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जनाब मासूम जनता है, यहाँ सब चलता है। @ नील पदम् 

कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो, पूरी सिद्दत से जब तलक ना, सीखा जाये। “नील पदम् ” 

मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई, उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये ।   @नील पदम्  

पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर, तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये।   @नील पदम्  

छोड़ भगौने को चमचा, चल देगा उस दिन । माल भगौने के भीतर, ना होगा जिस दिन ॥ @ नील पदम् 

जलने वालों का कुछ हो नहीं सकता, वो तो मेरी बेफिक्री से भी जल बैठे ॥ @नील पदम् 

मेरे वश में नहीं है, तुम्हारी सजा मुकर्रर करना । तुम ही कर लो जिरह औ फैसला मुकम्मल कर लो ॥ @नील पदम् 

संबंधों के पुल के नीचे जब, प्रेम की नदियाँ बहती हैं, जीवन के दो पल में भी तब, पूरी सौ सदियाँ रहती हैं ॥ @नील पदम् 

कुंठाओं के दलदल में, उल्लासोँ के कमल खिलेंगे । यदि निराशा भरी दीवालों पर, आशा की खिड़की खुली रखेंगे ।। @नील पदम् 

आँखों में उसके बहते हुए धारे हैं, वो भी मुझसा कोई फरियादी है। @नील पदम् 

उम्मीदों के आसमान पे बैठे हुए थे जब, वो क्या गिरा आंखें जिसे संभाल ना पायीं ।। @ नील पदम् 

जाने कैसे दौर से गुजर रहा हूँ मैं, वक़्त के हर मोड़ पे लड़खड़ाता हूँ, वो बन्दा ही जख्म-ए-संगीन देता है, जिसको पूरे दिल से मैं अपनाता हूँ ।। @*नील पदम् * 

इश्क की पहली शर्त कि कोई शर्त ना हो 🌹 @नील पदम् 

प्रकृति तेरे अनेक रूपकभी बदरिया को बरसायेकभी चमकाये जेठ  की धूप कभी कंपकंपाती रूह की शीतप्रकृति तेरे अनेको है रूप।बसत में वसुंधरा आहे हरी चादरग्रीष्म में छाई उदासी भरा रुखापनवर्षा में बादल ब

एक नौ वर्षीय बालक काशी के मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर बैठा हुआ था | उसकी आँखों से निकले हुए आंसू जो आग की गरमाहट से सूख से गए थे लेकिन उसका हृदय अभी भी विचलित था | घाट पर जल रही अनेकों चिताओं से निकल

नन्हा आशिक़                   पिता से चिपका अंश सिसक पड़ा।जगमोहन बाबू और अथर्व कुछ समझ न पाएं। थोड़ी देर में अंश पहले की भांति दादा साथ खेलने लगा।   &nb

कबूतरों का घोंसला अशोक जी के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था और एक चार बेड रूम के घर को लेकर विवाद गहराता जा रहा था एकदिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले, तो पिताजी बहुत जोर से

बडा बेरहम था इश्क मेरावक्त आया जब साथ देना कातो साथ छोड़ दिया ...खैर .....ना शिकवा इश्क से हैना शिकायत खुदा से हैबस ख़फ़ा मैं खुद से हूँ के मेरा इश्क ऐसा क्यों ? 10:02 am13/05/2023  &nb

 कभी - कभी ना कुछ बाते , कुछ वादे और कुछ यादेबहुत तकलीफदेह होती हैजिसके याद आते ही हमएक गहरी खामोशी में चले जाते हैऔर तब कुछ भी अच्छा नहीं लगता हैहर चीज़ बेगाना सा लगने लगता हैजैसे कि ह

तुम करोगे यूँ किनारा हमने सोचा ना था करा के दिल क़ो चाहत अपनी यूँ बदल जाओगे हमने ऐसा सोचा ना था। तुम जानो मज़बूरी हैं, या कोई लाचारी तुम्हारी हमें इस तरह से भूल जाने की आदत हैं या अदा हैं तुम्हारी देखके

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