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भाग 7

5 अगस्त 2022

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भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर किरणों का ही जमावट है, छतों पर, मुड़ेरों पर किरण-ही-किरण हैं। कामिनीमोहन अपनी फुलवारी में टहल रहा है, और छिटकती हुई किरणों की यह लीला देख रहा है। पर अनमना है। चिड़ियाँ चहकती हैं, फूल महँक रहे हैं, ठण्डी-ठण्डी पवन चल रही है, पर उसका मन इनमें नहीं है; कहीं गया हुआ है। घड़ी भर दिन आया, फुलवारी में बासमती ने पाँव रखा, धीरे-धीरे कामिनीमोहन के पास आ कर खड़ी हुई। देखते ही कामिनीमोहन ने कहा, क्या अभी सोकर उठी हो?

बासमती-हाँ! अभी सोकर उठी हूँ!!! यह तो आप न पूछेंगे! क्या रात जागते ही बीती?

कामिनीमोहन-क्या सचमुच बासमती, तुम आज रात भर जगी हो? जान पड़ता है इसी से तुम्हारी आँखें लाल हो रही हैं।

बासमती-नहीं तो क्या अभी सोकर उठी हूँ, इससे आँख लाल हैं!

कामिनीमोहन-मैं तुमको छेड़ता नहीं, बासमती! मैं भी यही कहता था, रात भर तुम जगी हो, उसी से। अब तक क्या सोती रही हो! अच्छा, इन बातों को जाने दो। कहो, रात क्या किया?

बासमती-मैंने रात सब कुछ किया, आपकी सब अड़चनें दूर हो गयीं। मुझको जो कुछ करना था मैं कर चुकी, अब देखूँ आप क्या करते हैं।

कामिनीमोहन-वह क्या बासमती?

बासमती-क्या आपने देवकिशोर बाबू की बात नहीं सुनी?

कामिनीमोहन-हाँ! इतना तो सुना है, वह रात टूटे हुए तारे के ऊपर गिर पड़ा, उसका सर फूट गया।

बासमती-सर क्या फूट गया, यह कहिये थोड़ी चोट आ गयी थी, पर बड़े लोगों की बातें ही बड़ी होती हैं और वह सुकुमार भी बहुत हैं, इसीसे थोड़ा सा लहू निकलते ही अचेत हो गये, नहीं तो कोई बात नहीं थी। दूसरा कोई होता तो उँह भी नहीं करता।

कामिनीमोहन-तो फिर मुझको इससे क्या?

बासमती-क्यों? इससे ही तो आपका सुभीता हुआ? इस काम ही ने तो आपके पथ के सब काँटों को दूर कर दिया।

कामिनीमोहन-कैसे?

बासमती-आप जानते हैं हरलाल कैसे हथकण्डे का है, आपके काम के लिए मैंने उसको बहुत दिनों से गाँठ रखा था, पर यह सोचती थी, जब तक वह किसी भाँति पारवती ठकुराइन के घर में पाँव न रखेगा, काम न निकलेगा। जब मैंने देवकिशोर बाबू के गिरने और सर में चोट लगने की बात सुनी, उसी घड़ी मुझको एक बात सूझी, मैं उसको पूरा करने के लिए चट घर से उठी, और हरलाल के पास पहुँची, उसको ठीक ठाक करके, लगे पाँव देव-किशोर बाबू के घर गयी। भाग्य से बैद महाराज भी कल्ह कहीं गये हुए थे, इसलिए मैंने बातों में फाँसकर पारबती ठकुराइन को अपने रंग में ढाल लिया और उन्हीं के कहने से हरलाल को उनके घर लिवा गयी। मैं जब हरलाल को लेने जाती थी पथ में आपसे भी मिलती गयी थी, पर उस घड़ी आपसे कुछ कहा नहीं था, यह आप जानते हैं। हरलाल ने वहाँ पहुँच कर सब कुछ कर दिया।

कामिनीमोहन-क्या कर दिया? कहो भी तो!

बासमती-हरलाल ने वहाँ पहुँच कर देवकिशोर बाबू के सर की चोट को भली-भाँति देखा, देख कर जाना, बहुत थोड़ी चोट है, गीला कपड़ा बाँधकर जो रह-रह कर पानी उस पर दिया जाता है, यही उसको अच्छा कर देगा। पर दिखलाने को वह झूठ-मूठ जतन करने लगा। एक दिन उसने काली माई के चौरे पर देवकिशोर बाबू को जूता पहने चढ़ते देखा था, यह बात उसको भूली न थी, इसलिए इसी बहाने से उसने एक ऐसी नई उपज निकाली, जिससे आपका काम भली-भाँति निकल आया।

कामिनीमोहन-वह कैसे?

