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भाग 23

5 अगस्त 2022

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एक चूकता है-एक की बन आती है। एक मरता है-एक के भाग्य जागते हैं। एक गिरता है-एक उठता है। एक बिगड़ता है-एक बनता है। एक ओर सूरज तेज को खोकर पश्चिम ओर डूबता है-दूसरी ओर चाँद हँसते हुए पूर्व ओर आकाश में निकलता है। फूल की प्यारी-प्यारी जी लुभावानेवाली पंखड़ियाँ एक ओर झड़ती हैं-दूसरी ओर अपने हरे रंग से जी को हरा करते हुए फल सर निकालते हैं। इधर पतझड़ होती है-उधर नई-नई कोपलों से पौधे सजने लगते हैं। इधर रात की अंधियाली दूर होती है-उधर दिन का उँजियाला फैलने लगता है। जग का यही ढंग सदा से चला आया है। कामिनीमोहन मर गया, दो-चार दिन गाँव में उसकी बड़ी चर्चा रही, कोई उसके लिए आठ-आठ आँसू रोता रहा, कोई उस पर गालियों की बौछार करता रहा, कोई उसको भला कहता रहा, कोई उसको बुरा बताता रहा। जो उसके बैरी मित्र कुछ न थे, वे उसके जवान मरने पर आँसू बहाते, पर जब उसकी बुरी चालों को सुनते, नाक-भौं सिकोड़ते, कहते-हाय! कामिनीमोहन! चार दिन के जीने पर तुम इतने आपे से बाहर हो गये थे, तुमको सोचना चाहिए था। मरने पीछे जग में जस और अपसज भी रह जाता है। दो-चार दिन पीछे लोगों को ये सारी बातें भूल गयीं। धीरे-धीरे कामिनीमोहन की ठौर एक दूसरा जन लोगों के जी में घर करने लगा, गाँव में जहाँ देखो वहीं उसी की चर्चा होती-ये हमारे देवस्वरूप थे। ज्यों-ज्यों वे कामिनीमोहन की क्रिया बिध के साथ लगे, ज्यों-ज्यों वे गाँव के लोगों के साथ दया और प्यार से बरतने लगे, त्यों-त्यों लोगों का जी उनकी ओर खिंचने लगा।

धीरे-धीरे कामिनीमोहन का दसवाँ हुआ, फिर तेरहवीं हुई, देवस्वरूप ने कामिनीमोहन का सब काम पूरा-पूरा कराया, क्रिया कर्म की कोई बिध उठा न रखी। जब सब कर्म हो चुका, तो एक दिन एक चौपाल में सारा गाँव इकट्ठा हुआ, गाँव का कोई मुखिया ऐसा न था, जो उस समय वहाँ न पहुँचा हो। जब सब लोग आकर अपनी-अपनी ठौरों बैठ चुके देवस्वरूप उठकर खड़े हुए, और कहा-कामिनीमोहन ने मरते समय अपने धन के लिए कुछ लिखापढ़ी की है, और जो लोग उस समय वहाँ थे उनसे कहा था, मेरा सब कर्म हो जाने पर एक दिन गाँव के सब लोगों को इकट्ठा करना, और जो लिखावट आज मैं लिखता हूँ उसको पढ़कर सबको सुनाना, पीछे इस लिखावट में जैसा लिखा है वैसा करना। आज आप लोग उसी लिखावट को सुनने के लिए यहाँ बुलाये गये हैं। आप लोगों के गाँव के पाँच बड़े मुखियाओं ने जिनको आप लोग यहाँ बैठे देख रहे हैं, उस लिखावट को मुझको पढ़ने के लिए दिया है-वह लिखावट यह मेरे हाथ में है। मैं अब इसको पढ़ता हूँ-आप लोग इसको सुनें। इतना कहकर देवस्वरूप उस लिखावट को पढ़ने लगे। लिखावट यह थी-

''मैं कामिनीमोहन बेटा राधिकामोहन रहनेवाला बंसनगर, परगना हरगाँव (गोरखपुर) का हूँ-

''मेरे कोई लड़की लड़का नहीं है, जो सम्पत्ति मेरे पास है, वह सब मेरे बाप की कमाई हुई है, इसमें मेरे बंस के किसी दूसरे का कोई साझा नहीं है। मेरे मरने पर मेरा यह सारा धन मेरी स्त्री फूलकुँअर का होगा, पर इतना धन एक थोड़े बयस की स्त्री के हाथ में छोड़ जाना मैं अच्छा नहीं समझता, इसलिए मरने के पहले मैं अपने धन के लिए कुछ लिखा-पढ़ी करना चाहता हूँ-

