मैं आज भी बंद खिड़की से देखती रही
मैं चाह कर भी रुक जाओ ना कह सकी।।
बाँधे उम्र की पोटरी, थामे उमींद की डोर
चल पड़े हैं पाँव श़याने, गाँव की ओर।।
शहरों को सजाते सँवारते
दिन रात भूखे प्यासे
शहरों से गाँव को लौटते
चल पड़े हैं पैदल, भारत के लोग।।
वो हजारों मील चलते रहे
कुछ भी हो बस चलते रहे
कुछ तो रास्तों में रह गये
कुछ घर पहुँचते, भारत के लोग।।
मील के पत्थर को नजदीक ला दो
थक गया हूँ अब और ना चलाओ
हो सके तो मुझे लेने आ जाओ
मौत को आँख दिखाते
भूख से पंगा लड़ाते, भारत के लोग।।
चल पड़े हैं पाँव श़याने गाँव की ओर।।