कैसी पहचान तुम्हारी,
कैसे तुम भारतवासी!
भेद भाव का चश्मा चढ़ाए,
क्या तुम हो भारतवासी!
सरहद के आशिक को,
देश के सिवा कुछ याद कहाँ।
माटी के लाल को,
अन्न के सिवा कुछ याद कहाँ।
शब्दों में जहर कैसा है ओ मृदुभाषी!
कैसे तुम भारतवासी!
पूरब के हो या पश्चिम के,
उत्तर के हो या दक्षिण के।
रहते हो सब साथ साथ,
लड़ते हो दुश्मन के जैसे।
बताओ कहाँ के तुम निवासी!
कैसे तुम भारतवासी!
हम तुम एक हो जाएँ,
एक बाग के फूल हो जाएँ।
नफ़रत और भेदभाव को भूलकर,
हम सब भारतवासी हो जाएँ।।
सत्य, प्रेम और अहिंसा के हम पूजारी!
हम सब हैं भारत के वासी!
गुलाबों का गुलिस्ताँ बनाएँ,
खुशहाल रहे ऐसी दुनियाँ बनाएँ!
आत्मनिर्भर और विश्वगुरू हो,
एक ऐसा हिन्दूस्ताँ बनाएँ!
यही हमारा काबा यही है काशी!
हम सब हैं भारतवासी!