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ग्यारहवाँ बाब-दुश्मन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोस्त

8 फरवरी 2022

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मेहमानों की रूखमती के बाद ये उम्मीद की जाती थी कि मुखालिफीन अब सर न उठायेगें। खूसूसन इस वजह से कि उनकी ताकत मुशी बदरीप्रसाद और ठाकुर जोरावर सिंह के मर जाने से निहायत कमजोर-सी हो रही थी। मगर इत्तफाक में बड़ी कूवत है। एक हफ्ता भी न गुजरने पाया था, अन्देशा कुछ-कुछ कम ही चला था कि एक रोज सुबह को बाबू अमृतराय के तमाम शार्गिदपेशे उनकी खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज किया कि हमारा इस्तीफा ले लिया जाए। बाबू सहाब अपने नौकरों से बहुत अच्छा बर्ताव रखते थे। पस उनको इस वक्त सख्त ताज्जुब हुआ। बोले—तुम लोग क्या चाहते हो? क्यूँ इस्तीफा देते हो?
नौकर—अब हुजूर हम लोग नौकरी न करेंगे।
अमृतराय—आखिर इसकी कोई वजह भी है। अगर तुम्हारी तनख्वाह कम हो तो बढ़ायी जा सकती है। अगर कोई दूसरी शिकायत हो तो रफा की जा सकती है। ये इस्तीफे की बातचीत कैसी औरफिर सब के सब एक साथ।
नौकर—हुजूर, तनख़ा की हमको जरा भी शिकायत नहीं। हुजूर तो हमका माई बाप की तरह मानत है। मुदा अब हमार कुछ बस नाहीं। जब हमारे बिरादरी जात से बाहर करत है, हुक्का-पानी बंद करत है, सब कहते है किउनके इहाँ नौकरी मत करों।
बाबू अमृतराय बात की तह तक पहुँच गये। मुख़ालिफ़ीन ने अपना और कोई बस चलता न देखकर सताने का ढ़ंग निकाला है। बोले—हम तुम्हारी तनख्वाह दूनी कर देंगे, अगर अपना इस्तीफा फेर लोगे। वर्ना तुम्हारा इस्तीफा नामजूर, तावक्ते कि हमको और कहीं खिदमतगार न मिल जाये।
नौकर—(हाथ जोड़कर) सरकार, हमारे ऊपर मेहरबानी की जाए। बिरादरी हमको आज ही खरिज कर देगी।
अमृतराय—(डॉँटकर) हम कुछ नहीं जानते, जब तक हमको नौकर न मिलेंगे, हम हरगिज इस्तीफा मंजूर न करेंगे। तुम लोग अंधे हो, देखते नहीं हो कि बिला नौकरों के हमारा काम क्यूँकर चलेगा?
नौकरों ने देखा कि ये इस तरह हरगिज छुटटी न देंगे चुनांचे उस वक्त तो वहाँ से चले आये। दिन-भर खूब दिल लगाकर काम किया। आठ बजे रात के करीब जब बाबू अमृतराय सैर करके आये तो कोई टमटम थामनेवाला न था। चारों तरफ घूम-घूमकर पुकारा। मगर सदाये ना बरखास्त। समझ गये कस्बख्तों ने धोखा दिया। खुद घोड़े को खोला, फेरने की कहाँ फुरसत। साज़ उतार अस्तबल में बॉँध दिया। अंदर गये तो क्या देखते है कि पूर्णा बैठी खाना पका रही है और बिल्लो इधर-उधर दौड़ रही है। नौकरों पर दातँ पीसका रह गये। पूर्णा से कहा—प्यारी, आज तुमको बड़ी तकलीफ़ हो रही है। कम्बख्तों ने सख्तधोखा दिया।
पूर्णा—(हँसकर) आज आपको अपने हाथ की रसोई खिलाऊँगी। कोई भारी इनाम दीजिएगा।
