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सीढियां जो न चढ़ा,  रह गया वहीं खड़ा, वो देखते ही देखते विलुप्त है।  @नील पदम्   

वो करेंगे क्या भला, दो कदम जो न चला, जागने की हो घड़ी पर सुप्त है।  @नील पदम्  

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बादा का वादा था, लेकिन जाम आधा था,  पूरा भरकर ले आते,  मेरा पूरा का इरादा था ।  @नील पदम्  बादा = शराब                    

स्वार्थ के पेड़ पर  जब लोभ भी चढ़ जाता है,  जंगल के गीत सबसे ज्यादा  लकड़हारा गाता है ।  @नील पदम्                     

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काली अंधियारी रात में  चाँद का टुकड़ा जैसे,  रोती रेत के बीच में हरियाली का मुखड़ा जैसे, जब तूने खोल कर अपनी  सुरमई आँखों से देखा, मुझे ऐसा ही कुछ लगा था  उस वक़्त विल्कुल ऐसे ।      @नील

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है दौर चला कैसा, है किसकी कदर देखो, पैसों की सिगरेट है, मक्कार धुआं देखो। सीधे-सरल लोगों की दाल नहीं गलती, अब टेढ़ी उंगली है हर सीधी जगह देखो । @नील पदम्

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तेरा नाम नहीं लेंगे  पर तू ही निशाना है, तेरे भरोसे उन्हें, व्यापार चलाना है ।    @नील पदम्                   

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काल के कुचक्र के रौंदें हुए हैं हम,  महामारियों के दौर में पैदा हुए हैं हम,  पर्यावरण,  पृथ्वी, आवो-हवा से हमें क्या,  बस  खोखले विकास में बहरे हुए हैं हम  ।             @नील पदम्           

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शतरंज की बिसात सी बनी है ज़िन्दगी, खुली हुई क़िताब के मानिंद कर निकल। भूल जा हर तलब, हर इक नशा औ जख्म, अब तो बस एक रब का तलबगार बन निकल। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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जब अजनबी से बढ़ी नजदीकियां, तो जाना कि कितना है अजनबी वो ।   @नील पदम्                 

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मैं तुझे ज़िन्दगी पुकारूँगा,  मैं तेरा नाम कुछ सुधारूँगा ।   @नील पदम्          

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तब कहती थीं कि नहीं,  अभी कुछ भी नहीं, अब कहती हो की नहीं, अब कुछ भी नहीं, सच कब बोला तुमने,  अब या तब, झूठ कब कहा तुमने, अब या तब । @नील पदम्

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वो अब कभी  किसी भी गली में  दिख नहीं सकते भटकते आवारा,  कैद कर लिया है अब उनको,  दिल के कारागारों में हमने ।   @नील पदम्                        

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सुनो,  बहुत दुष्कर है तुम्हारे लिए,  मुझे स्पर्श कर पाना,  तब जबकि मैं मुझ सा मुझमें हूँ ।  और,  असंभव है तब तो,  जब मैं  मुझ सा, तुझमें हूँ ।   @नील पदम्                         

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दर्द से इस कदर तड़प रहा था वो कि,   अपना दर्द भूल कर उसको दवा दे दी,    इस तरह तो कुछ ऐसा हुआ कि, जज को किसी मुल्जिम ने सजा दे दी ।   @नील पदम्                               

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कुछ भरे-भरे से हैं हम, ये जान कर,  वो भी भर आये,  मुझे अपना मान कर,  और भर लिया हमें अपने आलिंगन में अपने,  हम और भी भर आये,  इतना पहचान कर ।   @नील पदम्                            

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इतने भरे हुए थे वो  कि छलकने ही वाले थे,  बड़ी मशक्कतों-मुश्किल से आँसुओं को सम्भाले थे,  उनकी उस दुखती राग पर ही  हाथ रख दिया जालिम,  जिसकी वजह से उसके दिल में पड़े छाले थे ।   @नील पदम

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अभी भी मैं,  उसकी नज़र में हूँ मुसलसल, पर अभी भी वही कि,  न ये प्यार नहीं ।   @नील पदम्                  

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पता नहीं कब सच कहा उसने,  पता नहीं कब झूठ बोला उसने,  उसकी आँखों को कभी पढ़ा ही नहीं,  क्योंकि कभी गौर से देखा नहीं हमने।   @नील पदम्                         

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बहुत दिनन के, बाद आयी हमका, मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥ चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली, तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥ अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया, फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥

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