''किसी का सर पर न होना, और बहुत सा धन अचानक हाथ में आ जाना, अनर्थों की जड़ है, मेरे बाप के मरने पर मेरी यह गत हुई थी-मेरे मरने पर मेरी स्त्री की भी ठीक यही गत होगी। मेरा जन्म ब्राह्मण के घर में हुआ है-मैं लिखा पढ़ा भी हूँ-दस भलेमानस के साथ उठा बैठा भी हूँ-समय का फेरफार भी देखा है। पर मैंने क्या किया? कोई बुरा कर्म मुझसे करने से छूटा? जब मेरी यह गत हुई, तो सब भाँति से कोरी एक स्त्री ऐसी दशा में क्या करेगी-यह कहकर बतलाने का काम नहीं है। पर इन सब बातों को सोचकर इस बेले जो मैं कोई ढंग निकाल जाऊँ-तो मैं समझता हूँ सभी समझवाले इस बात को अच्छा समझेंगे-

''मेरे बाप ने बड़ी कठिनाई से इतनी सम्पत्ति कमायी थी, एक-एक पैसे के लिए उन्होंने कितनों का रोआँ कलपाया था, छल-कपट करके कितनों का सरबस हरा था, पर इतनी बड़ी सम्पत्ति में से एक पैसा उनके साथ न गया, मैं उनका प्यारा बेटा हूँ, मैं भी आज इसको छोड़कर चला। फिर क्यों लोग दूसरों का रोआँ कलपा कर धन इकट्ठा करते हैं, यह कुछ समझ में नहीं आता। क्या यह उन्हीं कलपे हुए लोगों की आह का फल नहीं है, जो आज इतनी बड़ी सम्पत्ति का कोई भोगनेवाला नहीं रहा? जान पड़ता है जब तक किसी की चलती है-तब तक नहीं सूझता। आज मुझको अपने बाप के लिए ये बातें सूझ रही हैं-पर कल्ह उनसे बढ़-बढ़ कर मैं बुरे-बुरे कर्म गली-गली करता था, उस घड़ी तो लोगों के समझाने पर भी मेरी आँख न खुली। मुझको इस घड़ी इन पचड़ों से कुछ काम न था, पर एक तो इन बातों को दिखलाकर मैं इस ढंग से धन बटोरनेवाले की आँखें खोलता हूँ-दूसरे जिनको अपनी सम्पत्ति सौंपना चाहता हूँ, उन के कान भी खड़े किये देता हूँ। मरते समय मरनेवाले के मुँह की ऐसी बातें बहुत काम की होती हैं।

''देवहूती कौन है? कहाँ रहती है? मैं यह बतलाना नहीं चाहता। आजकल हमारे गाँव के सभी देवहूती को जानते हैं। पर मैं यह कहूँगा, देवहूती एक बहुत ही सीधी, सच्ची, सती, समझवाली, और भलेमानस स्त्री है। मैंने आज तक बहुत सी स्त्रियों बहुत से ढंग की देखीं-पर देवहूती ऐसी स्त्री मुझको देखने में नहीं आयी। मेरे दिन बड़े खोटे थे-जो मेरा जी देवहूती पर आया और अचरज नहीं है जो एक सती स्त्री पर बुरी दीठ डालने से ही आज मैं भरी जवानी में इस भाँत अचानक मर रहा हूँ। मैंने देवहूती को फाँसने के लिए क्या नहीं किया-कैसी-कैसी चाल नहीं चला-पर मेरी सब चालों में देवहूती के धर्म की जैजैकार रही और मैं सदा मुँह की खाता रहा। क्या इतना कहने पर भी देवहूती के सत के लिए मुझको कुछ और कहना चाहिए-मैं समझता हूँ अब कुछ कहने का काम नहीं है-पर इतना कहूँगा। जैसे गंगाजल खारा नहीं हो सकता, चाँद की किरणें मैली नहीं हो सकतीं, सूरज पर अंधियाली नहीं दौड़ सकती-वैसे ही देवहूती के सत पर अपजस का धब्बा नहीं लग सकता। मैं पहले देवहूती को प्यार की दीठ से देखता था, पर आज मैं उसको एक देवी समझता हूँ-जी से उसके आगे मत्था नवाता हूँ-और जो कुछ साग पात मेरे पास है, उसको आदर के साथ उसके सामने रखकर उसकी पूजा करना चाहता हूँ। मैं बड़ा पापी हूँ, क्या जानें इस पूजा के फल से उस लोक में मेरा कुछ भला हो। दूसरे यह भी दिखलाना है-जो स्त्री संकट के समय भी अपना धर्म निबाहती है, उस लोक की कौन कहे, उसको यहाँ ही सब कुछ मिलता है-