अमृतराय को उस वक्त दिल्लगी कहाँ सूझती थी, बेचारे चावल-दाल खाना भूल गये थे। कश्मीरी बिरहमन निहायत नफ़ीस खाने तैयार करता था। उस शहर में ऐसा बाहुनर बावर्ची कहीं न था। कितने शुरफां उसको नौकर रखने के लिए मुँह फैलाये हुए थे। मगर कोई ऐसी दरियादिली से तनखाह नहीं दे सकता था। उसके जाने काबाबू साहब को सख्त अफसोस हूआ।
अमृतराय ने बीवी से पूछा—ये बदमाश तुमसे पूछने भी आये थे या यूँ ही चले गये?
पूर्णा—मुझसे तो कोई भी नहीं पूछने आया। महराज अलबत्ता आया और रोता था कि मुझे लोग मरने को धमका रहे है।
अमृतराय—(गुस्से से हाथ मलकर) नहीं मालूम ये जालिम क्या करनेवाले है। ये कहकर बाहर आये, कपड़े उतारे। कहाँ तो रोज खिदमतगार आकर कपड़े उतारता था, जूते खोलता था, हाथ-मुहँ धुलवाता और महराज अच्छे से अच्छे खाने तैयार रखता और कहाँ यकायक आज सन्नाटा हो गया। बेचाने नाक-भौ सिकोड़े अंदर फिर गये। पूर्णा साफ थालियों मे खाना परोसे बैठी हुई थी औरदिल मेंखुश भी थी कि आज मुझे उनकी यह खिदमत करनेका मौका मिला। मगर जब उनका चेहरा देखा तो सहम गयी। कुछ बोलने की जुर्रत न पड़ी। हाँ, बिल्ला ने कहा—सरकार आप खामखा उदास होते है। नौकर-चाकर तो पैसे के यार है। यहीसब दो एक रोज इधर उधर रहेंगे फिर आप ही झख मारकर आयेंगे।
अमृतराय—(गुस्से को जब्त करके) नहीं मालूम बिल्लो, ये उन्हीं लोगो की शरारत है, उन्हीं जलिमों ने तमाम नौकरों को उभारकर भगा दिया है। और अभी नहीं मालूम क्या करनेवाले है। मुझे तो खौफ़ है किसारे शहर में कोई आदमी हमारे यहाँ नौकरी करने न आयेगा। हाँ, इलाके पर से कहार आ सकते है मगर वो सब देहाती गँवार होते है। बुजुज़ बार बरदारी के और किसी काम के नहीं होते। ये कहकर खाने बैठे। दो-चार निवाले खाये तो खाना मजेदार मालूम हुआ। पूर्णा निहायत लज़ीज खाने बना सकती थी। इस फन में उसको ख़ास मलका था, मगर जल्दी में बजुज मामूली चीजों के और कुछ न बना सकी थी। ताहम बाबू साहब ने खाने की बड़ी तारीफ की औरआला तौर परउसका सबूत भी दिया। रात तो इस तरह काम चला, अलस्सबा वो बाइसिकिल पर सवार होकर चंद अंग्रेजो से मिलने गये। और बिल्लो बाजार सौदा खरीदने गयी। मगर उसे कितना ताज्जुब हुआ जब कि बनियों ने उसको कोई चीज़ भी न दी। जिस दुकान पर जाती वहीं टका-सा जवाब पाती। सारा बाजार छ़ान डाला। मगर कहीं सौदा नमिला। नाचार मायूस होकर लौटी और पूर्णा से सारा किस्सा बयान किया। पूर्णा ने आज इरादा किया थाकि जरा अपने फन के जौहर दिखलाऊँगी, चीजों के न मिलने से दिल में ऐंठकर रह गयी। नाचार सादे खाने पकाकर धर दिये।
