सच कहता हूँ, मैं दिल का बुरा नहीं हूँ।
हम दिल को, समझाते रहे;
जिन्दगी, हमें समझाती रही;
ये सिलसिला, उम्र भर चलता रहा;
कौन! कितना समझा, ये तो पता नहीं;
पर हम जरा, बेफिक्रे हो गये।
सच कहता हूँ, मैं दिल का बुरा नहीं हूँ।
रिश्ते नाते, अपने पराये;
गृहस्थी जीवन, सबका ख्याल;
आदर सत्कार, उच्च विचार;
यहाँ तो सब कुछ, एक दिखावा;
तो हम भी अब, खुदगर्ज हो गये।
फिर भी, मैं दिल का बुरा नहीं हूँ ।
दोस्ती यारी, जग से प्यारी;
घुमना फिरना, मौज करना;
सहपाठी, साथी और सखा;
बन गये सब, हमारे प्रतिद्वंद्वी;
इसलिए अब, रामनाम जपना, चुप ही रहना।
सच कहता हूँ, मैं दिल का बुरा नहीं हूँ।
इश्क विश्क, ये प्यार व्यार;
जग घुमा पर, इश्क ना मिला;
इश्क का मतलब, समझ ना पाया;
मिला तो, वो बस धोखा ही मिला;
तो अब, बन गया हूँ कवि...
सच कहता हूँ, मैं दिल का बुरा नहीं हूँ।😉