''मेरी स्त्री फूलकुँवर कैसी है? मैं इसको क्या कहूँ। पर मुझ ऐसे कुचाली पति से भी जो कभी उखड़कर नहीं बोली-वह स्त्री कैसी स्त्री है-इसको समझनेवाले आप समझ लें। हाय! आज उसके ऊपर कैसी विपत ढहती है! इस को नेक सोचने पर भी कलेजा फटता है। पर मैं उसको देवहूती के हाथ में सौंपता हूँ-देवहूती से बढ़कर मैं किसी को ऐसा नहीं देखता, जो फूलकुँवर का आँसू ठीक-ठीक पोंछ सके-और उसको अपने धर्म पर भी रखे। देवहूती के हाथों फूलकुँवर का अच्छा निबटेरा होगा-मेरे जी को इसकी पूरी परतीत है-

''मेरे बंस के जो लोग हैं, भगवान की दया से वे सब अच्छे हैं-सबको दूध-पूत है-धन सम्पत्ति का भी किसी को टोटा नहीं; इसलिए इन लोगों के लिए मैं कुछ करना नहीं चाहता। पर मुझसे पाँचवीं पीढ़ी में जो पण्डित रामस्वरूप हैं उनके दिन आज कल पतले हैं। इसलिए आज मैं उनको नहीं भूल सकता-इस समय मैं उनके लिए भी कुछ कर जाना चाहता हूँ-

''जो कुछ मैंने अब तक कहा और लिखाया है, उससे मेरे सुध बुध का ठीक होना और मेरा सचेत रहना पाया जाता है-इसलिए ''जो कुछ मैं लिखता हूँ सुधबुध ठीक होते और सचेत रहते लिखता हूँ'' मैं ऐसी बात अपनी इस लिखावट में लिखना नहीं चाहता- ''मेरे पास बीस गाँव हैं, इनमें से मनोहरपुर गाँव मैंने पं. रामस्वरूप को दिया। इस गाँव में बरस में बाहर सौ रुपये बचते हैं-मैं समझता हँ इतने रुपये बरसौढ़ी मिलते रहने पर वह अपना दिन भली-भाँति बिता सकेंगे-

''अब उन्नीस गाँव और रहे-इन उन्नीस गाँवों और दूसरी सारी सम्पत्ति को मैं देवहूती और फूलकुँवर को देता हूँ। उन्नीसों गाँवों पर देवहूती और फूलकुँवर दोनों का नाम चढ़ेगा, और दूसरी सारी सम्पत्ति भी इन दोनों के साझे की समझी जावेगी। मेरी स्त्री जैसी सीधी भोली है, और देवहूती जैसी भलेमानस और समझवाली है, इससे मैं समझता हूँ कोई सम्पत्ति बाँटनी न पड़ेगी। देवहूती अपनी माँ और भाई के साथ आकर मेरे घर में रहे, और फूलकुँवर और वह मिलकर सारी सम्पत्ति की सम्हाल करें, मेरे जी की प्यारी चाह यही है। और जिस लिए मैं फूलकुँवर को देवहूती को सौंपे जाता हूँ-वह बात भी तभी पूरी होगी। इन दोनों में से किसी एक के मरने पर सारी सम्पत्ति दूसरे की समझी जावेगी। देवहूती का पति किसी साधु के साथ निकल गया है-वह कहाँ है कोई नहीं जानता। पर जो देवहूती का दिन पलटे और उसका खोया हुआ पति उसको फिर मिले, और भगवान उसको कोई बेटा देवे, तो दवेहूती और फूलकुँवर दोनों के मरने पर सारी सम्पत्ति उसकी होगी। जो यह दिन भगवान न दिखलावें तो दोनों के मरने पर सारी सम्पत्ति मेरे वंश के लोग पावेंगे। ये दोनों स्त्रियों मेरी सम्पत्ति किसी भाँति दूसरे को न लिख सकेंगी-जो लिखेंगी तो वह लिखना न लिखने ऐसा समझा जावेगा। देवहूती जी करने पर अपने भाई को, ऐसे ही फूलकुँवर अपने भाई के छोटे लड़के को कोई गाँव लिख सकती है-पर इस गाँव की बचत बरस में चौबीस सौ से ऊपर की न होगी-

