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बारहवाँ बाब-शिकवए ग़ैर का दिमाग किसे यार से भी मुझे गिला न रहा।

8 फरवरी 2022

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प्रेमा की शादी हुए दो माह से ज्यादा गुजर चुके है। मगर उसके चेहरे पर मसर्रत व इत्मीनान की अलामतें नजर नहीं आतीं। वो हरदम मुतफ़क्किर-सी रहा करती है। उसका चेहरा जर्द है। आँखे बैठी हुई सर के बाल बिखरे, परीशान, उसके दिल मेंअभी तक बाबू अमृतराय की मुहब्ब्त बाकी है। वह हर चंद चाहती है कि दिल से उनकी सूरत निकाल डाले मगर उसका कुछ काबू नहीं चलता। गो बाबू दाननाथ उसके साथ सच्ची मुहब्बत ज़ाहिर करते हैं और अलावा वजीह-ओ-शकील नौजवान होने के निहायत हँसमुख, जरीक़तबा व मिलनसार आदमीहै मगर प्रेमा का दिल उनसे नहीं मिलता। वो उनकी खातिर करने में कोई दकीका नहीं फ़रोगुज़ाश्त करती। जब वे मौजूद होते है तो वो हँसती भी है, बातचीत भी करती है, मुहब्बत भी जताती है मगर जब वो चले जाते है तो फिर वो ग़मगीन होती है। अपने मौके में उसको रोने की आजादी थी। यहाँ रो भी नहीं सकती। या रोती है तो छुपकर। उसकी बूढ़ी सास उसको पान की तरह फेरा करती है न सिर्फ इस वजह सेकि वो उसका पास-ओ-लिहाज़ करती है। बल्कि इस वजह से कि वो अपने साथ निहायत बेशक़ीमत चीज लायी है। बेचारी प्रेमा की जिंदगी वाक़ई नाकाबिले रश्क है। उसकी हँसी जहरखंद होती है। वो कभी-कभी सास के तक़ाजे से सिंगार भी करती हैमगर उसके चेहरे पर वो रौनक़ और चमक-दमक नहीं पायी जाती जो दिली इत्मीनान का परतौ होती है। वो ज़ियादातर अपने ही कमरे में बैठी रहती है। हाँ कभी-कभी गाकर दिल बहलाती है। मगर उसका गाना इसलिए नहीं होता कि उसको खुशी हासिल हो। बरअक्स इसके वो दर्दनाक नग़मे गाती है और अक्सर रोती है। उसको मालूम होता है किमेरे दिल पर कोई बोझ धरा हुआ है।
बाबू दाननाथ इतना तो शादी करने के पहले ही जानते थे। कि प्रेमा अमृतराय पर जान देती है। मगर उन्होने समझा था किउसकी मुहब्बत मामूली मुहब्बत होगी। जब मैं उसको ब्याह कर लाऊँगा और उसके साथ इख़लाम व प्यार से पेश आऊँगा तो वो सब भूल जायगी और फिर हमारी ज़िंदगी बड़े इत्मीनान से बसर होगी। चुनांचे एक महीने तक उन्होंने उसकी दिलगिरफ्तगी की बहुत ज्यादा परवा न की। मगर उनको क्या मालूम था कि वो मुहब्बत का पौधा जो पाँच बरस तक खूने दिल से सींच-सींचकर परवान चढ़ाया गया है महीने-दो-महीने में हरगिज नहीं मुरझा सकता। उन्होंने दूसरे महीने भर भी जब्त किया मगर जब अब भी प्रेमा के चेहरे पर शिगुफ्त़गी