इसी तरह दो-तीन दिन गुजरे। चौथे दिन बाबू साहब के इलाके परसे चंद मोटे-ताजे हटटे-कटटे कहार आये जिनके भद्दे-भद्दे हाथ-पाँव और फूले हुए कंधे इस काबील न थे जो एक तहजीबायाफ्ता जटुलमैन की ख़िदमत कर सकें। बाबू साहब उनकोदेखकर खूब हँसे और कुछ ज़ादेराह देकर उल्टे कदम वापस किया और उसी वक्त मुशी धनुखधारी लाल के पास तार भेजा कि मुझको चंद खिदमतगारों की अशद ज़रूरत है। मुंशी जी साहब पहले हीसे सोचे हुए थे किबनारस जैसे शहर में जिस क़दर मुखालिफत हो थोड़ी है। तार पाते ही उन्होंने अपने होटल से पाँच ख़िदमतगारों को रवाना किया जिनमें एक कश्मीरी महराज भी था। दूसरे दिन ये नये खादिम आ पहुँचे। सब केसब पंजाबी थे जो न बिरादरी के गुलाम थे और न जिनको बिरादरी से ख़ारिज होने का खौफ़ था। उनको भी मुख़ालिफीन ने बरअंगेख्ता करना चाहा। मगर कुछ दॉँव न चला। नौकरों का इंतजाम तो इस तरह हुआ। सौदे का ये बंदोबस्त किया गया कि लखनऊ सेतमाम रोजाना जरूरियात की चीजें इकटठी मँगा ली जो कई महीनों के लिए काफी थी। मुख़ालिफों ने जब देखा कि इन शरारतों से बाबू साहब को कोई गजंद न पहूंचा तो और ही चाल चले। उनके मुवक्किलों को बहकाना शुरू किया कि वो तो ईसाई हो गये है। विधवा विवाह किया है। सब जानवरों का गोश्त खाते है। छूत-विचार नहींमानते। उनको छूना गुनाह है। गो देहात में भी रिफ़ार्म के लेक्चर दिये गये थे और अमृतराय के पुरजोश पैरो मुतवातिर दौरे कर रहे थे मगर इन लेक्चरों में अभी तक विधवा विवाह का जिक्र मसलहतन नहीं किया गया था। चुनांचे जब उनके मुवक्तिलो ने, जिनमें ज़ियादार राजपूत और भूमिहार थे, ये हालात सुने तो कसम खाई कि उनको अपना मुकद्दमा न देंगे। राम-राम, विधवा से विवाह कर लिया। अनकरीब दो हफ्ते तक बाबू अमृतराय साहब के मुवक्किलों में येबातें फैली और मुख़ालिफीन ने उनके खुब कान भरे जिसका नतीजा ये हुआ कि बाबू साहब की वकालत की सर्दबाज़ारी शुरू हो गयीं। जहाँ मारे मुकद्दमों के सॉँस लेने की फुर्सत न मिलती थी वहाँ अब दिन भर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की नौबत आ गयी। हत्ता कि तीसरे हफ्ते में एक मुकद्दमा भी न मिला। उनकी बाज़ार ठंडी हुई तो मुशी गुलज़ारीलाल, बाबू दाननाथ साहब की चाँदी हो गयी। जब तीन हफ्ते तक बाबू अमृतराय साहब को इलजाम पर जाने की नौबत न आयी तो जज साहब को ताज्जुब हुआ। वो बाबू अमृतराय साहब की जेहानत व तब्बाई की बड़ी कद्र करते थे और अक्सर उनको अपने मकान पर बुलाकर पेचीदा मुक़द्दमा में उनकी राय लिया करते थे और बारहा उनको संगीन मुकद्दमों की तहक़ीकाती कमीशन का प्रेसीडेंट बनाया था। उन्होंने सरिश्तेदार से उनके इस तरह मफकूद होने का सबब पूछा। सरिश्तेदार साहब कौम के मुसलमान और निहायत रास्तबाज़ आदमी थे। उन्होंने मिन्नोइन सब हाल कह सुनाया। दूसरे दिन अमृतराय को इजलाम परखुद-ब-खुद बुलाया और देहाती ज़मींदारों के रूबरू उनसे देर तक आहिस्ता-आहिस्ता गुफ्तगू की। अमृतराय भी बेतकल्लफी से मुस्करा-मुस्कराकर उनकी बातों का जवाब देते थे। कई वकील उस वक्त साहब व बहादुर के पास काग़जात मुलाहिजे के लिए लाये मगर साहब बहादुर ने जरा भी तवज्जों न की। जब अमृतराय चले गये तो साहब ने कुर्सी से उठकर उनसे हाथ मिलाया औरजरा (ऊँची)आवाज में बोले—अच्छा बाबू साहब, जैसा आप कहता है हम इस मुकद्दमें में उसी माफ़िक करेगा।
