मैं सात समंदर
पार से, सब छोड़ के,
लौट आती हूँ; पास तेरे, ए वतन मेरे।
कुछ अधूरी सी
आँखों में, दिल में,
रह जाती है; प्यास तेरे, ए वतन मेरे।
कितने रंग और रूप यहाँ,
भाषा और बोलियाँ खुब यहाँ,
प्रेम का सागर; पास तेरे, ए वतन मेरे।
दादी-नानी की बातों में,
चाँद-तारों वाली रातों में,
बुनें सपने सुहाने, साथ तेरे, ए वतन मेरे।
मखमल सी हरियाली,
शतरंगी चूनर लहराती,
ये बगीयाँ, नजारे; सब रास तेरे, ए वतन मेरे।
रंग बिरंगे फूल का,
ये देश गुलीस्ताँ,
सारे जग से प्यारा,
मेरा हिन्दूस्ताँ,
जीवन के रंग में; अहसास तेरे, ए वतन मेरे।
इतिहास है गौरवशाली,
जन्मभूमि है वीरों की
मेरा हर जन्म; मेरी हर साँस तेरे, ए वतन मेरे।
कान्हा की बंसी,
डाली सावन की,
हर ताल पे; सात सूर के साज तेरे; ए वतन मेरे।