व बशाश्त न नजर आयी तब तो उनको सदमा होने लगा। मुहब्बत और हसद का चोली-दामन का साथ है। दाननाथ सच्ची मुहब्बत करते थे मगर सच्ची मुहब्बत के एवज सच्ची मुहब्बत चाहते भी थे। एक रोज वो मामूल से सबेरे मकान पर वापस आये और प्रेमा के कमरे मे गये तो देखा कि वो सर झुकाये बैठी है। उनको देखते ही उसने सर उठाया, हाय। मुहब्बत के लहजे में बोली—मुझे आज न मालूम क्यूँ लाला जी की याद आ गयी थी। बड़ी देर से रो रही हूँ।
दाननाथ ने उसको देखते ही समझ लिया था कि अमृतराय के फ़िराक में ये आँसू बहाये जा रहे है। उस प्रेमा ने जो यूँ हवा बतलायी तो उनको निहायत नागवार मालूम हुआ। रूखे लहजे में बोले—तुम्हारी आँखे है, तुम्हारे आँसू भी, जितना रोया जाय रो लो। चाहे ये रोना किसी ज़िदा आदमी के लिए हो या मुर्दा के लिये।
प्रेमा इस आखिरी जुमले पर चौंक पड़ी और बिला जवाब दिये शौहर की तरफ मुस्तफ़सिराना निगाहों से देखने लगी। दाननाथ ने फिर कहा—क्या ताकती हो प्रेमा, मैं ऐसा अहमक़ नहीं हूँ।मैने भी आदमी देखे है और आदमी पहचानता हूँ। गो तुमने मुझको बिलकुल घोंघा समझ रखा होगा। मैं तुम्हारी एक-एक हरकत को गौर से देखता हूँ, मगर जितना ही देखता हूँ उतना ही ज्यादा सदमा दिल को होता है क्योंकि तुम्हारा बर्ताव मेरे साथ फीका है। गौ तुमको ये सुनना नागवार मालूम होगा मगर मजबूरन कहना पड़ता है कि तुम मुझसे मुहब्बत नहीं करती। मैंने अब तक इस नाजुक मुआमले परज़बान खोलने की जुर्रत नहीं की। और ईश्वर जानता है कि मैं तुम्हारी किस कदर मुहब्बत करता हूँ। मगर मुहब्बत चाहे जो कुछ भी बर्दाश्त करे, बेनियाजी बर्दाश्त नहीं कर सकती, और वे भी कैसी बेनियाजी, जिसका वजूद किसी रकीब के फ़िराक से हो। कोई आदमी खुशी से नहीं देख सकतर कि उसकी बीवी दूसरे के फ़िराक़ में आँसू बहाये। क्या तुम नहीं जानती हो कि हिन्दू औरत को शास्त्र के मुताबिक अपने शौहर के अलावा किसी दूसरे का ख्याल करना भी गुनाहगार बना देता है। प्रेमा, तुम एक आला दर्जे के शरीफ़ खानदान कीबेटी हो औरजिस खानदान की तुम बहू हो वो भी इस शहर में किसी से हेठा नहीं। क्या तुम्हारे लिए ये बाइसे नंग वशर्म नहीं है कि तुम उस आदमी के फ़िराक में आँसू बहाओ जिसने बावजूद तुम्हारे वालिद के मुतवातिर तकीज़ों के एक आवारा रॉँड बरहमनी को तुम परतरजीह दी। अफ़सोस है कि तुम उस आदमी को दिल में जगह देती हो जो तुम्हारा भूलकर भी ख्याल नहीं करता। इन्हीं आँखो ने अमृतराय को तुम्हारी तस्वीर पुरजा-पुरजा करके पैरों तले रौंदते देखा है। इन्हीं कानों ने उनको तुम्हारी शान