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भाग 6

5 अगस्त 2022

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बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़ में बैठ गयीं, पर पड़ोस की दोनों स्त्रियों पहले ही की भाँति लड़के की सम्हाल में लगी रहीं। हरलाल घर में आकर सीधे लड़के की खाट के पास चला गया, पहले उसने उसकी नाड़ी देखी, पीछे सर और छाती को टटोला, नाक के छेदों के पास हाथ ले जाकर देखा, साँस कैसे चल रही है, आँखों को खोलकर उनके तारों को देखा, फिर सर में जो चोट आयी थी, उसकी देखभाल की, और यह सब करके बहुत ही अनमना सा होकर कहने लगा-बासमती! तुम मुझको लिबा तो लाई हो, पर बाबू की दशा बहुत ही बिगड़ गयी है, इनके सर से बहुत लहू निकल गया है, और अब तक निकल रहा है, इससे इनका प्राण इस घड़ी बड़ी जोखों में है। मैं क्या करूँ क्या न करूँ, कुछ समझ में नहीं आता, जो चला जाऊँ तो कल्ह सबको मुँह कैसे दिखाऊँगा, और जो जतन और उपाय करने लगूँ तो जी को एक बड़ा भारी खटका होता है। पर दुरगा माई जो करें, जो मैं आ गया तो बिना कुछ किये अब न जाऊँगा। हाँ! यह बात मैं कहे देता हूँ, मुझको बल भरोसा दुरगा माता का है, जो कुछ मैं करूँगा उन्हीं के भरोसे करूँगा, बिना उनका सुमिरन किये मैं कुछ नहीं कर सकता, बिपत में उन्हीं का नाम सहाय होता है, उन्हीं का नाम लेने से दुख कटता है, इसलिए अब मैं दुरगा माता का सुमिरन करूँगा, तू थोड़ा सा धूप, गूगुल ला दे।

पारवती की इस घड़ी बुरी गति थी, बेटे की बुरी दशा देख सुनकर उसका कलेजा फट रहा था, आँखों से लहू गिर रहा था, रह-रह कर जी बावला होता था। इसी बीच हरलाल ने अपना टंट घंट फैलाया। आया था बैदई करने, ओझाई करने पर उतारू हुआ। यह देखकर पारबती के रोयें रोयें में आग लग गयी, उसका जी जल भुन गया, पर वह करे तो क्या करे, चुपचाप सब कुछ सहना पड़ा। बिपत सामने खड़ी है, लड़का अचेत खाट पर पड़ा है, भाँत-भाँत की बातें जी में उपज रही हैं, न जाने कहाँ-कहाँ जी जा रहा है, ऐसे बेले दुरगा माता का सुमिरन करने को कौन रोक सकता है। जी न होने पर पारवती ने घर में से धूप और गूगुल ला कर मालिन को दिया। धूप गूगुल को पाकर हरलाल के जी की अटक भी दूर हुई। उसने आग मँगा कर उस पर धूप और गूगुल जलाया। देखते-ही-देखते सारा घर महँकने लगा, और इसके थोड़े ही पीछे एक सुरीले गले का सुर चारों ओर फैल गया। हरलाल ने सुमिरन के बहाने गाया।

गीत

दुरगा माता सीस नवाता हूँ चरणों पर तेरे।

मैं हूँ दास तुम्हारा दया करो तुम ऊपर मेरे।

पार नहीं पाता है कोई बकते हैं बहुतेरे।

अपना भला देखता हूँ जस गाकर साँझ सबेरे।

मुझमें नहिं ऐसी करनी है जो तू आवे नेरे।

अपनी ओर देख कर माता तू मत आँखें फेरे।

कितने दुख कट जाते हैं जो तुम्हें नेह से टेरे।

लिए तुम्हारा नाम बिपत भी रहती है नहिं घेरे।

लाज आज जाती है जो हम करें उपाय घनेरे।

जन की पत रह जाती है पर तनिक तुम्हारे हेरे।

यही आस मेरे जी में है क्या तू नहीं निबेरे।

जग में सब कुछ पाते हैं तेरे चरणों के चेरे।1।

सुमिरन करने पीछे हरलाल ने लड़के के सर और छाती पर हाथ फेरा, कुछ पढ़ कर दो-तीन बार फूँका, फिर थोड़ी सी मली हुई पत्तियाँ मालिन के हाथ में देकर कहा, इसको पीस कर अभी बाबू के घाव पर लगा दे। पत्तियाँ अभी पीसी जा रही थीं इसी बीच लड़के ने आँखें खोल दीं, और धीरे-धीरे करवट भी ली। लड़के को आँखें खोलते और करवट लेते देखकर सबके जी में जी आया। पारवती के जी को भी बहुत कुछ ढाढ़स हुआ।