बासमती ने हरलाल के अभुआने की सारी बातें ज्यों-का-त्यों कामिनीमोहन से कह सुनाई। पीछे कहा। हरलाल के चले जाने पर पारबती ठकुराइन ने देवकिशोर के पास जाकर पूछा, बेटा, तुम कभी काली माई के चौरे पर जूता पहने चढ़ गये थे? लड़के ने कहा-हाँ, अम्मा! मुझसे एक दिन यह चूक हो गयी थी। इतना सुनते ही ठकुराइन के रोंगटे खड़े हो गये, हरलाल की उनको बहुत कुछ परतीत हुई। वह कुछ घड़ी चुपचाप न जाने क्या सोचती रहीं, फिर बोलीं-बासमती! हरलाल ने सौ अधाखिले फूल चढ़ाने को तो कहा, पर यह न बतलाया, किसका फूल! मैंने कहा, क्यों यह भी बतलाने की बात है! कौन नहीं जानता, कालीमाई को अड़हुल का फूल ही प्यारा है; इसलिए सौ अड़हुल का अधखिला फूल ही एक महीने तक चढ़ाना होगा। उन्होंने कहा-इतने फूल मिलेंगे कहाँ! मैंने कहा, कामिनीमोहन बाबू की फुलवारी में कौन फूल नहीं है? नित सौ नहीं पाँच सौ अधाखिले फूल अड़हुल के वहाँ मिल सकते हैं। मेरी इन बातों को सुनकर ठकुराइन फिर कुछ घड़ी चुप रहीं, बहुत सोच विचार करके पीछे बोलीं, क्या और कहीं नहीं मिल सकते? मैंने कहा-इस गाँव में और कहाँ इतने फूल मिलेंगे? उन्होंने कहा-अच्छा, वहीं से फूल आवेंगे, पर कब फूल तोड़े जावें जो वह अधाखिले मिलें। मैंने कहा-जो सूरज डूबते फूल उतार लिए जावें तो वह अधिखिले ही रहेंगे, पर उस बेले देवहूती को वहाँ जाकर फूल तोड़ लाना चाहिए, नहीं तो रात में फूल तोड़ा जाता नहीं और दिन निकलने पर फिर वह फूले हुए ही मिलेंगे। ठकुराइन ने कहा, यही तो कठिनाई है, पर करूँ क्या, समझ नहीं सकती हूँ, जैसा मैं आज दुबिधा में पड़ी हूँ, वैसा दुविधे में कभी नहीं पड़ी। मैंने मन में कहा, बासमती फिर क्या ऐसा फंदा डालती है, जो कोई उससे बाहर निकल जावे। जो ऐसा ही होता तो कामिनीमोहन बाबू मेरी इतनी आवभगत क्यों करते। पर इस मन की बात को मन ही में रखकर उनसे बोली, क्या आपको किसी बात का खटका है, मेरे रहते आपको किसी काम में कठिनाई नहीं हो सकती, मैं आप आकर देवहूती को लिवा जाऊँगी, और उनसे फूल तुड़वा लाया करूँगी। क्या मुझसे एक महीने तक इतना काम भी न हो सकेगा? उन्हांने कहा, क्यों नहीं बासमती! तुम सब कुछ कर सकती हो, मुझको तुम्हारा बड़ा भरोसा है। अच्छा, मैं तुम्हारे ही ऊपर इस काम को छोड़ती हूँ, जैसे बने बनाओ, पर ऐसी बात न होवे जिससे फिर देवकिशोर को कुछ झेलना पड़े। मैंने कहा, आप इन बातों से न घबरावें, भगवान् सब अच्छा करेगा। इसके पीछे यह बात ठीक हो गयी, मैं देवहूती के साथ-साथ रहकर फूल तुड़वा लाया करूँगी, कल्ह से यह काम होने लगेगा। मैंने जतन करके देवहूती को आपकी फुलवारी तक पहुँचा दिया। अब आगे आपकी बारी है, देखूँ आप कैसे उस अलबेला को लुभाते हैं, आकाश का चाँद घर में आया है, उसको वश में कर रखना आपका काम है, मैं यही बात पहले कहती थी।

कामिनीमोहन बासमती की बात सुनकर फूला न समाता था, आज उसके जी में यह बात ठन गयी, अब ले लिया है। हँसते-हँसते बोला, क्यों न हो वासमती! तुम्हारा ही काम है, तुमने बहुत कुछ किया जो कुछ मुझसे हो सकेगा मैं भी करूँगा, पर सब कुछ करने का बीड़ा तुम्हीं ने उठाया है, इसलिए सब कुछ तुम्हीं को करना होगा।

बासमती-यह नहीं हो सकता, अब आपको भी कुछ करना होगा। पवन का काम मैं करूँगी, पर आग आपको लगानी पड़ेगी।

कामिनीमोहन-क्या उसको जला कर मिट्टी में थोड़े ही मिलाना है?