में जा-ओ-बेजा बातें कहते सुना है। तुमको ताज्जुब क्यों होता है प्रेमा, क्या मेरी बातों का यकीन नहीं आया? क्या अमृतराय ने उन सर्दमेरियों काआला सुबूत नहीं दे दिया? क्या उन्होंने डंके की चोट नहीं साबित कर दिया कि वो खाक बराबर तुम्हारी कद्र नहीं करते? माना कि कोई जमाना वो था जब वो भी तुमसे शादी करने का अरमान रखते थे मगर अब वो अमृतराय नहीं रह गया। अब वो अमृतराय है, जिसकी आवारगी और बदचलनी की शहर का बच्चा-बच्चा कसम खा सकता है। मगर अफ़सोस तुम अभी तक उस नंगे खानदान के फ़िराक में आँसू बहा-बहाकर अपने और मेरे ख़ानदान के माथे पर कलंक का टीका लगाती हो।
दाननाथ गुस्से के जोश में थे। चेहरा तमतमाया हुआ था और आँखो से शोले न निकलते हो मगर इन्तिहा दर्जे की रोशनी जरूर पायी जाती थी। प्रेमा बेचारी सर नीचा किये खड़ी रो रही थी। शौहर की एक-एक बात उसके सीने के पार हुई जाती थी। सुनते-सुनते कलेजा मुँह को आ गया आखिर जब्त न हो सका, न रहागया। दाननाथ के पैरों पर गिर पड़ी और गर्म-गर्म अश्क के क़तरों से उनको भिगो दिया। दाननाथ ने फौरन पैर खिसका लिया। प्रेमा को चारपाई परबिठा दिया और बोले—प्रेमा, रोओ मत, तुम्हारे रोने से मेरे दिल को सदमा होता है। मैं तुमको रूलाना नहीं चाहता था मगर उन बातों को कहे बिना रह भी नहीं सकता था तो अगर दिल में रह गयीं तो नतीजा बुरा होगा। कान खोलकर सुनों। मैं तुमको जान से जियादा अजीज़ रखता हूँ। तुम्हारी आसाइश के लिए मै अपनी जान निछावर करने के लिए हाजिर हूँ। मैं तुम्हारे ज़रा से इशारे पर अपने को सदके कर सकता हूँ, मगर तुमको सिवाय अपने किसी और का ख़याल करते नहीं देख सकता। हाँ प्रेमा, मुझसे अब यह नहीं देखा जा सकता। एक महीने से मुझको यही दिक्कत हो रही है। मगर अब दिल पक गया है। अब वो जरा-सी ठेस भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। अगर इस अगाहीं पर भी तुम अपने दिल परकाबू न पा सको तो मेरा कुछ कुसुर नहीं। बस इतना कहे देता हूँ कि एक औरत के दो शौहर नहीं जिंदा रह सकते।
यह कहते हुए बाबू दाननाथ गुस्से में भरें बाहर चले आये। बेचारी प्रेमा को ऐसा मालूम हुआ गोया किसी ने कलेजे में छुरी मार दी। उसको आज तक किसी ने भूलकर भी कोई कड़ी बात नहीं सुनायी थी। उसकी भावज कभी-कभी ताने दिया करती थीं मगर वो ऐसे सख्त नहीं मालूम होते थे। वो घण्टों रोती रही। बाद अज़ॉँ उसने शौहार की सारी बातों को सोचना शुरू किया और उसके कानों में यह आखिरी अलफाज़ गूँजने लगे, ‘एक औरत के दो शौहर जिंदा नहीं रह सकते।‘
इनका क्या मतलब है? 