हरलाल जब सुमिरन करने लगा, और उसका बहुत ही ऊँचा सुर घर में से निकल कर बाहर फैलने लगा, उस घड़ी पारबती मर सी गयी। उसने सोचा जो कोई इसको सुनता होगा, क्या कहता होगा, एक भलेमानस के घर में इतनी रात गये यह कैसा गीत हो रहा है? क्या यह विचार उसके जी को डावांडोल ने करता होगा? जो डावांडोल करता होगा, तो वह हम लोगों को क्या समझता होगा? भले घर की बहू बेटी तो कभी न समझता होगा, क्या इससे भी बढ़कर और कोई दूसरी बात लाज की है? क्या यह हम लोगों के लिए धरती में गड़ जाने की बात नहीं है? पारबती जितना ही इन बातों को सोचने लगी, उतना ही दुखी होती गयी। उसका जी कहता था अभी हरलाल को घर से बाहर निकाल दूँ। पर एक तो उसका नेह के साथ दुरगा माता का सुमिरन कलेजे को पिघला रहा था, दूसरे लड़के की बुरी दशा ने उसको आपे में नहीं रखा था, इसलिए वह जैसा सोचती थी, कर नहीं सकती थी। जब सुमिरन के पूरा होते-होते दो-चार बार झाड़ फूँक करने ही से लड़के ने आँखें खोल दीं, उस घड़ी पारबती पहले की सब बातें भूल गयी, और हरलाल की उसको बहुत कुछ परतीत हुई।

जब बासमती हरलाल को लेने गयी, उस बेले पड़ोस की दोनों स्त्रियों ने लड़के के सर को भली-भाँति धो-धाकर उसपर कपड़े की पट्टी बाँध दी थीं। इस पट्टी को ठहर-ठहर कर वे दोनों भिंगो रही थीं। हरलाल ने आते ही यह सब देख लिया था, और नाक के छेद के पास हाथ ले जाकर और इसी भाँत की दूसरी जाँचों से उसने यह भी जान लिया था, लड़के को चेत अब हुआ ही चाहता है। वह अपना रंग जमाने के लिए ही आया था, इसलिए औषधी से काम न निकाल कर उसने अपनी ओझाई को चमकाना चाहा, और ऐसा ही किया। पीछे उसने पत्तियाँ कुछ दी थीं, पर यह दिखलावा था, यह पत्तियाँ भी ऐसी ही वैसी थीं, कहने-सुनने से लेता आया था, पर बात वही हुई, जो वह चाहता था, पत्तियाँ लगाई तक नहीं गयीं; और लड़के ने आँखें खोल दीं। हरलाल की ओझाई ही पक्की रही।

लड़के को आँख खोलते देखकर हरलाल की नस-नस फड़क उठी, उसने समझा अब मैंने सबके ऊपर अपना रंग जमा लिया। इसलिए अब वह अपनी दूसरी चाल चला। सबके देखते-ही-देखते वह हाथ पैर नचाने लगा, सर हिलाने लगा, आँखें निकाल लीं, मुँह को डरावना बना दिया और रह-रह कर ऐसा तड़पता था, जिसको सुनकर कलेजा दहल उठता। मालिन को छोड़कर और जितनी स्त्रियों वहाँ थीं, उसका यह रंग-ढंग देखकर घबड़ा गयीं। मालिन उसकी चाल को ताड़ गयी। भीतर-ही-भीतर बहुत सुखी हुई। कुछ घड़ी अनजान सी बनकर उसका रंग-ढंग देखती रही, पीछे बोली-आप कौन हैं!

हरलाल-मैं काली हँ रे, काली, डीह के थानवाली काली!!!

बासमती ने धूप और गूगुल अबकी बार बहुत सा जला कर कहा, आप काली माता हैं! कहाँ आयी हो महारानी?