जज साहब ये चाल चलकर मुन्तजिर थे कि देखे इसका क्या असर होता है। चुनांचे जब कचहरी बर्खासत हुई तो उन जमींदारों में जिनके मुकद्दमें आज पेश थे यूँ बातें होने लगीं—
ठाकुर साहब—(पगड़ी, बॉँधे, मूछे ऐठे, मिर्जई पहने, गले में बड़े-बड़े दानों का माला डाले) आज जज साहब अमृतराय से खूब-खूब बात करत रहेन। जरूर से जरूर उन्हीं की राय के मुताबिक फैसला होये।
मिश्र जी—(सर घुटाये, टीका लगाये, बरहना तन, अँगौछा कंधे पर रक्खे हुए) हाँ जान तो ऐसे पड़त है। जब बाबू साहब चले लागल तो जज साहब बोलेन किआप जैसा कहेंगे वैसा किया जायगा।
ठाकुर—काव कहीं अमृतराय समान वकील पिरथीमाँ नाहीं बा, बाकी फिर ईसाई होय गवा, रॉँड से बियाह किहेसि।
मिश्र जी—इतने तोपेंच पड़ा है। हमका तो जान पड़त है कि जरूरत मुकद्दमा हार जायें। इतना वकील हते बाकी उनको बराबरी कोऊ नाहीं ना। कइस बहस करत है, मानों सरसुती जिभ्या पर बैठी है। सो अगर उनका वकील किये होइत तो जरूर हमार जीत हुई जात।
इसी तरह की बातें दोनो में हुई चिराग जलते-जलते दोंनो बाबू अमृतराय के पास आये और मुकद्दमें की रूएदाद बयान की और अपने ख़ताओं की मुआफी चाही। बाबू साहब ने पहले ही समझ लिया था कि मुक़द्दमे बहस की कि फरीके सानी के वोकला खड़े मुँह ताका किये और शाम होते-होते मैदान अमृतराय के हाथ जा। इस मुकद्दमे का जीतना कहिए और कचहरी बर्खास्त होने के बादजज साहब का उनको मुबारकबाद देना कहिए कि घर जाते-जाते बाबू साहब के दरवाजे पर मुवक्किलों की भीड़ लग गयी और एक हफ्ते के अंदर-अंदर उनकी वकालत दूनी आबो-ताब से चमकी। मुख़ालिफो को फिर नीचा देखना पड़ा। सच है खुदा मेहरबान होतो कुल मेहरबान।
इसी असना में वो घाट जो बाबू साहब सरफे कसीर से बनवा रहे थे तैयार हो गया और मुख़ालिफीन को भी मजबूरन मोतरिफ़ होना पड़ा कि ऐसा खूबसूरत घाट इस सूबे में कहीं नहीं। चौतरफा संगीन चारदीवारी खिंची हुई थी। और दरिया से नहरों केरास्सते पानी आता था। अनाथालय भी तैयार हो गया। अख्खा कैसी आलीशान पुख्ता इमारत थी। ऐन दरिया के किनारे पर। उसके चारों तरफ अहाता घेरकर फूल लगा दिया था। फाटक पर संगमरमर के दो तख्ते वस्ल किये हुए थे। एक पर उन असहाब के असमाये गिरामी खुदे हुए थे। जिनकी फय्याजी से वो इमारत तामीर हुई थीऔर दूसरे पर इमारत का नाम और उसके अग़राज जली हुरूफ़ में लिखे हुए थे। गो इमारत तामीर हो चुकी थी मगर अभी तक दस्तूर-उल-अमल की पूरी पैरवी न हो सकी थी। दिक्कत यह थी कि सीना-पिरोना, गुल-बूटे काढ़ना, जुर्रब वगैरह बनाना सिखाने