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रचनाएँ
हमखुर्मा व हमसवाब
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संध्या का समय है, डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है। अंग्रेजी ढ़ंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रहीं है, इस समय रंगीन वस्त्र धारण करके और भी सुंदर मालूम होती है।
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पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी

8 फरवरी 2022
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शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों

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दूसरा बाब-हसद बुरी बला है

8 फरवरी 2022
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लाल बदरीप्रसाद साहब अमृतराय के वालिद मरहूम के दोस्तों में थे और खान्दी इक्तिदार, तमव्वुल और एजाज के लिहाज से अगर उन पर फ़ौकियत न रखते थे तो हेठ भी न थे। उन्होंने अपने दोस्त मरहूम की जिन्दगी ही में अमृ

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तीसरा बाब-नाकामी

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय रात-भर करवटें बदलते रहे । ज्यूँ-2 वह अपने इरादों और नये होसलों पर गौर करते त्यूँ-2 उनका दिल और मजबूत होता जाता। रौशन पहलुओं पर गौर करने के बाद जब उन्हौंने तरीक पहलूओं को सोचना शुरु किया त

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चौथा बाब-जवानामर्ग

8 फरवरी 2022
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वक्त हवा की तरह उड़ता चला जाता है । एक महीना गुजर गया। जाड़े ने रुखसती सलाम किया और गर्मी का पेशखीमा होली सआ मौजूद हुई । इस असना में अमृतराय नेदो-तीन जलसे किये औरगो हाजरीन की तादाद किसी बार दो –तीन से

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छठा बाब-मुए पर सौ दुर्रे

8 फरवरी 2022
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पूर्णा ने गजरा पहन तो लिया मगर रात भर उसकी आँखो में नींद नहीं आयी। उसकी समझ में यह बात न आती थी कि बाबू अमृतराय ने उसको गज़रा क्यों दिया। उसे मालूम होता था किपंडित बसंतकुमार उसकी तरफ निहायत कहर आलूद न

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सातवाँ बाब-आज से कभी मंदिर न जाऊँगी

8 फरवरी 2022
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बेचारी पूर्णा पंडाइन व चौबाइन बगैरहूम के चले जाने के बाद रोने लगी। वो सोचती थी कि हाय, अब मै ऐसी मनहूस समझी जाती हूँ कि किसी के साथ बैठ नहीं सकती। अब लोगों को मेरी सूरत से नफरत है। अभी नहीं मालूम क्या

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आठवाँ बाब-देखो तो

8 फरवरी 2022
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आठवाँ बाब-देखो तो दिलफ़रेबिये अंदाज़े नक्श़ पा मौजे ख़ुराम यार भी क्या गुल कतर गयी। बेचारी पूर्णा ने कान पकड़े कि अब मन्दिर कभी न जाऊँगी। ऐसे मन्दिरों पर इन्दर का बज़ भी गिरता। उस दिन से वो सारे दिन

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नवाँ बाब-तुम सचमुच जादूगार हो

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूर्णा कुछ देर तक बदहवासी के आलम में खड़ी रही। बाद अज़ॉँ इन ख्यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर दिया। आखिर वो मुझसे क्या चाहते है। मैं तो उनसे कह चुके कि मै आपकी कामया

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दसवाँ बाब-शादी हो गयी

8 फरवरी 2022
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तजुर्बे की बात कि बसा औकात बेबुनियाद खबरें दूर-दूर तक मशहूर हो जाया करती है, तो भला जिस बात की कोई असलियत हो उसको ज़बानज़दे हर ख़ासोआम होने से कौन राक सकता है। चारों तरफ मशहूर हो रहा था कि बाबू अमृतरा

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ग्यारहवाँ बाब-दुश्मन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोस्त

8 फरवरी 2022
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मेहमानों की रूखमती के बाद ये उम्मीद की जाती थी कि मुखालिफीन अब सर न उठायेगें। खूसूसन इस वजह से कि उनकी ताकत मुशी बदरीप्रसाद और ठाकुर जोरावर सिंह के मर जाने से निहायत कमजोर-सी हो रही थी। मगर इत्तफाक मे

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बारहवाँ बाब-शिकवए ग़ैर का दिमाग किसे यार से भी मुझे गिला न रहा।

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प्रेमा की शादी हुए दो माह से ज्यादा गुजर चुके है। मगर उसके चेहरे पर मसर्रत व इत्मीनान की अलामतें नजर नहीं आतीं। वो हरदम मुतफ़क्किर-सी रहा करती है। उसका चेहरा जर्द है। आँखे बैठी हुई सर के बाल बिखरे, पर

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तेरहवाँ बाब-चंद हसरतनाक सानिहे

8 फरवरी 2022
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हम पहले कह चुके है कि तमाम तरद्दुदात से आजादी पाने के बाद एक माह तक पूर्णा ने बड़े चैन सेबसर की। रात-दिन चले जाते थें। किसी क़िस्म की फ़िक्र की परछाई भी न दिखायी देते थी। हाँ ये था कि जब बाबू अमृतराय

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