हरलाल-कहाँ आयी हूँ रे, कहाँ आयी हूँ, इसी हरललवा ने बुलाया है, इसीके मारे आयी हूँ, यह मुझे इसी भाँत जहाँ तहाँ बुलाया करता है, यह नहीं जानता, इस लड़के ने अपनी करनी का फल पाया है, मैं इसे छोड़ थोड़े ही सकती हूँ।

बासमती आग पर धूप गिराते-गिराते बोली-लड़का आप ही का है, इसे जो आप न छोड़ेंगी, तो हम लोग कैसे जीयेंगी। इस से जो चूक हुई होगी, अनजान में हुई होगी, और जो जान में भी कोई चूक हुई हो, तो उसको जो आप न छमा करेंगी तो हम लोगों को दूसरा किसका भरोसा है।

हरलाल-अनजान! अनजान!! अनजान!!! अनजान रे अनजान! जो अनजान में कोई बात हुई होती, तो मैं इतना बिगड़ती क्यों? अब के छोकरे देवी देवता को कुछ समझते ही नहीं। परसों यह जूता पहने मेरे मन्दिर के चौतरे पर बेधड़क चढ़ गया। तनिक भी न डरा। यह न समझा, कलयुग है तो क्या, अब भी देवी देवता में बहुत कुछ सकत है।

बासमती-सकत है क्यों नहीं माता! यह कौन कहता है सकत नहीं है!!! पर मैं पाँव पड़ती हूँ, नाक रगड़ती हूँ, मत्था नवाती हँ, आप इस लड़के की चूक छमा करें! इस लड़के ने चूक तो बहुत बड़ी की है, पर आपकी छमा के आगे इसकी चूक कुछ नहीं है। जो आप इस लड़के की चूक छमा न करेंगी, तो हम सब आपके मन्दिर में धरना देकर मर जायेंगी, कभी न जीयेंगी।

हरलाल-छमा!! छमा!!! ऐसे ही छमा करें?

बासमती-कैसे छमा करोगी? माता! जो आप करने को कहेंगी, हमलोग जैसे होगा वह करेंगी, हमको छमा मिलनी चाहिए।

हरलाल-अच्छा, मैं छमा करूँगी, पर जो उपाय मैं बताती हूँ, वह करना होगा, जो यह उपाय न होगा, तो मैं कभी इस लड़के को न छोड़ूँगी। मैंने हरललवा के रोने गाने से इतना किया है, जो लड़के की आँखें खुल गयीं, नहीं तो अब इसकी आँखें न खुलतीं। मेरे ही कोप से आज यह उस भीड़ में उस टूटे हुए तारे पर गिरा, और इसका सर फूटा। जो मैं उपाय बतलाती हूँ जो वह न होगा, तो यह कभी अच्छा न होगा। और जो उपाय होने लगेगा तो यह दिन-दिन अच्छा होता जावेगा। क्यों, क्या कहती है? बोल!!!

बासमती-मैं क्या कहूँगी माता! जो आप कहेंगी वही होगा, कभी कुछ दूसरा भी हो सकता है! इस लड़के से बढ़कर हम लोगों को क्या प्यारा है?

हरलाल-अच्छा सुन रे सुन! जो तुम करेगी तो मैं बताती हूँ। देवहूती के गुण पर मैं रीझी हुई हूँ, जो वह सौ अधखिला फूल अपने हाथों से तोड़ कर एक महीने तक मुझको नित चढ़ावे तब तो मैं उसके निहोरे इस छोकरे को छोडूँगी, नहीं तो किसी भाँत न मानूँगी। बोल! क्या कहती है, ऐसा होगा?

बासमती-क्यों न होगा महारानी! यह कौन काम है, जो कोई बड़ा कठिन उपाय आप बतलातीं, तो इस लड़के के बचाने के लिए हम सब वह भी करतीं। इसमें क्या है?

हरलाल-अच्छा, जो तू मेरी बात मानती है तो ले मैं जाती हूँ, पर जान ले जो मेरी बात न हुई तो छ ही सात दिन के भीतर यह लड़का ऐसी जोखों में पड़ेगा, जिससे फिर इसका छुटकारा न होगा।

इतना कहने पीछे हरलाल का रंग-ढंग फिर पहले का सा हो गया, न अब उसका हाथ-पाँव हिलता था, और न उसमें वह सब डरानेवाली बातें रह गयी थीं। वह इस घड़ी बहुत ही धीरा पूरा जान पड़ता था, पर उसके मुँह पर थकावट रूखेपन के साथ झलक रही थी।

