बादल और किसान गजब की यारी है।
कभी दोस्ती तो दुश्मनी भी जारी है
सूखे की चोट, प्रकृति का भी प्रकोप है
बाढ़ की मार तो और भी करारी है।
काले काले बदरा घुमण घुमण आये
रिमझिम बरसात की बौछार प्यारी है।
घर में खुशहाली भरे सपने सुहाने
कर्जे में जीवन जीना भी भारी है।
काम न आया बादलों का भी बरसना
अन्नदाता के हाथ अब भी खाली हैं।
बादल और किसान गजब की यारी है।
कभी दोस्ती तो दुश्मनी भी जारी है।