे गए साथियों का बदला आम लोगों को मार कर लें। दूसरा वो ये चाहते हैं कि इन लाशों को देखने के बाद देश पर असर कुछ ऐसा हो कि हिंदू-मुस्लिम के बीच दरार बड़ी हो जाए। ऐसा होने से उनके पाले में कुछ और लोग जाकर बंदूकें उठा लेंगे। मैंने कुछ दिन पहले लिखा था कि कश्मीर अब राजनीति क से धार्मिक समस्या में तब्दील हो गया है। दोनों देशों से अलग रहने की घाटी की लड़ाई कश्मीरियत के नाम पर शुरू हुई थी, उसमें किसी धर्म का कोई रोल ही नहीं था। कश्मीर को किसी भी देश में ना मिलाने की चाहत रखनेवाला राजा एक हिंदू था, उसका समर्थन करनेवाला पाकिस्तान का जिन्ना था। कमाल ये है कि हिंदुस्तान में कश्मीर को मिलाने की लड़ाई एक सेकुलर शेख अब्दुल्ला भारत के पीएम नेहरू के साथ मिलकर लड़ रहा था।
देसी-विदेशी इतिहासकारों को पढ़ने पर तो यही कुछ तथ्य निकले हैं, बाकी कठमुल्लों की तारीख और हिंदूवादियों के फिक्शन से भरे इतिहास का तो खैर कुछ ठिकाना ही नहीं।
हरि सिंह ‘’इस्लामिक पाकिस्तान’’ और ‘’सेक्युलर भारत’’ में से किसी को चुनने को राजी नहीं थे। वो बस अलग अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन आज लड़ाई इस्लामिक बनाम गैर इस्लामिक बनाने की कोशिश हो रही है। इसी कड़ी में अमरनाथ के यात्रियों पर हमला किया गया है। कल से कुछ लोगों की पोस्ट देख रहा हूं। उनकी एक-दूसरे के खिलाफ नफरत से भरी पोस्ट ही ज़ाहिर कर रही हैं कि आतंकी अपनी दूसरी मुराद को पूरी करने में कुछ हद तक कामयाब हो रहे हैं। मुसलमान इन आतंकियों से कितने प्रभावित होते हैं ये तो नहीं मालूम, लेकिन हिंदूवादियों से आतंकी मनचाही प्रतिक्रिया पा लेते हैं। टूल की तरह इनका इस्तेमाल अधिक सरल है। बस एक हमला करो और देशभर में आम मुसलमान के खिलाफ हिंदू मन को नफरत से ज़रा और भर दो।
जब गोलियों और खून से सामना हो रहा हो तब अमन की बात करनेवाला बेवकूफ लगता है मगर ध्यान से देखिए कि इसके अलावा इन समस्याओं का कोई समाधान भी नहीं (कश्मीर पर बम बरसाने या सब मुसलमानों को मार देने वाले फालतू कमेंट से बचिएगा)। मुझ पर यकीन रखते हों तो भरोसा कीजिए, जितने दुखी हम पेशावर वाले स्कूल हमले पर थे.. उससे रत्ती भर कम मैंने अपने मुस्लिम दोस्तों को कल के हमले पर नहीं देखा। किसी आतंकी वारदात से मत बहकिए। उन आतंकियों को मुसलमानों की भी कोई खास फिक्र नहीं है। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि हिंदू तीर्थयात्रियों को मार कर वो देशभर के हिंदू कट्टरपंथियों को मुसलमानों पर हमले की वजह मुहैया करा रहे हैं। दरअसल वो तो चाहते ही ये हैं। अगर उनकी चाहत पूरी करनी है तो शौक से फेसबुक पर ज़हर बोइए। कम से कम मैं इस बात से संतुष्ट हूं कि मुझे कोई आतंकी अपने हिसाब से चला नहीं सकता।
मूल लेखक : नितिन ठाकुर