पारवती हरलाल का अभुआना देख और उसकी बातें सुन कर बड़े झंझट में पड़ गयी, पहले हरलाल के ऊपर जो उसका विचार था, उसके सुमिरन का ढंग देखकर और लड़के को कुछ सम्हला और चेत में आया पाकर, अब वह और भाँत का हो गया था। अब वह हरलाल को पाखंडी न समझकर भलामानस समझने लगी थी। इसलिए उसने उसकी बातों को धोखाधड़ी की बात न समझ कर निरी सच्ची बात समझा, और अपने लड़के की करनी पर बहुत दुखी हुई। पर सबसे झंझट की बात उसके लिए सौ अधखिले फूलों से एक महीने तक देवी की पूजा हुई। वह मन-ही-मन इन सब बातों को सोच रही थी। इसी बीच हरलाल ने फिर थोड़ी सी और कोई पत्ती मालिन के हाथ में देकर कहा, अब मैं जाता हूँ, तुम इस पत्ती को दो-चार बार और बाबू के घाव पर रगड़वा कर लगवाना, माई चाहेगी तो वह इसी से अच्छे हो जावेंगे, अब कोई दूसरी औखध न करनी पड़ेगी। मेरा बड़ा भाग है जो मेरे हाथों बाबू का कुछ भला हुआ, पर आज मैं बड़े जोखों में पड़ गया, ऐसा अचानक माता कभी मेरे ऊपर नहीं आयी। बासमती! जो तू न सम्हालती तो न जाने आज क्या हो जाता, देखना उनकी भेंट-पूजा की बात न भूलना। इतना कहकर वह चला गया। जब वह जाने लगा था, पारवती ने उसको बासमती के हाथ कुछ दिया था।

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रचनाएँ
अधखिला फूल
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अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा नहीं है कि वह इस रचना में रस न ले सके ।
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अधलिखा फूल भाग 1

5 अगस्त 2022
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वैशाख का महीना, दो घड़ी रात बीत गयी है। चमकीले तारें चारों ओर आकाश में फैले हुए हैं, दूज का बाल सा पतला चाँद, पश्चिम ओर डूब रहा है, अंधियाला बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों अंधियाला बढ़ता है, तारों की चमक

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें, पर इतने लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे, जिससे

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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एक बहुत ही सजा हुआ घर है, भीतों पर एक-से-एक अच्छे बेल-बूटे बने हुए हैं। ठौर-ठौर भाँति-भाँति के खिलौने रक्खे हैं, बैठकी और हांड़ियों में मोमबत्तियाँ जल रही हैं, बड़ा उँजाला है, बीच में एक पलँग बिछा हुआ

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़ में बैठ गयीं, पर पड़ोस की दोनों स्त्रियों पहल

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर किरणों का ही जमावट है, छतों पर, मुड

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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चमकता हुआ सूरज पश्चिम ओर आकाश में धीरे-धीरे डूब रहा है। धीरे-ही-धीरे उसका चमकीला उजला रंग लाल हो रहा है। नीले आकाश में हलके लाल बादल चारों ओर छूट रहे हैं। और पहाड़ की ऊँची उजली चोटियों पर एक फीकी लाल

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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फूल तोड़ते चौबीस दिन हो गये। इतने दिनों में काम कुछ न निकला, यह बात बासमती के जी में आठ पहर खटकने लगी। कामिनीमोहन भी बेचैन हो चला था, इसलिए वह भी कभी-कभी बसमाती को जली कटी सुनाता, इससे बासमती और घबराय

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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हमारे हरमोहन पाण्डे इसी ढंग के लोग हैं-होनहार के भरोसे बाप का कमाया लाखों रुपया उड़ा चुके हैं। बीसों गाँव पास थे, पर एक-एक करके सब बिक चुके हैं। अब तक रहने का घर बचा था। आज उससे भी हाथ धोना चाहते हैं।

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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चारों ओर आग बरस रही है-लू और लपट के मारे मुँह निकालना दूभर है-सूरज बीच आकाश में खड़ा जलते अंगारे उगिल रहा है और चिलचिलाती धूप की चपेटों से पेड़ तक का पत्ता पानी होता है। छर्रों की भाँत धूल के छोटे-छोट

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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देवहूती और उसकी मौसी के घर के ठीक पीछे भीतों से घिरी हुई एक छोटी सी फुलवारी है। भाँत-भाँत के फूल के पौधे इसमें लगे हुए हैं, चारों ओर बड़ी-बड़ी क्यारियाँ हैं, एक-एक क्यारी में एक-एक फूल है-फुलवारी का स