के लिए हिन्दुस्तानियाँ न मिलती थीं, हाँ, लाला धनुखधारीलाल साहब पर उनके मुहैया करने का बार डाला गया था और बहुत जल्द कामयाबी की उम्मीद थी। इस इमारत का इफ्तिताही जलसा बड़े धूमधाम से हुआ। दिलदारनगर के महाराजा साहब ने जो खुद भी निहायत फ़य्याज और नेक मर्द थे इमारत कोदस्ते मुबारक से खोला औरगो खुद विधवा विवाह के मुखालिफीन में थे, मगर इस अनाथालय के साथ सच्ची हमदर्दी जाहिर कीऔर बाबू अमृतराय के मसाइए जमीला की क़रार वाक़ई दाद दी। शहर के तमाम शुरफ़ा बिला इस्तस्ना इस जलसे में शरीक हुए और महाराजा साहब की बामौक़ा फय्याजी ने दम की दम में कई हजार रूपया वसूल करा दिया। और आज अमृतराय को मालूम हुआ कि मैंने अपनी ज़िंदगी में कुछ काम किया है।
जब से शादी हुई थी, पूर्णा नेबाबू साहब को कभी इतना खुश न पाया था जितना शादी से पहले पाती थी। इस पूरे महीने भर बेचारे तरद्दुदात में मुबतला थे। एक हफ्ता मेहमानों की रूखमती में लगा। एक हफ्ते तक नौकरों ने तकलीफ दी। बाद अजाँ दो-तीन हफ्ते तक वकालत की सर्दबाज़ारी रही जो इस वजह से और भी तफ़क्कुर का बाइस हो रही थी किघाट और अनाथलय के ठेकेदारों के बिल अदा करने थे। जब जरा वकालत सुधरी तो इस इफ्तिताही जलसे की तैयारियाँ शुरू हुई। गरज़ इस डेढ़ महीने तक उनको तफ़क्कुरात से आजादी न मिली। आज जब वह आये तो अज़हद खुश थे। चेहरा मुनव्वर हो रहा था। पूर्णा उनको मुतफक्किर देखती तो उसको निहायत रंज होता था और उनकी फ़िक्र दूर करने की बराबर कोशिश किया करती थी। आज उनको खुश देखा तो निहाल हो गयी। बाबू साहब ने उसे गले से लगाकर कहा—प्यारी पूर्णा, हमको आज मालूम होता है कि जिंदगी में कोई काम किया।
पूर्णा—ईश्वर आपके इरादों में बरकत दे। अभी आप न मालूम क्या-क्या करेंगे?
अमृतराय—तुमको इस अनाथालय की निगरानी करनी होगी। क्यों अच्छी होगा न?
पूर्णा—(हँसकर) तुम मुझे सिखा देना।
अमृतराय—मैं तुमको लेकर मद्रास और पूना चलूँगा। वहाँ के खैरातखानों का इंतजाम देखूँगा। और जरूरत के मुआफ़िक तरमीम करके वही कवाइद यहाँ भी जारी करूँगा। प्यारी, कल से तुमको मिस विलियम गाना सिखाने आया करेंगी।
पूर्णा—(हँसकर)तुम मुझे क्या-क्या सिखलाओगे। मुझसे ब्याह करने में नुमने धोखा खाया।
अमृतराय—बेशक धोखा खाया। मुहब्बत की बला अपने सर ली। इसी तरह देर तक बातें होती रहीं। आज दोनां मियाँ-बीवी बड़े चैन से बसर करने लगे। ज्यूँ-ज्यूँ दोनो की फ़ितरती खूबियाँ एक-दूसरे पर जाहिर होती थीं, उनकी मुहब्बत बढ़ती जाती थी। बीवी शौहर बीवी का दिलदादा, दोनों एकजान दो कालिब थे। जब बाबू अमृतराय कचहरी जाते तो पूर्णा गाना सीखती। जब वह कचहरी से आ जाते तो उनको गाना सुनाती। बाद अजाँ दोनो शाम को बाग़ में सैर करते। इसी तरह हँसी-खुशी एक महीना तय हो गया। खुशी के अय्याम जल्द कट जाते है। 