बासमती-क्या यह भी मैं कहूँगी, तब आप जानेंगे! पर यह बातें काम की नहीं हैं। मैं नेह की आग लगाने को कहती हूँ, जिसको पवन बनकर मैं सुलगाऊँगी।

कामिनीमोहन-क्या उसका कलेजा ऐसा है, जो नेह की आग मैं वहाँ लगा सकूँगा?

बासमती-क्यों? वह लोहे और पत्थर से थोड़े ही बनी है? फिर आग लगानेवाले तो लोहे और पत्थर में भी आग लगाते हैं। ढंग चाहिए।

कामिनीमोहन-लोहे और पत्थर में आग लगाना, काम रखता है। मैं समझता हँ, बासमती! देवहूती का कलेजा सचमुच लोहे पत्थर का है। उसमें आग लगाना कठिन है।

बासमती-आपकी बातें ऐसी ही हैं, चाहते हैं बहुत कुछ, करते

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रचनाएँ
अधखिला फूल
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अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा नहीं है कि वह इस रचना में रस न ले सके ।
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अधलिखा फूल भाग 1

5 अगस्त 2022
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वैशाख का महीना, दो घड़ी रात बीत गयी है। चमकीले तारें चारों ओर आकाश में फैले हुए हैं, दूज का बाल सा पतला चाँद, पश्चिम ओर डूब रहा है, अंधियाला बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों अंधियाला बढ़ता है, तारों की चमक

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें, पर इतने लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे, जिससे

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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एक बहुत ही सजा हुआ घर है, भीतों पर एक-से-एक अच्छे बेल-बूटे बने हुए हैं। ठौर-ठौर भाँति-भाँति के खिलौने रक्खे हैं, बैठकी और हांड़ियों में मोमबत्तियाँ जल रही हैं, बड़ा उँजाला है, बीच में एक पलँग बिछा हुआ

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भाग 4

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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 5

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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 6

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बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़ में बैठ गयीं, पर पड़ोस की दोनों स्त्रियों पहल

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भाग 7

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भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर किरणों का ही जमावट है, छतों पर, मुड

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भाग 8

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चमकता हुआ सूरज पश्चिम ओर आकाश में धीरे-धीरे डूब रहा है। धीरे-ही-धीरे उसका चमकीला उजला रंग लाल हो रहा है। नीले आकाश में हलके लाल बादल चारों ओर छूट रहे हैं। और पहाड़ की ऊँची उजली चोटियों पर एक फीकी लाल

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भाग 9

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फूल तोड़ते चौबीस दिन हो गये। इतने दिनों में काम कुछ न निकला, यह बात बासमती के जी में आठ पहर खटकने लगी। कामिनीमोहन भी बेचैन हो चला था, इसलिए वह भी कभी-कभी बसमाती को जली कटी सुनाता, इससे बासमती और घबराय

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भाग 10

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हमारे हरमोहन पाण्डे इसी ढंग के लोग हैं-होनहार के भरोसे बाप का कमाया लाखों रुपया उड़ा चुके हैं। बीसों गाँव पास थे, पर एक-एक करके सब बिक चुके हैं। अब तक रहने का घर बचा था। आज उससे भी हाथ धोना चाहते हैं।

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भाग 11

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चारों ओर आग बरस रही है-लू और लपट के मारे मुँह निकालना दूभर है-सूरज बीच आकाश में खड़ा जलते अंगारे उगिल रहा है और चिलचिलाती धूप की चपेटों से पेड़ तक का पत्ता पानी होता है। छर्रों की भाँत धूल के छोटे-छोट

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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देवहूती और उसकी मौसी के घर के ठीक पीछे भीतों से घिरी हुई एक छोटी सी फुलवारी है। भाँत-भाँत के फूल के पौधे इसमें लगे हुए हैं, चारों ओर बड़ी-बड़ी क्यारियाँ हैं, एक-एक क्यारी में एक-एक फूल है-फुलवारी का स