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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पहाड़ों में जाकर नदियों को देखो, दूर तक कहीं उनका कुछ चिह्न नहीं मिलता। आगे बढ़ने पर थोड़ा सा पानी सोते की भाँति झिर झिर बहता हुआ देख पड़ता है और आगे बढ़ने पर इसी की हम एक पतली धार पाते हैं। यही पतली

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भाग 14

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कामिनीमोहन की फुलवारी के चारों ओर जो पक्की भीत है उसमें से उत्तरवाली भीत में एक छोटी सी खिड़की है। यह खिड़की बाहर की ओर ठीक धरती से मिली हुई है, पर भीतर की ओर फुलवारी की धरती से कुछ ऊँचाई पर है। खिड़क

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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>बड़ी गाढ़ी अंधियाली छायी है, ज्यों-ज्यों आकाश में बादलों का जमघट बढ़ता है, अंधियाली और गाढ़ी होती है। गाढ़ापन बढ़ते-बढ़ते ठीक काजल के रंग का हुआ, गाढ़ी अंधियाली और गहरी हुई, इस पर अमावस, आधी रात और स

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भाग 16

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अपनी फुलवारी में टहलते हुए कामिनीमोहन ने पास खड़ी हुई बासमती से कहा- बासमती-क्या मैंने कोई आपके साथ चाल की बात की है? आपके होठों पर आज वह हँसी नहीं है, आँखें डबडबायी हुई हैं, मुँह बहुत ही उतरा हुआ है

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 18

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 19

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एक बहुत ही घना बन है, आकाश से बातें करनेवाले ऊँचे-ऊँचे पेड़ चारों ओर खड़े हैं-दूर तक डालियों से डालियाँ और पत्तियों से पत्तियाँ मिलती हुई चली गयी हैं। जब पवन चलती है, और पत्तियाँ हिलने लगती हैं, उस घड

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भाग 20

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बन में जहाँ जाकर खोर लोप होती थी, वहाँ के पेड़ बहुत घने नहीं थे। डालियों के बहुतायत से फैले रहने के कारण, देखने में पथ अपैठ जान पड़ता, पर थोड़ा सा हाथ-पाँव हिलाकर चलने से बन के भीतर सभी घुस सकता। पथ य

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भाग 21

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बासमती के चले जाने पर देवहूती अपनी कोठरी में से निकली, कुछ घड़ी आँगन में टहलती रही, फिर डयोढ़ी में आयी। वहाँ पहुँच कर उसने देखा, बासमती पहरे के भीलों से बातचीत कर रही है। यह देखकर वह किवाड़ों तक आयी-औ

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भाग 22

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>कामिनीमोहन की भी आज ठीक यही दशा है-वह खाते पीते, सोते जागते, भोले-भाले मुखड़े का ध्यान करता, जहाँ रसीली बड़ी-बड़ी आँखें देखता वहीं लट्टू होता, गोरे-गोरे हाथों में पतली-पतली चूरियाँ उसको बावला बनातीं,

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भाग 23

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एक चूकता है-एक की बन आती है। एक मरता है-एक के भाग्य जागते हैं। एक गिरता है-एक उठता है। एक बिगड़ता है-एक बनता है। एक ओर सूरज तेज को खोकर पश्चिम ओर डूबता है-दूसरी ओर चाँद हँसते हुए पूर्व ओर आकाश में निक

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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आज तक मरकर कोई नहीं लौटा, पर जिसको हम मरा समझते हैं, उसका जीते जागते रहकर फिर मिल जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे अवसर पर जो आनन्द होता है-वह उस आनन्द से घटकर नहीं कहा जा सकता-जो एक मरे हुए जन के लौट आने

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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बासमती के मारे जाने पर दो चार दिन गाँव में बड़ी हलचल रही, थाने के लोगों ने आकर कितनों को पकड़ा, मारनेवाले को ढूँढ़ निकालने के लिए कोई बात उठा न रखी, पर बासमती से गाँववालों का जी बहुत ही जला हुआ था, इस

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भाग 26

5 अगस्त 2022
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आज दस बरस पीछे हम फिर बंसनगर में चलते हैं। पौ फट रहा है, दिशाएँ उजली हो रही हैं, और आकाश के तारे एक-एक कर के डूब रहे हैं। सूरज अभी नहीं निकला है, पर लाली चारों ओर दिशाओं में फैल गयी है। कहीं-कहीं पेड़

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