कोई और रंग अब ज़्ज़ता ही नहीं है,
रंग बसंती रंग में रंगरंग कर आया हूं,
सांसों की जागीर नाम तेरे लिखकर,
मैं केशरिया तिलक लगा कर आया हूं।
मैया को यादों की,
बाबा को जाड़े की,
धूप मखमली शाल
मैं कांधों पे ओढ़ाकर आया हूँ।
आम व पीपल की छाँवों में,
पर्वत पर टंगे गाँवों में,
छोटी सी गलियों की
मैं यादों को संजोकर लाया हूँ।
वो रेशम की डोरी,
पोटली शिकायत की,
प्रीत के रंग रेशमी
मैं साथ सब बांधकर लाया हूँं।
वो कुटिया के छत पे,
चौपाल के बरगत पे,
साँझ तले आँगन में
मैं पंचायत लगाकर आया हूँं।
राहें अभी कच्चे हैं,
सपने सब सच्चे हैं,
मैं अपने तन मन को
केशरिया रंगाकर लाया हूँ।