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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पहाड़ों में जाकर नदियों को देखो, दूर तक कहीं उनका कुछ चिह्न नहीं मिलता। आगे बढ़ने पर थोड़ा सा पानी सोते की भाँति झिर झिर बहता हुआ देख पड़ता है और आगे बढ़ने पर इसी की हम एक पतली धार पाते हैं। यही पतली

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भाग 14

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कामिनीमोहन की फुलवारी के चारों ओर जो पक्की भीत है उसमें से उत्तरवाली भीत में एक छोटी सी खिड़की है। यह खिड़की बाहर की ओर ठीक धरती से मिली हुई है, पर भीतर की ओर फुलवारी की धरती से कुछ ऊँचाई पर है। खिड़क

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भाग 15

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>बड़ी गाढ़ी अंधियाली छायी है, ज्यों-ज्यों आकाश में बादलों का जमघट बढ़ता है, अंधियाली और गाढ़ी होती है। गाढ़ापन बढ़ते-बढ़ते ठीक काजल के रंग का हुआ, गाढ़ी अंधियाली और गहरी हुई, इस पर अमावस, आधी रात और स

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भाग 16

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अपनी फुलवारी में टहलते हुए कामिनीमोहन ने पास खड़ी हुई बासमती से कहा- बासमती-क्या मैंने कोई आपके साथ चाल की बात की है? आपके होठों पर आज वह हँसी नहीं है, आँखें डबडबायी हुई हैं, मुँह बहुत ही उतरा हुआ है

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भाग 17

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 18

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 19

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एक बहुत ही घना बन है, आकाश से बातें करनेवाले ऊँचे-ऊँचे पेड़ चारों ओर खड़े हैं-दूर तक डालियों से डालियाँ और पत्तियों से पत्तियाँ मिलती हुई चली गयी हैं। जब पवन चलती है, और पत्तियाँ हिलने लगती हैं, उस घड

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भाग 20

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बन में जहाँ जाकर खोर लोप होती थी, वहाँ के पेड़ बहुत घने नहीं थे। डालियों के बहुतायत से फैले रहने के कारण, देखने में पथ अपैठ जान पड़ता, पर थोड़ा सा हाथ-पाँव हिलाकर चलने से बन के भीतर सभी घुस सकता। पथ य

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भाग 21

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बासमती के चले जाने पर देवहूती अपनी कोठरी में से निकली, कुछ घड़ी आँगन में टहलती रही, फिर डयोढ़ी में आयी। वहाँ पहुँच कर उसने देखा, बासमती पहरे के भीलों से बातचीत कर रही है। यह देखकर वह किवाड़ों तक आयी-औ

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भाग 22

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>कामिनीमोहन की भी आज ठीक यही दशा है-वह खाते पीते, सोते जागते, भोले-भाले मुखड़े का ध्यान करता, जहाँ रसीली बड़ी-बड़ी आँखें देखता वहीं लट्टू होता, गोरे-गोरे हाथों में पतली-पतली चूरियाँ उसको बावला बनातीं,

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भाग 23

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एक चूकता है-एक की बन आती है। एक मरता है-एक के भाग्य जागते हैं। एक गिरता है-एक उठता है। एक बिगड़ता है-एक बनता है। एक ओर सूरज तेज को खोकर पश्चिम ओर डूबता है-दूसरी ओर चाँद हँसते हुए पूर्व ओर आकाश में निक

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भाग 24

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आज तक मरकर कोई नहीं लौटा, पर जिसको हम मरा समझते हैं, उसका जीते जागते रहकर फिर मिल जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे अवसर पर जो आनन्द होता है-वह उस आनन्द से घटकर नहीं कहा जा सकता-जो एक मरे हुए जन के लौट आने

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भाग 25

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बासमती के मारे जाने पर दो चार दिन गाँव में बड़ी हलचल रही, थाने के लोगों ने आकर कितनों को पकड़ा, मारनेवाले को ढूँढ़ निकालने के लिए कोई बात उठा न रखी, पर बासमती से गाँववालों का जी बहुत ही जला हुआ था, इस

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भाग 26

5 अगस्त 2022
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आज दस बरस पीछे हम फिर बंसनगर में चलते हैं। पौ फट रहा है, दिशाएँ उजली हो रही हैं, और आकाश के तारे एक-एक कर के डूब रहे हैं। सूरज अभी नहीं निकला है, पर लाली चारों ओर दिशाओं में फैल गयी है। कहीं-कहीं पेड़

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