इश्क की चलो कोई रस्म हम निभाते हैं।
सुर्ख सांझ साहिल पे आशियां बनाते हैं।
प्रीत के बड़े नाजुक डोर से बधे वादे,
जिन्दगी चली आओ ख्वाब ये बुलाते हैं।
अनकहे अनसुने से एहसास आंखों के,
बात वो अधूरे से रात दिन सताते हैं।
और कुछ सिवा तेरे चाहता नहीं है दिल,
गूजरे हुए लम्हे याद बहुत आते हैं।
बेसुरे अधूरे, सुर-ताल शब्द खाली से,
बांसुरी चली आओ राग ये बुलाते हैं।