ओ मेघा काहे तू रूठे
सूरज क्यों आँख दिखावे,
धरती को काहे सतावे।
बरखा काहे खेले
आँख-मिचोली,
यूँ गरज-गरज के
चमक-चमक के
तू काहे इतना चिढ़ावे।
प्यासा चातक तुझे बुलावे,
कोयलिया भी गीत सुनावे,
पपीहा भी खुब रिझावे।
अब तो बरसो रे बदरिया
काहे दिखावे तू नखरिया,
नैना म्हारे तरसो
अब तो मेघा बरसो ।।
#देवी