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रचनाएँ
हमखुर्मा व हमसवाब
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संध्या का समय है, डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है। अंग्रेजी ढ़ंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रहीं है, इस समय रंगीन वस्त्र धारण करके और भी सुंदर मालूम होती है।
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पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी

8 फरवरी 2022
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शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों

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दूसरा बाब-हसद बुरी बला है

8 फरवरी 2022
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लाल बदरीप्रसाद साहब अमृतराय के वालिद मरहूम के दोस्तों में थे और खान्दी इक्तिदार, तमव्वुल और एजाज के लिहाज से अगर उन पर फ़ौकियत न रखते थे तो हेठ भी न थे। उन्होंने अपने दोस्त मरहूम की जिन्दगी ही में अमृ

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तीसरा बाब-नाकामी

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय रात-भर करवटें बदलते रहे । ज्यूँ-2 वह अपने इरादों और नये होसलों पर गौर करते त्यूँ-2 उनका दिल और मजबूत होता जाता। रौशन पहलुओं पर गौर करने के बाद जब उन्हौंने तरीक पहलूओं को सोचना शुरु किया त

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चौथा बाब-जवानामर्ग

8 फरवरी 2022
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वक्त हवा की तरह उड़ता चला जाता है । एक महीना गुजर गया। जाड़े ने रुखसती सलाम किया और गर्मी का पेशखीमा होली सआ मौजूद हुई । इस असना में अमृतराय नेदो-तीन जलसे किये औरगो हाजरीन की तादाद किसी बार दो –तीन से

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छठा बाब-मुए पर सौ दुर्रे

8 फरवरी 2022
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पूर्णा ने गजरा पहन तो लिया मगर रात भर उसकी आँखो में नींद नहीं आयी। उसकी समझ में यह बात न आती थी कि बाबू अमृतराय ने उसको गज़रा क्यों दिया। उसे मालूम होता था किपंडित बसंतकुमार उसकी तरफ निहायत कहर आलूद न

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सातवाँ बाब-आज से कभी मंदिर न जाऊँगी

8 फरवरी 2022
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बेचारी पूर्णा पंडाइन व चौबाइन बगैरहूम के चले जाने के बाद रोने लगी। वो सोचती थी कि हाय, अब मै ऐसी मनहूस समझी जाती हूँ कि किसी के साथ बैठ नहीं सकती। अब लोगों को मेरी सूरत से नफरत है। अभी नहीं मालूम क्या

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आठवाँ बाब-देखो तो

8 फरवरी 2022
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आठवाँ बाब-देखो तो दिलफ़रेबिये अंदाज़े नक्श़ पा मौजे ख़ुराम यार भी क्या गुल कतर गयी। बेचारी पूर्णा ने कान पकड़े कि अब मन्दिर कभी न जाऊँगी। ऐसे मन्दिरों पर इन्दर का बज़ भी गिरता। उस दिन से वो सारे दिन

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नवाँ बाब-तुम सचमुच जादूगार हो

8 फरवरी 2022
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बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूर्णा कुछ देर तक बदहवासी के आलम में खड़ी रही। बाद अज़ॉँ इन ख्यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर दिया। आखिर वो मुझसे क्या चाहते है। मैं तो उनसे कह चुके कि मै आपकी कामया

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दसवाँ बाब-शादी हो गयी

8 फरवरी 2022
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तजुर्बे की बात कि बसा औकात बेबुनियाद खबरें दूर-दूर तक मशहूर हो जाया करती है, तो भला जिस बात की कोई असलियत हो उसको ज़बानज़दे हर ख़ासोआम होने से कौन राक सकता है। चारों तरफ मशहूर हो रहा था कि बाबू अमृतरा

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ग्यारहवाँ बाब-दुश्मन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोस्त

8 फरवरी 2022
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मेहमानों की रूखमती के बाद ये उम्मीद की जाती थी कि मुखालिफीन अब सर न उठायेगें। खूसूसन इस वजह से कि उनकी ताकत मुशी बदरीप्रसाद और ठाकुर जोरावर सिंह के मर जाने से निहायत कमजोर-सी हो रही थी। मगर इत्तफाक मे

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बारहवाँ बाब-शिकवए ग़ैर का दिमाग किसे यार से भी मुझे गिला न रहा।

8 फरवरी 2022
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प्रेमा की शादी हुए दो माह से ज्यादा गुजर चुके है। मगर उसके चेहरे पर मसर्रत व इत्मीनान की अलामतें नजर नहीं आतीं। वो हरदम मुतफ़क्किर-सी रहा करती है। उसका चेहरा जर्द है। आँखे बैठी हुई सर के बाल बिखरे, पर

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तेरहवाँ बाब-चंद हसरतनाक सानिहे

8 फरवरी 2022
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हम पहले कह चुके है कि तमाम तरद्दुदात से आजादी पाने के बाद एक माह तक पूर्णा ने बड़े चैन सेबसर की। रात-दिन चले जाते थें। किसी क़िस्म की फ़िक्र की परछाई भी न दिखायी देते थी। हाँ ये था कि जब बाबू अमृतराय

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