''मैं पण्डित हरनाथ, पण्डित रामस्वरूप, पण्डित रामदेव, बाबू महेश सिंह और बाबू राजबंस लाल, और जो यहाँ रहें तो देवस्वरूप के हाथों में-जिनके सामने यह लिखावट लिखी गयी है-अपनी सारी सम्पत्ति की देखभाल सौंपता हूँ। ये लोग मेरी सम्पत्ति को बिगड़ने और बुरे ढंग से काम में आने से बचावेंगे-और देवहूती और फूलकुँवर को ऐसी सीख देंगे जिससे वह मेरी सम्पत्ति को आज से अच्छे कामों में लगावें। स्त्रियों को अपने ऊपर छोड़ देना हमारे यहाँ अच्छा नहीं समझा जाता, इनके ऊपर किसी का दबाव भी होना चाहिए, इसलिए मुझको इतना और करना पड़ा। मैं समझता हूँ ऐसा करके मैंने कोई चूक नहीं की है-

''मुझको एक बात का दुख रह गया, मैं देवस्वरूप को अपनी सम्पत्ति में से कुछ देना चाहता था, पर उन्होंने न लिया, मेरा बहुत कुछ बोध होता, जो मेरी सम्पत्ति में से वे कुछ थोड़ा भी लेते। इस लिखावट के लिखने में मुझको उनसे बहुत सहाय मिली है-इसके लिए मैं उनका निहोरा करता हूँ-

''जहाँ तक मैं सोचता हूँ अब मुझको कुछ और नहीं लिखना है-इसलिए इस लिखावट को मैं पूरा करता हूँ-

ह. कामिनीमोहन''

देवस्वरूप पूरी लिखावट पढ़कर बोले-आप लोगों को जो कुछ सुनना था सुनाया गया। आप लोग इस लिखावट को सुनकर पूछ सकते हैं, देवहूती तो सरजू में डूबकर मर गयी! फिर क्या कोई दूसरी देवहूती है जिसको कामिनीमोहन ने अपनी सम्पत्ति दी है? मैं गाँव के उन पाँच बड़े मुखियाओं के कहने से-जिनका नाम लिखावट पढ़ते समय लिया जा चुका है-आप लोगों का यह भरम दूर करना चाहता हूँ। पर भरम दूर करने से पहले मैं आप लोगों से पूछता हूँ-क्या आप लोग हरमोहन पाण्डे को जानते हैं?

लोगों की जो बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठी थी, उनमें से कुछ लोग बोल उठे-क्यों नहीं जानता हूँ, वह देवहूती के बाप थे। दो बरस हुआ, एक दिन वे गाँव के दक्खिन बन के पास एक जन को दिखलाई पड़े-फिर तब से उनकी खोज न मिली। हम लोग जानते हैं, उनको कोई बन का जीव उठा ले गया, और अब वह इस धरती पर नहीं हैं।

