एक शिकारी बड़ा सयाना
डाले भ्रम का दाना।
जाल ऐसा डाला
फस गया जंगल सारा।
मची हुई है भगदड़
हो रहा है दंगल।
हो गया है व्यापार बड़ा
डर का कारोबार खड़ा।
फायदे की है साझेदारी
करे यहाँ सभी होशियारी।
क्या कबूतर क्या शिकारी
बचने की है पूरी तैयारी
भूला दी है दुनियादारी
सबको अपनी जान है प्यारी।
ढुंढ रहे हैं सभी अनाड़ी
यहाँ सभी हैं खिलाड़ी।
विभिन्न-विभिन्न जाल बदले
भाँति-भाँति की चाल चले।
मनसुबों का नहीं ठिकाना
ये शिकारी बड़ा सयाना।।