राजा और मंत्री का प्रवेश
राजा : (चिन्ता सहित) यही तो बड़ा आश्चर्य है कि इतने राजपुत्र आए पर उनमें मनुष्य एक भी नहीं आया। इन सबों का केवल राजवन्श में जन्म तो है पर वास्तव में ये पशु हैं। जो मैं ऐसा जानता तो अपनी कन्या को ऐसी बड़ी प्रतिज्ञा न करने देता पर अब तो उसे मिटा भी नहीं सकता। अब निश्चय हुआ कि हमारी विद्या की विद्या केवल दोषकारिणी हो गई। हाँ, क्यों मंत्री तुम कोई उपाय सोच सकते हो।
मंत्री : महाराज आप जो आज्ञा करते हैं सो सच है। लक्ष्मी और सरस्वती दोनों एक स्थान पर नहीं रहतीं। इससे ऐसा भाग्यशाली वर मिलना अत्यंत कठिन है। इन दिनों मैंने सुना है कि कांचीपुर के राजा गुणसिन्धु का पुत्र सुन्दर युवराज अत्यन्त सुन्दर अनेक शास्त्रों में शिक्षित और बड़ा कवि है और उसने अनेक पंडितों को शास्त्रार्थ में जीता है।
राजा : क्या गुणसिन्धु राजा को ऐसा गुणवान् पुत्र हो और उसका समाचार हम अब तक न जानें।
मंत्री : महाराज मैंने निश्चय सुना है वह अपूर्व सुन्दर और अद्वितीय पंडित है। इससे मैं अनुमान करता हूँ कि जिसने संसार की सब विद्या पाई है वही हमारी राजकुमारी विद्या को भी पावेगा। यद्यपि ईश्वर की इच्छा और होनहार अत्यन्त प्रबल है तथापि हमको निश्चिन्त होके बैठ रहना उचित नहीं है। इस कहने का अभिप्राय यह है कि आप कांचीपुर में किसी को समाचार लेने के हेतु भेजिए।
राजा : ठीक है, तो विलम्ब क्यों करते हो। शीघ्र ही वहाँ किसी को भेजना चाहिए। (द्वार की ओर देखकर) कोई है! गंगा भाट को अभी बुला लाओ।
प्रतिहारी आकर
प्रतिहारी : जो आज्ञा महाराज। (जाता है)
राजा : (खेदपूर्वक) विद्यावती का केवल यह अदृष्ट है कि अब तक कहीं विवाह नहीं ठहरता। देखें क्या होता है।
मंत्री : महाराज आज तक कोई कन्या क्वांरी नहीं रही। सीता और द्रौपदी इत्यादि जिनके बड़े कठिन प्रण थे उनका तो विवाह हो ही गया। जब ईश्वर कन्या उत्पन्न करता है तो उसका वर भी उसी के साथ उत्पन्न कर देता है। अतएव आपको सोच करना न चाहिए।
(प्रतिहारी के सहित गंगा भाट का प्रवेश)
गंगा भाट : वीरसिंह महाराज की दिन दिन ही जय होय।
तेज बुद्धि बल बढ़ै शत्रु रहै नहिं कोय।।
राजा : कविराज अब तक तुमने अनेक देशों में भ्रमण किया और अनेक राजपुत्रों को यहाँ ले आए परन्तु उनमें सुपात्र एक भी न आया। अब हम सुनते हैं कि कांचीपुर के राजा गुणसिन्धु के पुत्र सुन्दर ने अनेक विद्या उपार्जित की है। इससे हम सोचते हैं कि वही हमारी विद्या के योग्य भी होगा। इससे तुम शीघ्र वहाँ गमन करो और राजपुत्र को अपने साथ ही लेते आओ तो अति उत्तम हो जिसमें विलम्ब न हो क्योंकि राजकन्या विवाह योग्य हो चुकी है।
भाट : महाराज यह कौन बड़ी बात है। मैं अभी जाता हूँ। (जाता है)
राजा : (मंत्री से) गुणसिन्धु राजा को एक पत्र भी देना उचित है। तुम यह सब वृत्तान्त इस रीति से लिख दो कि जिसमें हमारा सब कार्य सिद्ध हो जाय और गंगा भाट की यात्रा की सब वस्तु शीघ्र ही सिद्ध कर दो जिसमें उसे विलम्ब न हो। अब बेला ढल चली, हम भी रनिवास को जाते हैं।
मंत्री : जो आज्ञा।
जवनिका गिरती है।