जिस घड़ी लोगों के मुँह से यह बात निकली, उसी समय उस भीड़ में एक जन उठकर खड़ा हुआ। इस जन को हम बन में देख चुके हैं। जब देवस्वरूप के साथ घर लौटने में देवहूती ने नाहीं की थी, उस बेले यही जन देवहूती के पास आया था। उस समय हम लोगों ने जिस भेस में इस जन को देखा था, इस बेले उसका यह भेस नहीं है। इस घड़ी इस के सर पर पगड़ी है, देह पर अंगा है, गले में दुपट्टा है, और उजली लम्बी धोती पाँवों को छू रही है। पर दाढ़ी जैसी की तैसी थी, उसमें कुछ लौट फेर न हुआ था। जब यह जन अपनी ठौर पर उठकर खड़ा हुआ, देवस्वरूप ने कहा, क्या आप लोग इनको पहचानते हैं? यह सुनकर सारी भीड़ कुछ घड़ी चुप रही, पीछे दो जन भीड़ में से उठकर खड़े हुए। और उन लोगों ने कहा, हाँ! हम लोग पहचानते हैं, यही हरमोहन पाण्डे हैं। इन दोनों की बातें सुनकर सारी भीड़ खड़बड़ा उठी, बारी-बारी करके बहुत से लोग उठ बैठे। सर ऊँचा नीचा करके सभों ने देखभाल की, और कहा, ठीक है, यही हरमोहन पाण्डे हैं। इस समय सारी भीड़ अचरज में आ गयी थी, और जितने मुँह उतनी बातें होने लगने से, हौरा सा मच गया था, पर देवस्वरूप ने किसी भाँति फिर सबको चुप किया, और कहा अब आप लोग जानिये, जो दो बरस के मरे हुए हरमोहन पाण्डे जी सकते हैं, तो पन्द्रह बीस दिन की मरी देवहूती भी जी सकती है। सच बात यह है देवहूती भी मरी नहीं है, जीती है। यहाँ आप लोग हरमोहन पाण्डे से पूछकर अपना-अपना भरम दूर करें। और इनके घर पर जाकर देखें, वहाँ आप लोगों को देवहूती जीती मिलेगी। देवस्वरूप इतना कह पाये थे और हरमोहन पाण्डे उनकी बातों को ठीक बतला ही रहे थे, इसी बीच भीड़ फिर खड़बड़ा उठी, बहुत लोग अपनी-अपनी ठौर छोड़कर चौपाल के नीचे उतरने लगे। कोई रोता चिल्लाता भी सुनाई पड़ा। सब लोग घबड़ा उठे, बात क्या है! पर जो था चौपाल के नीचे उतरा जा रहा था, इसलिए कुछ ठीक न जान पड़ा क्या है। यह हलचल देखकर गाँव के पाँचों मुखिया और देवस्वरूप भी चौपाल से नीचे उतरे, और भीड़ चीर कर आगे बढ़े। तो देखा एक खाट पर बासमती लहू में डूबी हुई पड़ी तड़प रही है, उसकी देह में छुरी के सैकड़ों घाव लगे हुए हैं, और उसका बेटा उसकी खाट के पास खड़ा रो चिल्ला रहा है। देवस्वरूप ने उसके बेटे की ओर देखकर कहा, यह क्या हुआ गंगाराम?

गंगराम-देखो महाराज! गाँव को सूना पाकर न जाने कौन आज मेरी माँ को इस भाँति छुरियों से घायल कर गया। मैं अभी चौपाल में से उठकर घर गया, तो वहाँ इसको पड़े तड़पते पाया। यह बहुत पुकारने पर भी नहीं बोलती, न किसी का नाम बतलाती। इसी से आप लोगों को दिखलाने के लिए मैं इसको यहाँ खाट पर अपने एक पड़ोसी के साथ उठा लाया हूँ। बाबू आप लोग अब इसका निआव करें-दोहाई बाबू लोगों की।

जिस घड़ी गंगाराम बातें कर रहा था, बासमती साँस तोड़ रही थी, उसके घाव, उसकी बुरी गत, और उसका तड़पना देखकर सबके रोंगटे खड़े थे, ऐसा कोई अंग नहीं था जहाँ छुरी चुभाई नहीं गयी थी। उसकी यह दशा देखकर गाँव के मुखियाओं ने कहा, इसको अभी थाने में ले जाओ। यह सुनकर गंगाराम ने ज्यों खाट उठायी, त्यों उसीमें कहीं लिपटी एक लिखावट नीचे गिर पड़ी-लिखावट यह थी-

''बासमती ने कितनी भोली-भाली स्त्रियों और कितने भले घरों को बिगाड़ा है। मेरा जी इसी से इसके ऊपर बहुत दिनों से जलता था, पर कामिनीमोहन का डर मुझको कुछ करने न देता था। जिस दिन कामिनीमोहन मरे उसी दिन मुझको अपने जी की जलन बुझाने का विचार था। पर अवसर हाथ न आता था। आज अवसर हाथ आने पर मैं अपने जी की जलन को बासमती के लहू से ठण्डा करता और जो स्त्रियों कुटनपन करने में बड़ी चोख हैं, उनको बतलाता हूँ, वे चेत रखें, मेरे ऐसा उनको भी कोई कभी मिल रहेगा। किसी को जी से मारना और थाने के लोगों के हथकण्डों का विचार न करके एक लिखावट भी पास रख जाना, एक नई बात है। पर लोगों की भलाई के लिए मैं ऐसा करता हूँ-आगे मेरे भाग्य में जो बदा हो।

एक अपने जी पर खेलनेवाला।''

लिखावट पढ़ जाने पर गंगाराम बासमती को लेकर थाने की ओर चला गया, पर जाने से पहले बासमती मर चुकी थी। जितने लोग वहाँ थे सब लोगों ने बड़े दुख से तड़प-तड़प कर बासमती को मरते देखा था, इसलिए उसी की चर्चा करते-करते वे लोग भी अपने-अपने घर आये। पर न जाने कैसा एक डर आज गाँव के सब लोगों के जी में समा गया।

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रचनाएँ
अधखिला फूल
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अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा नहीं है कि वह इस रचना में रस न ले सके ।
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अधलिखा फूल भाग 1

5 अगस्त 2022
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वैशाख का महीना, दो घड़ी रात बीत गयी है। चमकीले तारें चारों ओर आकाश में फैले हुए हैं, दूज का बाल सा पतला चाँद, पश्चिम ओर डूब रहा है, अंधियाला बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों अंधियाला बढ़ता है, तारों की चमक

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें, पर इतने लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे, जिससे

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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एक बहुत ही सजा हुआ घर है, भीतों पर एक-से-एक अच्छे बेल-बूटे बने हुए हैं। ठौर-ठौर भाँति-भाँति के खिलौने रक्खे हैं, बैठकी और हांड़ियों में मोमबत्तियाँ जल रही हैं, बड़ा उँजाला है, बीच में एक पलँग बिछा हुआ

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भाग 4

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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़ में बैठ गयीं, पर पड़ोस की दोनों स्त्रियों पहल

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर किरणों का ही जमावट है, छतों पर, मुड

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भाग 8

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चमकता हुआ सूरज पश्चिम ओर आकाश में धीरे-धीरे डूब रहा है। धीरे-ही-धीरे उसका चमकीला उजला रंग लाल हो रहा है। नीले आकाश में हलके लाल बादल चारों ओर छूट रहे हैं। और पहाड़ की ऊँची उजली चोटियों पर एक फीकी लाल

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भाग 9

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फूल तोड़ते चौबीस दिन हो गये। इतने दिनों में काम कुछ न निकला, यह बात बासमती के जी में आठ पहर खटकने लगी। कामिनीमोहन भी बेचैन हो चला था, इसलिए वह भी कभी-कभी बसमाती को जली कटी सुनाता, इससे बासमती और घबराय

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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हमारे हरमोहन पाण्डे इसी ढंग के लोग हैं-होनहार के भरोसे बाप का कमाया लाखों रुपया उड़ा चुके हैं। बीसों गाँव पास थे, पर एक-एक करके सब बिक चुके हैं। अब तक रहने का घर बचा था। आज उससे भी हाथ धोना चाहते हैं।

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भाग 11

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चारों ओर आग बरस रही है-लू और लपट के मारे मुँह निकालना दूभर है-सूरज बीच आकाश में खड़ा जलते अंगारे उगिल रहा है और चिलचिलाती धूप की चपेटों से पेड़ तक का पत्ता पानी होता है। छर्रों की भाँत धूल के छोटे-छोट

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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देवहूती और उसकी मौसी के घर के ठीक पीछे भीतों से घिरी हुई एक छोटी सी फुलवारी है। भाँत-भाँत के फूल के पौधे इसमें लगे हुए हैं, चारों ओर बड़ी-बड़ी क्यारियाँ हैं, एक-एक क्यारी में एक-एक फूल है-फुलवारी का स

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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पहाड़ों में जाकर नदियों को देखो, दूर तक कहीं उनका कुछ चिह्न नहीं मिलता। आगे बढ़ने पर थोड़ा सा पानी सोते की भाँति झिर झिर बहता हुआ देख पड़ता है और आगे बढ़ने पर इसी की हम एक पतली धार पाते हैं। यही पतली

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भाग 14

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कामिनीमोहन की फुलवारी के चारों ओर जो पक्की भीत है उसमें से उत्तरवाली भीत में एक छोटी सी खिड़की है। यह खिड़की बाहर की ओर ठीक धरती से मिली हुई है, पर भीतर की ओर फुलवारी की धरती से कुछ ऊँचाई पर है। खिड़क

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भाग 15

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>बड़ी गाढ़ी अंधियाली छायी है, ज्यों-ज्यों आकाश में बादलों का जमघट बढ़ता है, अंधियाली और गाढ़ी होती है। गाढ़ापन बढ़ते-बढ़ते ठीक काजल के रंग का हुआ, गाढ़ी अंधियाली और गहरी हुई, इस पर अमावस, आधी रात और स

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भाग 16

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अपनी फुलवारी में टहलते हुए कामिनीमोहन ने पास खड़ी हुई बासमती से कहा- बासमती-क्या मैंने कोई आपके साथ चाल की बात की है? आपके होठों पर आज वह हँसी नहीं है, आँखें डबडबायी हुई हैं, मुँह बहुत ही उतरा हुआ है

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भाग 17

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 18

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 19

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एक बहुत ही घना बन है, आकाश से बातें करनेवाले ऊँचे-ऊँचे पेड़ चारों ओर खड़े हैं-दूर तक डालियों से डालियाँ और पत्तियों से पत्तियाँ मिलती हुई चली गयी हैं। जब पवन चलती है, और पत्तियाँ हिलने लगती हैं, उस घड

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भाग 20

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बन में जहाँ जाकर खोर लोप होती थी, वहाँ के पेड़ बहुत घने नहीं थे। डालियों के बहुतायत से फैले रहने के कारण, देखने में पथ अपैठ जान पड़ता, पर थोड़ा सा हाथ-पाँव हिलाकर चलने से बन के भीतर सभी घुस सकता। पथ य

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भाग 21

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बासमती के चले जाने पर देवहूती अपनी कोठरी में से निकली, कुछ घड़ी आँगन में टहलती रही, फिर डयोढ़ी में आयी। वहाँ पहुँच कर उसने देखा, बासमती पहरे के भीलों से बातचीत कर रही है। यह देखकर वह किवाड़ों तक आयी-औ

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भाग 22

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>कामिनीमोहन की भी आज ठीक यही दशा है-वह खाते पीते, सोते जागते, भोले-भाले मुखड़े का ध्यान करता, जहाँ रसीली बड़ी-बड़ी आँखें देखता वहीं लट्टू होता, गोरे-गोरे हाथों में पतली-पतली चूरियाँ उसको बावला बनातीं,

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भाग 23

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एक चूकता है-एक की बन आती है। एक मरता है-एक के भाग्य जागते हैं। एक गिरता है-एक उठता है। एक बिगड़ता है-एक बनता है। एक ओर सूरज तेज को खोकर पश्चिम ओर डूबता है-दूसरी ओर चाँद हँसते हुए पूर्व ओर आकाश में निक

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भाग 24

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आज तक मरकर कोई नहीं लौटा, पर जिसको हम मरा समझते हैं, उसका जीते जागते रहकर फिर मिल जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे अवसर पर जो आनन्द होता है-वह उस आनन्द से घटकर नहीं कहा जा सकता-जो एक मरे हुए जन के लौट आने

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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बासमती के मारे जाने पर दो चार दिन गाँव में बड़ी हलचल रही, थाने के लोगों ने आकर कितनों को पकड़ा, मारनेवाले को ढूँढ़ निकालने के लिए कोई बात उठा न रखी, पर बासमती से गाँववालों का जी बहुत ही जला हुआ था, इस

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भाग 26

5 अगस्त 2022
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आज दस बरस पीछे हम फिर बंसनगर में चलते हैं। पौ फट रहा है, दिशाएँ उजली हो रही हैं, और आकाश के तारे एक-एक कर के डूब रहे हैं। सूरज अभी नहीं निकला है, पर लाली चारों ओर दिशाओं में फैल गयी है। कहीं-कहीं पेड़

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